SCINDIA ने स्वयं को ग्वालियर-चंबल और उज्जैन संभाग का नेता घोषित किया, मोदी-मोहन नहीं सिंधिया

भोपाल, 28 नवंबर 2025
: श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, सरकारी डाक्यूमेंट्स में भले ही गुना शिवपुरी के सांसद हों लेकिन वह आज उसे मिशन पर निकल पड़े हैं जो सन 1740 में रानोजी सिंधिया से शुरू हुआ था। श्री सिंधिया ने स्वयं को ग्वालियर संभाग, चंबल संभाग और उज्जैन संभाग के अधिकांश इलाकों का नेता घोषित कर दिया है। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि सन 1947 में भारत संघ में विलय के समय यही इलाके सिंधिया राज के अंतर्गत आते थे। 

सिंधिया ने कहा: एक तिहाई मध्य प्रदेश का झंडा मेरे हाथ में है

राजनीति में नेट के हर शब्द का, यहां तक की बॉडी लैंग्वेज का भी अपना अर्थ होता है। केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 27 नवंबर 2025 को गुना जिले में विभिन्न विकास परियोजनाओं की शिलान्यास और लोकार्पण के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि, सिंधिया ने कहा श्योपुर, गुना, शिवपुरी, अशोकनगर, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, विदिशा, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर का झंडा सिंधिया परिवार के हाथ में है, इस झंडे को मैं कभी झुकने नहीं दूंगा। 

सिंधिया का बयान या सिंधिया का ऐलान

उपरोक्त बयान देकर, अपने बयान में मध्य प्रदेश के 12 जिलों का नाम लेकर सिंधिया ने स्पष्ट ऐलान कर दिया है कि इन इलाकों में विकास का काम मैं देखूंगा। राजनीति में इसका मतलब होता है कि उपरोक्त सभी 12 जिलों में शासन और सत्ता मेरे हाथ में होगी। राजनीति में इसका मतलब यह भी होता है कि उपरोक्त 12 जिलों का नेता मैं हूं, यहां जो कुछ भी होगा मेरी मर्जी से होगा। 

सिंधिया ने शिवराज का विदिशा भी छीन लिया

श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से पहले तक विदिशा को शिवराज सिंह चौहान का गढ़ कहा जाता था। ऐसी हजारों खबरें हैं, जिनका निष्कर्ष कहता है कि श्री शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा में किसी भी नेता को अपने खिलाफ खड़े नहीं होने दिया। भारतीय जनता पार्टी की बात तो दूर, विदिशा पर उनका HOLD इतना मजबूत है कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी में भी कभी कोई नेता, बड़ा नहीं होने दिया। आज एक बयान देकर सिंधिया ने शिवराज से उनका विदिशा छीन लिया है। जी हां, दवा नहीं किया है बल्कि छीन लिया है। ऐलान कर दिया है। 

लोकतंत्र में सिंधिया रियासत की स्थापना का मिशन

पिछले 1 साल की गतिविधियों को देखने के बाद स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि, श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकतंत्र में सिंधिया रियासत की स्थापना का एक नया मिशन शुरू किया है। इसको समझने के लिए इतिहास में 294 साल पीछे जाना होगा। सन 1731 में पेशवा ने मलवा पर अधिकार किया था। उन्होंने रानोजी सिंधिया को उज्जैन के विकास की जिम्मेदारी दी थी। मात्र 10 वर्षों बाद रानोजी सिंधिया ने स्वयं को उज्जैन का सरदार (राजा) घोषित कर दिया था। इसके बाद सिंधिया राज का विस्तार शुरू हुआ और 1810 के आसपास दौलतराव सिंधिया ने ग्वालियर को अपनी राजधानी घोषित कर दिया था। 

सन 1947 में जब सिंधिया को अपनी रियासत भारत संघ में विलय करनी पड़ी तब ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, दतिया, मुरैना, भिंड, श्योपुर, उज्जैन, देवास, शाजापुर, आगर-मालवा, मंदसौर, नीमच, राजगढ़, रतलाम, विदिशा, सीहोर, भोपाल (कुछ उत्तरी परगने), इंदौर (कुछ परगने) सिंधिया रियासत का हिस्सा थे। सिंधिया एक बार फिर उपरोक्त सभी इलाकों पर अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के मिशन पर काम कर रहे हैं। इतिहास में सिंधिया उज्जैन से ग्वालियर की तरफ चली थी, वर्तमान में सिंधिया ग्वालियर से उज्जैन की तरफ बढ़ रहे हैं। यह पूरा क्षेत्र मध्य प्रदेश का एक तिहाई (1/3) होता है। वह भाजपा के नेता जरूर है लेकिन अपनी रियासत वाले क्षेत्रों में भाजपा का नहीं बल्कि अपना शासन स्थापित करना चाहते हैं। कलेक्टर की नियुक्ति और पटवारी के ट्रांसफर से लेकर, पार्षद से संसद तक के टिकट का फैसला खुद करना चाहते हैं। और इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। 

पिछले महीने सिंधिया ने स्वयं को ग्वालियर-चंबल का मुखिया कहा था। आज उन्होंने उज्जैन संभाग के कुछ इलाके और विदिशा का झंडा भी थाम लिया है। राजनीति को समझने वाले बहुत बेहतर समझ सकते हैं कि यह बयान आज की तारीख में मध्य प्रदेश की राजनीति का सबसे बड़ा बयान है।
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