अरे मिंया, का बताएं यार, भोपाल ने तो इस बार कश्मीर को भी मात दे दीस! नवंबर में ही 5.2 डिग्री पर पहुंच गया तापमान, 84 साल पुराना रिकॉर्ड ध्वस्त हो गया बाबू। 1941 में 6.1 डिग्री था, वो भी टूट गया। ऊपर से श्रीनगर-गुलमर्ग में तो 10-15 डिग्री घूम रहा है, और हमारी भोपाली ठंड कश्मीर से भी दो कदम आगे निकल गई रे!
सुबह-सुबह तो जैसे हड्डियां जम जाएं, रजाई से निकलने का मन ही नहीं कर रहा। दस दिन से तापमान सामान्य से नीचे चल रहा है, शीत लहर चल री है। उत्तरी ठंडी हवाएं राजस्थान के रेगिस्तान से सीधी भोपाल पर टूट पड़ी हैं, नमी नाममात्र को भी नहीं, बस कट-कट ठंड लग रही है मिंया।
स्कूल का टाइम भी बदल गया। अब नर्सरी से आठवीं तक सुबह 8:30 के बाद खुलेगा। अभिभावक चिल्ला-चिल्ला के थक गए थे, आखिर जिला शिक्षा वाले ने निर्देश निकाल ही दिया। बच्चे तो खुश, थोड़ा सोने को मिल जाएगा, पर मां-बाप की हालत खराब – “अरे बाबू, रजाई में घुसा है, उठत ही नहीं!”
मौसम वाले बोल रहे हैं कि अभी 3-4 दिन और ऐसी ही कड़कड़ाती ठंड पड़ेगी, 21 नवंबर के बाद थोड़ी रहम की उम्मीद है। हवा का रुख पूर्वी हो जाए तो थोड़ा गर्माहट आएगी, वरना तो बस अलाव और चाय का सहारा है यार।
डॉक्टर लोग बता रहे हैं कि ये सब हरियाली घटने का नतीजा है। जंगल काट-काट के खेती कर दी, पेड़ गायब, सीमेंट-कंक्रीट के महल खड़े हो गए। पहले जंगल ठंड-गर्मी को बैलेंस करते थे, अब तो दिन में धूप चटख और रात में हड्डी गला देने वाली ठंड। ला नीना भी पूरा जोर लगा रही है, क्लाइमेट चेंज का करिश्मा है ये सब।
खेतों की भी चिंता सता रही है मिंया। अभी से 5 डिग्री पर आ गया, थोड़ा और गिरा तो पाला पड़ जाएगा, चना-गेहूं सब मुरझा जाएंगे। पहले नवंबर में तो हल्की ठंडी हवा चलती थी, अब तो जैसे जनवरी की सर्दी नवंबर में ही आ धमकी है!
बस इतना कहेंगे – रजाई, मफलर, मॉम की बनी गर्मागर्म चाय और अदरक वाली कड़क चाय तैयार रखो यार। भोपाल इस बार सचमुच “कश्मीर बन गया रे”! ठिठुर-ठिठुर के मजे लो, पर बीमार मत पड़ जाना।
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