नई दिल्ली, 04 नवंबर 2025: OBC Advocates Welfare Association द्वारा दायर याचिका SLP (C) 16518/2022 पर आज सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई। माननीय जस्टिस एम. सुदेश और जस्टिस सतीश शर्मा की बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लिया, जहां याचिकाकर्ता एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा।
महाधिवक्ता कार्यालय की नियुक्तियों में मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम लागू नहीं किया
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को अवगत कराया कि मध्य प्रदेश में OBC, SC और ST समुदायों की लगभग 88 प्रतिशत आबादी है, जबकि महिलाओं की हिस्सेदारी 49.8 प्रतिशत है। फिर भी, महाधिवक्ता कार्यालय में इन वर्गों के अधिवक्ताओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा, जिसके फलस्वरूप हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों के रूप में इनका न्यूनतम योगदान दिखाई देता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 2(b), 2(f), 3 और 4(2) में व्यवस्था है कि महाधिवक्ता कार्यालय, जिला न्यायालयों तथा निगम मंडलों में विधि अधिकारियों की नियुक्तियों पर आरक्षण लागू होगा, क्योंकि इन शासकीय अधिवक्ताओं को राज्य निधि (public fund) से वेतन प्रदान किया जाता है।
अदालत को यह भी बताया गया कि जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर के महाधिवक्ता कार्यालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में एडिशनल एडवोकेट जनरल, डिप्टी एडवोकेट जनरल, गवर्नमेंट एडवोकेट और डिप्टी गवर्नमेंट एडवोकेट जैसे लगभग 150 से अधिक स्वीकृत पद हैं। इसके अलावा, 500 से ज्यादा पैनल अधिवक्ताओं के पद और प्रदेश के जिला न्यायालयों में एक हजार से अधिक पद उपलब्ध हैं। निगम मंडलों तथा बैंकों को मिलाकर कुल मिलाकर करीब 1800 पद हैं। किंतु इन नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों और महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा।
इन तर्कों को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से ग्रहण करते हुए मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश जारी किए कि अगली सुनवाई से पूर्व OBC, SC, ST तथा महिलाओं के प्रतिनिधित्व संबंधी विस्तृत जानकारी सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जाए। प्रकरण की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की गई है।
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