भोपाल, 28 दिसंबर 2025: यदि शक सही निकला तो यह मामला प्रमाणित करता है कि, प्रशासनिक मामलों में रिश्वत खली के लिए किस स्तर तक काम किया जा रहा है। दोष प्रमाणित हो जाने के बाद भी एक व्यापारी की सजा माफ हो गई क्योंकि एडीएम ऑफिस की तरफ से एक कमी रह गई थी। अब यह जांच का विषय है कि, जो कमी रह गई वह गलती थी या साजिश?
मामला क्या है-
सन 2022 में 26 जनवरी के दिन, जब सब छुट्टी पर रहते हैं, भोपाल के खाद्य सुरक्षा अधिकारी श्री भोजराज सिंह धाकड़ ड्यूटी पर थे। दिन में नहीं बल्कि रात में 11:15 बजे पुलिस बल के साथ रात 11:15 बजे दुर्गा मंदिर के पीछे राजीव नगर पहुंचे थे। यहां दीपक ठाकुर के मकान पर गए। जहां उन्होंने मकान के आंगन में और दो कमरों में भारी मात्रा में पनीर और घी रखा होना पाया। मकान में उपस्थित जितेन्द्र जाटव और राहुल सिंह ने जानकारी दी कि यह पनीर और घी दिग्विजय सिंह जादौन का है। वो दोनों उसके ही कर्मचारी हैं। इस दौरान 09 क्विंटल पनीर तथा 20 किलोग्राम घी का संग्रहण होना पाया गया। इसके बाद पनीर के एक एक किलो ग्राम के चार नमूने कुल 4 किलो नमूना लेकर जांच के लिए लैब भेजा गया। जहां नमूने अमानक पाए गए।
(पहला सवाल यहीं बनता है: 26 जनवरी को जब सरकारी छुट्टी होती है, कड़ाके की ठंड होती है, लोग अपने परिवार के साथ समय बिता रहे होते हैं तब खाद्य सुरक्षा अधिकारी श्री भोजराज सिंह धाकड़ ड्यूटी पर थे। क्या सचमुच ड्यूटी पर थे या फिर व्यापारी पर प्रेशर क्रिएट करने के लिए छापा मारा था? श्री धाकड़ का रिकॉर्ड चेक करने जरूरी है कि उन्होंने इस प्रकार की ड्यूटी पहले कितनी बार की है।)
अब कहानी में आगे बढ़ते हैं, लैब टेस्टिंग में 9 क्विंटल पनीर और 20 किलो घी अमानक पाए जाने पर मामला एडीएम कोर्ट में पेश किया गया। एडीएम कोर्ट द्वारा दिग्विजय सिंह जादौन के साथ उनके कर्मचारी जितेन्द्र जाटव और राहुल सिंह को भी दोषी घोषित करते हुए, ₹200000 जुर्माना की सजा सुनाई।
व्यापारी ने एडीएम के फैसले के खिलाफ भोपाल जिला न्यायालय में अपील की। अपील का फैसला प्रधान जिला एवं सत्र न्यायधीश मनोज कुमार श्रीवास्तव ने सुनाया है। कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि एडीएम कोर्ट द्वारा आरोपियों को पनीर और घी अमानक होने की रिपोर्ट नहीं भेजी गई थी। साथ ही भेजी गई नोटिस की कोई भी पोस्टल रसीद कोर्ट में पेश नहीं की गई है। जिससे यह साबित हो सके कि नमूना अमानक होने पर शासन ने आरोपियों को नोटिस भेजा था। इसके कारण शासन द्वारा बनाए गए आरोपी सैंपल की जांच सेंट्रल फूड लैब से करवाने से वंचित रहे। उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की गई। कोर्ट ने उनपर लगे 2 लाख रुपए जुर्माने के आदेश को खारिज कर उनको बरी कर दिया।
यह न्यायालय के निर्णय पर कोई सवाल नहीं है लेकिन एडीएम ऑफिस पर सवाल उठता है। क्या कारण है जो एटीएम के कार्यालय द्वारा आरोपियों को जांच रिपोर्ट नहीं भेजी गई, और नोटिस भी डाक से नहीं भेजा गया। क्या एटीएम कार्यालय में हमेशा ऐसा ही होता है या फिर इस एक खास मामले में साजिश के तहत ऐसा किया गया ताकि इसके आधार पर न्यायालय में सजा माफी मिल सके? प्रशासन कोर्ट में कैसे हार गया है, जांच तो जरूरी है, गलती हुई है या फिर साजिश?
कहीं ऐसा तो नहीं की 26 जनवरी को छापा मारने के बाद भी व्यापारी झुकने को तैयार नहीं हुआ तो ADM OFFICE से सजा सुनाई गई और जब व्यापारी झुक गया तो सजा से मुक्त होने का रास्ता भी बता दिया गया।
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