नई दिल्ली, 2 दिसंबर 2025: राजनीतिक गलियों में आज का दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए किसी राजनीतिक थ्रिलर से कम न था। सुबह-सुबह कांग्रेस की तूती बोल रही प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र सरकार के 'संचार साथी' मोबाइल ऐप पर ऐसा हमला बोला कि दूरसंचार मंत्री सिंधिया की कुर्सी हिलने लगी। सिंधिया ने मीडिया के सामने आकर जवाब भी दिया परंतु मामला ठंडा नहीं हुआ। शाम होते-होते स्थिति यह बन गई कि सिंधिया को अमित शाह की शरण में जाना पड़ा।
कांग्रेस ने संचार साथी को पेगासस प्लस बताया
प्रियंका ने इसे सीधे-सीधे 'जासूसी ऐप' करार देते हुए कहा कि यह नागरिकों की प्राइवेसी पर डाका है, और सरकार तानाशाही की राह पर बढ़ रही है। कांग्रेस ने इसे 'पेगासस प्लस' तक बता दिया, जहां हर फोन की निगरानी हो रही है। विपक्ष की इस आक्रामकता ने संसद के विंटर सेशन को भी गरमा दिया, जहां बहस छिड़ गई कि क्या यह साइबर सिक्योरिटी का नाम पर जासूसी का नया हथियार है?Sanchar Saathi एक snooping ऐप है, और यह बिल्कुल बेतुका है। नागरिकों को privacy का अधिकार है। हर व्यक्ति को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपने परिवार और दोस्तों को संदेश भेज सके, बिना इस डर के कि सरकार हर चीज़ पर नज़र रख रही है।
— Ruchira Chaturvedi (@RuchiraC) December 2, 2025
:@priyankagandhi pic.twitter.com/iDnk4netLc
संचार साथी मोबाइल एप पर सिंधिया का स्पष्टीकरण
आईफोन वाली एप्पल कंपनी भी विरोध कर रही है
सिंधिया ने दोपहर होते ही मीडिया के सामने आकर सफाई दी। उन्होंने कहा कि ऐप पूरी तरह वैकल्पिक है, यूजर्स इसे डिलीट कर सकते हैं, और यह सिर्फ फ्रॉड से बचाव के लिए है। लेकिन क्या यह सफाई काफी थी? नहीं, क्योंकि प्रियंका का तीर सीधा निशाने पर लगा था। सरकार ने तो सभी स्मार्टफोन कंपनियों को 90 दिनों में ऐप प्री-इंस्टॉल करने का आदेश ही दे दिया था, जिसका ऐपल जैसी कंपनियां विरोध कर रही हैं।
क्या सिक्योरिटी के लिए प्राइवेसी से समझौता कर लें?
सिंधिया का जवाब तो ठीक था, लेकिन विपक्ष ने इसे 'बिग ब्रदर' की तरह चित्रित कर दिया, जहां फोन खोलने से पहले सरकार की नजर पड़ जाएगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सिंधिया, जो कभी कांग्रेस के लालचौक से भाजपा के गढ़ तक का सफर तय कर चुके हैं, इस बार प्राइवेसी बहस में फंस गए। उनका मंत्रालय साइबर क्राइम रोकने का दावा कर रहा है, लेकिन विपक्ष पूछ रहा है, क्या हर कॉल, हर मैसेज की निगरानी जरूरी है? यह सवाल सिंधिया को घेरने में कामयाब रहा, क्योंकि जनता की नजरें अब प्राइवेसी पर टिक गई हैं, न कि सिर्फ सिक्योरिटी पर।
सिंधिया, अमित शाह से मदद मांगने पहुंचे
और फिर आया शाम का ट्विस्ट। संसदीय हंगामे के बीच सिंधिया सीधे गृह मंत्री अमित शाह के बंगले पर पहुंचे। आधिकारिक तौर पर यह 'सामान्य चर्चा' बताई जा रही है, लेकिन राजनीतिक कोरिडोर में फुसफुसाहटें तेज हैं कि, सिंधिया इस मामले में अमित शाह से मदद मांगने पहुंचे हैं। क्योंकि सिंधिया जानते हैं कि, भारतीय जनता पार्टी के मूल कार्यकर्ता और नेता उनका सपोर्ट नहीं करेंगे। अमित शाह, जो भाजपा की रणनीति के सूत्रधार हैं, यदि सिंधिया के समर्थन में खड़े हो जाते हैं तो फिर पूरी पार्टी सिंधिया के पीछे नजर आएगी।
सिंधिया को पता है प्रियंका से जीत नहीं सकते
तर्क साफ है: अगर सिंधिया अकेले लड़ते, तो कांग्रेस का नैरेटिव मजबूत हो जाता, लेकिन शाह की एंट्री से यह भाजपा का आंतरिक डैमेज कंट्रोल बन गया। क्या यह संयोग था कि मीटिंग उसी दिन हुई जब प्रियंका का बयान वायरल हो रहा था? बिल्कुल नहीं। सिंधिया जानते हैं कि शाह के बिना यह जंग लंबी खिंच सकती है, और विंटर सेशन में और घेराबंदी हो सकती है।
कुल मिलाकर, आज का दिन सिंधिया के लिए सबक था। एक ऐप जितना छोटा लगे, राजनीति में वह तूफान ला सकता है। प्रियंका की चालाकी ने उन्हें घेरा, उन्होंने जवाब दिया फिर भी मामला शांत नहीं हुआ और अमित शाह की शरण में जाना पड़ा। क्या कल संसद में यह मुद्दा और भड़केगा? या सिंधिया नई रणनीति के साथ लौटेंगे?
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