नई दिल्ली, 13 नवंबर 2025: बॉलीवुड की फिल्मों में कई बार टपोरी अंदाज में कहा जाता था, "यदि मेरा टेंपरेचर बाद तो तूफान आ जाएगा"। बिल्कुल ऐसा ही होने वाला है। दुनिया का टेंपरेचर बढ़ गया है। अब केवल तूफान नहीं बल्कि बाढ़ और सूखा भी पड़ेगा। सरकार कितनी भी योजनाएं चला दे, किसान हमेशा प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बना रहेगा।
दुनिया के अंधे विकास ने कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ा दिया
ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की नई रिपोर्ट ने फिर से खतरे की घंटी बजा दी है। साल 2025 में जीवाश्म ईंधन (जैसे कोयला, तेल और गैस) से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ₂) के उत्सर्जन में 1.1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इससे यह 38.1 अरब टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।
रिपोर्ट बताती है कि कई देशों में ऊर्जा सिस्टम को साफ-सुथरा (कार्बन-मुक्त) बनाने की रफ्तार तेज हो रही है, लेकिन यह बढ़ती हुई ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। जमीन के इस्तेमाल में बदलाव (जैसे जंगलों की कटाई) से उत्सर्जन कम हुआ है, लेकिन कुल मिलाकर उत्सर्जन घटा नहीं।
धरती का तापमान बढ़ने से अब कोई नहीं रोक सकता
वैज्ञानिकों का मानना है कि अब दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री से ज्यादा न बढ़े, यह "लगभग नामुमकिन" हो गया है। एक्सेटर यूनिवर्सिटी के ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर पियरे फ्रिडलिंगस्टीन ने कहा, "अभी की उत्सर्जन की रफ्तार पर 1.5 डिग्री का कार्बन बजट अगले पांच सालों से पहले ही खत्म हो जाएगा।" उन्होंने चेतावनी दी कि जलवायु बदलाव धरती और समुद्रों की प्राकृतिक कार्बन सोखने की क्षमता को भी कम कर रहा है।
रॉयल सोसाइटी की प्रोफेसर कोरीन ले क्वेरे ने कहा
"कई देशों ने आर्थिक विकास के साथ उत्सर्जन घटाया है, लेकिन यह प्रगति अभी बहुत नाजुक है। कार्बन सोखने वाली जगहों (सिंक्स) पर जलवायु बदलाव का असर चिंताजनक है।"
रिपोर्ट की मुख्य बातें
- चीन का उत्सर्जन 0.4 फीसदी बढ़ा, लेकिन यह पिछले सालों से कम रहा क्योंकि वहां नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सोलर और विंड) में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई।
- भारत का उत्सर्जन 1.4 फीसदी बढ़ा, लेकिन समय से पहले मानसून आने और सोलर ऊर्जा के तेज फैलाव ने कोयले की खपत को काबू में रखा।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ में ठंडे मौसम की वजह से उत्सर्जन में क्रमशः 1.9 फीसदी और 0.4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
- जापान का उत्सर्जन 2.2 फीसदी घटा, जबकि बाकी दुनिया में 1.1 फीसदी बढ़ा।
- तेल, गैस और कोयले सभी से उत्सर्जन में इजाफा हुआ।
- हवाई यात्रा के क्षेत्र में उत्सर्जन 6.8 फीसदी बढ़ा, जो कोविड-19 से पहले के स्तर से भी ज्यादा हो गया।
अमेजन और दक्षिण एशिया पर खतरा बढ़ा
रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका के बड़े इलाकों में जंगल अब कार्बन सोखने वाले नहीं रहे, बल्कि उत्सर्जन के स्रोत बन गए हैं। अमेजन में जंगलों की कटाई थोड़ी कम हुई है, लेकिन 2024 की आग ने दिखाया कि यह इकोसिस्टम अभी भी बहुत नाजुक है।
भारत की स्थिति 50-50
भारत की कहानी रिपोर्ट में उम्मीद और चुनौती दोनों दिखाती है। उत्सर्जन की बढ़ोतरी अपेक्षाकृत कम रही, लेकिन बिजली की बढ़ती मांग और तापमान में उछाल आने वाले सालों में नई मुश्किलें लाएंगे। भारत ने उत्सर्जन की तीव्रता (प्रति यूनिट जीडीपी) कम करने के अपने लक्ष्य समय से पहले हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, लेकिन ग्लोबल ट्रेंड बताता है कि कोई एक देश अकेला इस संकट से नहीं लड़ सकता।
हवा में सीओ₂ की मात्रा 425.7ppm हो जाएगी
सिसेरो के शोधकर्ता ग्लेन पीटर्स ने कहा, "पेरिस समझौते को दस साल हो गए, लेकिन जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। देशों को अब अपनी प्रतिबद्धताओं को असल कार्रवाई में बदलना होगा।"
रिपोर्ट के अनुसार, 2026 में हवा में सीओ₂ की मात्रा 425.7 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच जाएगी, जो औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 52 फीसदी ज्यादा है।
दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचने का आखिरी मौका
ग्लोबल कार्बन बजट 2025 बताता है कि अब वक्त वादों का नहीं, काम करने का है। 1.5 डिग्री की सीमा बचाना मुश्किल है, लेकिन अगर दुनिया तुरंत और सख्त कदम उठाए, तो भविष्य अभी भी बदला जा सकता है।
रिपोर्ट: निशांत सक्सेना, संपादन: उपदेश अवस्थी।
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