ग्वालियर, 8 नवंबर 2025: हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश की ग्वालियर बेंच ने सरकारी आदेशों के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है जो हजारों सरकारी आदेशों को प्रभावित कर सकता है। हाईकोर्ट ने संक्षिप्त में और स्पष्ट रूप से कहा कि “कारण आदेश की आत्मा होता है, बिना कारण दिया गया निर्णय न्यायिक नहीं कहा जा सकता।”
श्रीलाल बनाम अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर
मामला श्रीलाल बनाम अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर एवं अन्य शीर्षक से दर्ज था। रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1999 में नायब तहसीलदार ने ग्राम पेपरी की सरकारी भूमि खसरा नंबर 202 और 205 का आवंटन एक व्यक्ति को कर दिया था। याचिकाकर्ता श्रीलाल का कहना था कि वे वर्षों से इस भूमि पर काबिज हैं, लेकिन उन्हें इस आदेश की जानकारी वर्ष 2006 में मिली। इसके बाद उन्होंने विलंब माफी का आवेदन देकर अपील दायर की थी।
ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए उपखंड अधिकारी (एसडीओ) के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि किसी भी प्रशासनिक या अर्द्धन्यायिक आदेश में कारणों का उल्लेख अनिवार्य है। “कारण आदेश की आत्मा होता है, बिना कारण दिया गया निर्णय न्यायिक नहीं कहा जा सकता।”मामला दतिया जिले की सेंवढ़ा तहसील के ग्राम पेपरी में भूमि आवंटन विवाद से जुड़ा है। इस मामले में एसडीओ, अतिरिक्त कलेक्टर दतिया और अतिरिक्त आयुक्त ग्वालियर द्वारा पारित आदेशों में स्पष्ट कारणों का उल्लेख नहीं था। हाईकोर्ट ने इन सभी आदेशों को निरस्त करते हुए प्रकरण को दोबारा सुनवाई के लिए वापस भेज दिया है।
कोर्ट ने एसडीओ को निर्देश दिया है कि वे सभी पक्षों को सुनकर 90 दिनों के भीतर एक नया तर्कसंगत और कारणयुक्त आदेश पारित करें।
हाई कोर्ट का यह आदेश, हजारों सरकारी आदेशों को कैसे प्रभावित करेगा
हाई कोर्ट ने केवल एक मामले का निराकरण नहीं किया है बल्कि एक नीतिगत कानूनी व्यवस्था की स्थापना की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि, “कारण आदेश की आत्मा होता है, बिना कारण दिया गया निर्णय न्यायिक नहीं कहा जा सकता।” इसका मतलब यह हुआ कि ऐसे सभी आदेश जो बिना किसी कारण के जारी कर दिए गए और उनका पालन करवा दिया गया, वह सारे आदेश निरस्त हो सकते हैं। यहां बात सिर्फ प्रॉपर्टी की नहीं है बल्कि किसी भी प्रकार के विवाद में किसी भी प्रकार की सरकारी आदेश पर, यह निर्णय प्रभावशील रहेगा।
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