मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों एवं मान्य कर्मचारियों की मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक अटेंडेंस सिस्टम के मामले में हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश का डिसीजन आ गया है। इस सिस्टम के खिलाफ एक जनहित याचिका प्रस्तुत की गई थी। हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन, स्कूल शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था।
गेस्ट टीचर को-ऑर्डिनेशन कमेटी अशोकनगर की जनहित याचिका
हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश के चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं है। यह याचिका गेस्ट टीचर को-ऑर्डिनेशन कमेटी अशोकनगर के अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह द्वारा दायर की गई थी। सिंह ने 20 जून 2025 को राज्य सरकार द्वारा जारी उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत 1 जुलाई 2025 से पूरे प्रदेश में शिक्षकों के लिए ई-अटेंडेंस अनिवार्य कर दी गई थी।
नेटवर्क और स्मार्टफोन न होने की दी थी दलील
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि ग्रामीण और अंचल क्षेत्रों में डिजिटल ढांचा कमजोर है, जिससे मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी में गंभीर कठिनाइयां हैं। इसके अतिरिक्त, कई शिक्षक स्मार्टफोन खरीदने में असमर्थ हैं, जिससे उनके लिए ई-अटेंडेंस दर्ज करना व्यावहारिक रूप से कठिन हो जाता है।
इसे लागू करने में कानूनी बाधा नहीं
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता निलेश यादव ने पक्ष रखा और यह तर्क दिया कि ई-अटेंडेंस प्रणाली पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से लागू की गई है और इसे लागू करने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। हाईकोर्ट ने सभी तर्कों को सुनने के बाद याचिका को खारिज करते हुए सरकार के आदेश को वैध माना। इस फैसले के बाद अब शिक्षकों को अपनी दैनिक उपस्थिति केवल ई-अटेंडेंस पोर्टल या ऐप के माध्यम से दर्ज करनी होगी।
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