कभी-कभी ऐसा भी होता है, कोई अधिकारी ना तो जबरदस्ती करता है, ना धमकी देता है, ना दबाव बनाता है, लेकिन काम भी नहीं करता। फिर किसी माध्यम से महिला को बताया जाता है कि, यदि अधिकारी की इच्छा पूरी कर दी जाए तो वह काम कर देगा। ऐसी स्थिति को बलात्कार तो नहीं कहा जा सकता लेकिन मजबूरी का फायदा उठाना कहते हैं। भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं की मजबूरी का फायदा उठाने वाले अधिकारी को आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 68
Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS की धारा 68 'प्राधिकार वाले व्यक्ति द्वारा यौन संबंध' ('Sexual intercourse by a person in authority') नामक अपराध से संबंधित है।
यह धारा उस स्थिति में लागू होती है जब यौन संबंध बलात्कार का अपराध नहीं होता है, लेकिन वह किसी प्राधिकार की स्थिति का दुरुपयोग करके स्थापित किया जाता है।
धारा 68 के तहत अपराध:
कोई भी व्यक्ति जो निम्नलिखित में से कोई एक हो:
1. प्राधिकार की स्थिति में या प्रत्ययी संबंध में हो; या
2. एक लोक सेवक हो; या
3. जेल, रिमांड होम या हिरासत के अन्य स्थान या महिला या बच्चों के संस्थान का अधीक्षक या प्रबंधक हो; या
4. अस्पताल के प्रबंधन पर हो या अस्पताल के कर्मचारियों में हो।
और जो अपनी स्थिति या प्रत्ययी संबंध का दुरुपयोग करके किसी महिला को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित या फुसलाता है, जबकि वह महिला उसकी हिरासत में हो, या उसके प्रभार में हो, या परिसर में उपस्थित हो। यह कृत्य, यदि वह बलात्कार का अपराध नहीं है, तो धारा 68 के तहत दंडनीय होगा।
दंड (Punishment):
इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को सश्रम कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि पाँच वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जो दस वर्ष तक बढ़ सकती है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
स्पष्टीकरण और संबंधित प्रावधान:
1. यौन संबंध की परिभाषा: इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "यौन संबंध" का अर्थ वही होगा जो धारा 63 के खंड (a) से (d) में उल्लिखित कृत्यों का है (स्पष्टीकरण 1)।
2. अधीक्षक का अर्थ: जेल, रिमांड होम या हिरासत के अन्य स्थान या महिला या बच्चों के संस्थान के संबंध में, "अधीक्षक" में ऐसा व्यक्ति शामिल है जो ऐसे संस्थान में कोई अन्य पद धारण करता है जिसके आधार पर वह उसके कैदियों पर कोई अधिकार या नियंत्रण ('authority or control') का प्रयोग कर सकता है (स्पष्टीकरण 3)।
3. अस्पताल और संस्थान: "अस्पताल" और "महिला या बच्चों का संस्थान" शब्दों का वही अर्थ होगा जो धारा 64 की उप-धारा (2) के स्पष्टीकरण के खंड (b) और (d) में है (स्पष्टीकरण 4)।
4. पीड़ित की पहचान का प्रकटीकरण: धारा 72(1) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति धारा 68 के तहत अपराध का शिकार हुआ है, तो पीड़ित की पहचान को मुद्रित या प्रकाशित करने वाले किसी भी मामले को प्रकट करना दंडनीय है, जिसके लिए दो वर्ष तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है।
5. लोक सेवक द्वारा कानूनी दायित्व: यदि कोई लोक सेवक धारा 68 के तहत संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना को रिकॉर्ड करने में विफल रहता है, तो उसे कठोर कारावास से दंडित किया जा सकता है जिसकी अवधि छह महीने से कम नहीं होगी लेकिन जो दो साल तक बढ़ सकती है, और वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा (धारा 199(c))।
संक्षेप में, धारा 68 को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376C के तहत प्रावधानों को समेकित करके 'महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों' से संबंधित अध्याय V में शामिल किया गया है।
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