26 नवंबर भारत का संविधान दिवस है। आज हम आपको बताएंगे कि भारत का संविधान किन महान नेताओं ने बनाया और भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकार कौन थे। भारत के संविधान को बनाने में कितना बौद्धिक श्रम लगा, जिसके कारण भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
भारत के संविधान निर्माण में 7 महान व्यक्तियों का योगदान
- पंडित जवाहरलाल नेहरू: प्रस्तावना का मूल मसौदा (Objectives Resolution 13 दिसंबर 1946), संघ शक्ति।
- सरदार वल्लभभाई पटेल: रियासतों का विलय, अल्पसंख्यक अधिकार, प्रांतीय संविधान।
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद: संविधान सभा के अध्यक्ष।
- अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर: तकनीकी और कानूनी विशेषज्ञता।
- के.एम. मुंशी: हिंदू कोड बिल से जुड़े विचार, मौलिक अधिकार।
- बेनेगल नरसिंग राव: संविधान की हैंड-राइटेन कॉपी तैयार की (प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने लिखा, शोभागी के साथ चित्रित)।
- एस.एन. मुखर्जी: संविधान सभा के मुख्य सचिव, सभी बैठकों के मिनट्स तैयार किए।
भारत के संविधान के 2 मुख्य वास्तुकार:
भारत के संविधान के मुख्य वास्तुकारों में दो नाम प्रमुखता से आते हैं। आप कह सकते हैं कि यदि यह दोनों नहीं होते तो भारत का संविधान इतना विस्तृत और अखंड नहीं होता।
1. सर बी.एन. राव (B.N. Rau): संवैधानिक सलाहकार। यह नाम अक्सर भुला दिया जाता है, लेकिन यह सबसे महत्वपूर्ण था। बी.एन. राव ने दुनिया के 60 से अधिक देशों के संविधानों का अध्ययन किया और First Draft तैयार किया। डॉ. अंबेडकर ने इसी मसौदे पर आगे काम किया था।
2. डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. B.R. Ambedkar): प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष। उन्होंने बी.एन. राव द्वारा तैयार किए गए मसौदे की हर एक धारा (Article) को जांचा, आवश्यक सुधार किया, और संविधान सभा में उठने वाले हर सवाल का तार्किक जवाब दिया।
संविधान लिखने में योगदान देने वालों की संख्या और भूमिका
- कैबिनेट मिशन योजना (1946) के तहत संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा (Constituent Assembly) शुरू में 389 सदस्यों की थी। विभाजन (पार्टिशन) के बाद यह संख्या घटकर 299 सदस्य रह गई।
- सभा ने 11 सत्र किए और कुल मिलाकर लगभग 165 दिनों तक बैठकें हुईं।
- पहली बैठक: 9 दिसंबर 1946 और अंतिम बैठक: 24 नवंबर 1949 को हुई।
- भारत का संविधान बनाने में कुल 2 वर्ष, 11 महीने, 18 दिन का समय लगा।
- सदस्यों ने कुल 7,635 संशोधन पेश किए, जिनमें से लगभग 2,473 संशोधनों पर विस्तार से चर्चा हुई और उन्हें निपटाया गया।
- मूल संविधान में 395 अनुच्छेद (Articles), 22 भाग (Parts) और 8 अनुसूचियां (Schedules) थीं।
- भारत का संविधान बनाने में कुल 64 लाख रुपए खर्च किए गए। यानी आज की तारीख में करीब 1000 करोड रुपए।
भारत के संविधान के मुख्य स्रोत
- विषय - देश/स्रोत
- मौलिक अधिकार - अमेरिका
- संसदीय प्रणाली - ब्रिटेन
- आपातकालीन प्रावधान - जर्मनी (वाइमर संविधान)
- निर्देशक तत्व - आयरलैंड
- संघीय ढांचा - कनाडा
- न्यायिक समीक्षा - अमेरिका
- राष्ट्रपति चुनाव -आयरलैंड
- संशोधन प्रक्रिया - दक्षिण अफ्रीका
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कुल मिलाकर भारत का संविधान 9 महान व्यक्तियों द्वारा बनाया गया, जिनका सहयोग 290 व्यक्तियों द्वारा किया गया। इन सभी 299 लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति का महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति ने बिना कोई छुट्टी लिए लगातार 2 साल 11 महीने और 18 दिन तक काम किया। सभी सदस्यों की समानता का प्रमाण यह भी है कि सभी को 45 रुपए प्रतिदिन भत्ता दिया जाता था। इसमें किसी भी प्रकार का कोई श्रेणीकरण नहीं था।
संविधान क्या होता है, इसकी जरूरत ही क्या है
संविधान (Constitution) किसी देश का सबसे सर्वोच्च और मूलभूत कानून होता है। यह एक लिखित या अलिखित दस्तावेज (या परंपराओं का समूह) होता है जिसमें निम्नलिखित बातें निर्धारित की जाती हैं:
- देश की सरकार कैसे बनेगी, उसकी संरचना क्या होगी (कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका)
- सरकार के विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का बंटवारा
- नागरिकों के मौलिक अधिकार (जैसे बोलने की आजादी, समानता, धर्म की स्वतंत्रता आदि)
- नागरिकों के कर्तव्य
- सरकार की शक्तियों की सीमाएँ (ताकि वह मनमानी न कर सके)
- संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया
- आपातकाल, चुनाव, संघ-राज्य संबंध जैसे महत्वपूर्ण विषय
संविधान की जरूरत क्यों है?
संविधान देश का “मूल कानून” या “खेल का नियम-पुस्तिका” होता है। बाकी सारे कानून इसी के अधीन होते हैं। अगर कोई कानून संविधान के खिलाफ है, तो वह अवैध हो जाता है।
1. सरकार की मनमानी रोकना
बिना संविधान के सत्ता में बैठा व्यक्ति या समूह जैसा चाहे वैसा कर सकता है। संविधान सरकार को बताता है कि “इतना ही अधिकार है, इससे ज्यादा नहीं”।
2. नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) लिखे होने से सरकार या कोई भी व्यक्ति आपको आपके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता। भारत में अनुच्छेद 32 के तहत आप सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं अगर आपके अधिकारों का हनन हो।
3. लोकतंत्र को मजबूत बनाना
स्वतंत्र चुनाव, स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रेस की आजादी – ये सब संविधान से ही मिलते हैं।
4. विविधता में एकता
भारत जैसे बहुभाषी, बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक देश में संविधान ही वह गोंद है जो सबको एक साथ जोड़े रखता है। यह सबको समान अधिकार देता है और भेदभाव रोकता है।
5. स्थिरता और निरंतरता
सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन संविधान बना रहता है। इससे देश में स्थिरता आती है। लोग जानते हैं कि उनके अधिकार सुरक्षित हैं चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए।
6. विवाद सुलझाने का आधार
केंद्र-राज्य विवाद, धर्म-राज्य संबंध, संपत्ति के अधिकार जैसे जटिल सवालों का जवाब संविधान में पहले से होता है।
उदाहरण से समझिए:
- अगर संविधान न होता तो कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री यह कह सकता था – “मैंने तय किया कि अब से प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी जाएगी” या “अब से कुछ जातियों को वोट देने का अधिकार नहीं होगा”। संविधान होने की वजह से ऐसा नहीं हो सकता। उसे संविधान में संशोधन करना पड़ेगा जो बहुत कठिन प्रक्रिया है और जनता की सहमति चाहिए।
निष्कर्ष: संविधान एक “सामाजिक अनुबंध” है जिस पर पूरा देश सहमत होता है कि हम सब इसी नियम से चलेंगे। यह सरकार को जनता का सेवक बनाता है, मालिक नहीं। इसलिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ठीक ही कहा था –
“संविधान चाहे जितना अच्छा हो, अगर उसे चलाने वाले लोग बुरे हुए तो वह बुरा ही साबित होगा। संविधान चाहे जितना बुरा हो, अगर उसे चलाने वाले लोग अच्छे हुए तो वह अच्छा ही साबित होगा।”
लेकिन अच्छे लोगों के लिए भी एक मजबूत संविधान का ढांचा होना जरूरी है – ताकि बुरे लोग सत्ता में आने पर भी ज्यादा नुकसान न कर सकें।
इसलिए संविधान किसी देश की आत्मा होता है।
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