LEGAL NEWS: प्रभारी अधिकारी को उच्च वेतन का अधिकार, हाईकोर्ट का लैंडमार्क जजमेंट

सेंट्रल न्यूज़ रूम, 25 नवंबर 2025
: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभिन्न पदों पर प्रभारी के रूप में नियुक्त किए जाने वाले कर्मचारी एवं अधिकारियों के मामले में ऐतिहासिक और लैंडमार्क जजमेंट दिया है। हाई कोर्ट का कहना है कि जब किसी कर्मचारी को किसी दूसरे पद का प्रभार दिया जाता है तो उसके साथ उसे दूसरे पद का वेतन भी दिया जाना होगा।

उमाकांत पांडे बनाम ईस्ट सेंट्रल रेलवे

याचिकाकर्ता श्री उमाकांत पांडे, ईस्ट सेंट्रल रेलवे इंटर कॉलेज, मुगलसराय में ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर (TGT) के तौर पर काम कर रहे थे। 30 नवंबर, 2004 को मौजूदा हेड मास्टर (जूनियर विंग) के रिटायर होने के बाद श्री उमाकांत पांडे को हेड मास्टर पद का चार्ज संभालने और परमानेंट हेड की पोस्टिंग तक 'इंचार्ज' के तौर पर काम करने का निर्देश दिया गया। श्री उमाकांत पांडे ने 9 एकड़ में आज ऐतिहासिक अवसर पर 194 करोड़ की लागत जिस प्रकार का समय चल रहा है आज का समय तो हमारे लिए भारत में खेलों की लंबी परंपरा है मलखान कुश्तीदिनांक 1 दिसंबर 2004 से 6 मार्च 2008 तक कुल 3 साल 4 महीने तक प्रभारी हेड मास्टर के पद पर काम किया। जब उन्होंने अपने नियुक्तिकर्ता विभाग से समान काम समान वेतन के आधार पर हेड मास्टर के पद का वेतन मंगा तो उनके निवेदन को स्वीकार कर दिया गया। बताया गया कि आपको इस पद पर प्रमोट नहीं किया गया है, बल्कि सिर्फ प्रभार दिया गया था। विभाग में ऐसा कोई नियम नहीं है कि प्रभारी अधिकारी को समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए। भारत के श्रम कानून में भी ऐसा कोई कानून नहीं है। 

श्री उमाकांत पांडे ने जब सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) में अभ्यावेदन प्रस्तुत किया तो डिपार्टमेंट ने बताया कि श्री पांडे को एक टेंपरेरी कामचलाऊ उपाय के तौर पर इंचार्ज बनाया गया था। इसलिए उनके पे स्केल में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। ट्रिब्यूनल ने इस तर्क का समर्थन किया और श्री उमाकांत पांडे के दावे को खारिज कर दिया। 

इसके बाद श्री उमाकांत पांडे ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। यहां पर उन्होंने कुछ डॉक्यूमेंट प्रस्तुत की है जिसमें डिपार्टमेंट ने उन्हें हेड मास्टर {जूनियर विंग) लिखा है और हेडमास्टर के कर्तव्य में लापरवाही के लिए जिम्मेदार बताया गया है। दंडित किए जाने की चेतावनी भी दी गई है। श्री पांडे का तर्क था कि जब प्रभारी पद की जिम्मेदारी और दंड दिया जाता है तो फिर लाभ भी दिया जाना चाहिए। हाई कोर्ट इस तर्क से सहमत हो गया, कोर्ट ने कहा कि अगर रेस्पोंडेंट्स ने उन्हें हेड मास्टर की ज़िम्मेदारियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और स्कूल को मैनेज करने में गलतियों के लिए चार्ज लगाया तो वे अब पलटकर यह दावा नहीं कर सकते कि सैलरी देने के मामले में उनकी ड्यूटी सिर्फ़ "रूटीन नेचर" की थी।

हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के लैंडमार्क जजमेंट:-

सेल्वराज बनाम पोर्ट ब्लेयर के आइलैंड के लेफ्टिनेंट गवर्नर (जिसमें क्वांटम मेरिट के सिद्धांत पर चर्चा की गई) 
सचिव-सह-चीफ इंजीनियर, चंडीगढ़ बनाम हरिओम शर्मा 
को ध्यान में रखते हुए अपना डिसीजन बनाया। 

क्वांटम मेरिट का सिद्धांत क्या है

सेल्वराज बनाम पोर्ट ब्लेयर के आइलैंड के लेफ्टिनेंट गवर्नर मामले में क्वांटम मेरिट का सिद्धांत कहता है कि किसी व्यक्ति को उक्त उच्च वेतनमान में उपलब्ध परिलब्धियों के अनुसार उस समय के दौरान भुगतान किया जाना चाहिए, जब तक उसने वास्तव में उक्त पद पर काम किया हो, भले ही वह नियमित पदोन्नत न हुआ हो। 

उच्च वेतन के बिना उच्च पद का प्रभार देना कानून का उल्लंघन है

सचिव-सह-चीफ इंजीनियर, चंडीगढ़ बनाम हरिओम शर्मा में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि यदि किसी व्यक्ति को उच्च पद पर पदोन्नत किया जाता है या उस पद पर कार्य करने के लिए रखा जाता है या उसे उच्च पद पर रखने के लिए एक अस्थायी व्यवस्था की जाती है तो उच्च पद के लिए उसे वेतन देने से इनकार करना कानून के विपरीत होगा और सार्वजनिक नीति के भी खिलाफ होगा। यहां तक ​​कि इस तरह की शर्त वाले किसी भी अनुबंध या समझौते को अनुबंध अधिनियम की धारा 23 के मद्देनजर कानून में लागू नहीं किया जा सकेगा। 

प्रभारी अधिकारी के वेतन मामले में हाई कोर्ट का लैंडमार्क जजमेंट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश गण चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र की बेंच ने अपने जजमेंट में कहा कि ट्रिब्यूनल ने रिकॉर्ड की पूरी तरह से जांच किए बिना मूल आवेदन को 'सरसरी तौर पर' खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि श्री उमाकांत पांडे को TGT के तौर पर पहले से मिली सैलरी को एडजस्ट करने के बाद 1 दिसंबर 2004 से 6 मार्च 2008 तक के समय के लिए 6500-10500 पे स्केल के आधार पर वेतन दिया जाए। इसके अलावा, कोर्ट ने 2010 में O.A. फाइल करने की तारीख से असल पेमेंट होने तक सैलरी के अंतर पर 6% सालाना रेट से सिंपल इंटरेस्ट देने का आदेश दिया। रिपोर्ट: उपदेश अवस्थी (पत्रकार एवं विधि सलाहकार)।
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