Sharad purnima kab hai, शरद पूर्णिमा की तारीख, शुभ मुहूर्त एवं शास्त्रोक्त मार्गदर्शन

Bhopal Samachar
ग्रेगोरियन कैलेंडर के आधार पर भारतीय तीज-त्यौहार का निर्धारण करने वाले लोग शरद पूर्णिमा की तारीख को लेकर थोड़े से कंफ्यूज हैं। इस आर्टिकल में, मैं आपको बताऊंगा कि शरद पूर्णिमा की सही तारीख क्या है। शुभ मुहूर्त क्या है और शरद पूर्णिमा के लिए शास्त्रोक्त मार्गदर्शन क्या है। 

पूर्णिमा क्या है: सबसे पहले जानना जरूरी है

पूर्णिमा हिंदू पंचांग की एक तिथि है जो अंतरिक्ष में सूर्य और चंद्रमा की एक विशेष स्थिति को प्रदर्शित करती है। जब चंद्रमा और सूर्य की दीर्घांश (Longitude) में 180 डिग्री का अंतर होता है। यानी चंद्रमा पृथ्वी के सामने और सूर्य पृथ्वी के पीछे होता है। इस स्थिति के कारण पृथ्वी से चंद्रमा का पूर्ण प्रकाशित दिखाई देता है। अंतरिक्ष में सूर्य और चंद्रमा की इस स्थिति को पूर्णिमा कहते हैं। हिंदू कैलेंडर अर्थात भारतीय पंचांग में चंद्रमा की गति के आधार पर तिथि का निर्धारण किया जाता है और सूर्य के उदय के आधार पर दिवस के प्रारंभ का निर्धारण किया जाता है। यही कारण है के हिंदू कैलेंडर अर्थात भारतीय पंचांग में 15 दिन का एक पक्ष होता है। पूर्णिमा के 15 दिन बाद अमावस्या आती है और इस दिन चंद्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं देता। 

शरद पूर्णिमा किसे कहते हैं

हिंदू पंचांग का सातवां महीना, आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा अथवा “कोजागरी पूर्णिमा” या “रास पूर्णिमा” कहते हैं। हिंदू पंचांग में अंतरिक्ष की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए मनुष्यों को कर्म के लिए निर्देशित किया गया है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा समस्त 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात्रि में चंद्रमा का प्रकाश अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक होता है। भगवान श्री कृष्ण की कथाओं में वर्णन मिलता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि वे वर्ष का सबसे बड़ा "रास" करते हैं। इसलिए कृष्ण भक्तों द्वारा इस रात्रि को "रास पूर्णिमा" भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रासलीला का मतलब होता है संगीतमय रात्रि जागरण। 

2025 में शरद पूर्णिमा की सटीक तिथि और समय 

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आपके कैलेंडर के अनुसार किस तारीख को आएगी और शुभ मुहूर्त क्या होगा, मैं इसका वर्णन करने जा रहा हूं। भारत की भौगोलिक स्थिति के अनुसार समय में 10 मिनट का अंतर हो सकता है।
  • पूर्णिमा तिथि आरंभ (Start): 6 अक्टूबर 2025, दोपहर 12:23 बजे के आसपास होगा।
  • पूर्णिमा तिथि समाप्ति (End): 7 अक्टूबर 2025, सुबह 9:16 बजे।
इस प्रकार बिल्कुल स्पष्ट है कि, शरद पूर्णिमा की रात्रि, शरद पूर्णिमा का चंद्र, 6-7 अक्टूबर की मध्य रात्रि में होगा। 6 अक्टूबर को सूर्यास्त के पक्ष और 7 अक्टूबर को सूर्योदय के पूर्व शरद पूर्णिमा होगी। इसी रात्रि में, रास रचाया जाएगा, जागरण होगा, स्वास्थ्यवर्धक आयुर्वेदिक दावों का निर्माण होगा एवं अन्य सभी प्रकार की विधियों का आयोजन भी इसी रात्रि में होगा। 

शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की पूजा का मुहूर्त और विधि

  • चंद्रमा के दर्शन और पूजा का मुहूर्त: दिनांक 6 अक्टूबर को सूर्यास्त के पश्चात रात्रि 8:00 बजे से रात्रि 11:45 बजे तक। 
  • रात्रि जागरण के लिए विशेष समय: सूर्यास्त के पश्चात से रात्रि 12:00 बजे तक। 
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त: रात्रि 10 से 12:00 बजे तक। 

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि

शाम को घर की सफ़ाई करें और आंगन / बालकनी (ऐसा स्थान जहां से चंद्रमा के दर्शन किए जा सकें) में एक स्वच्छ चौकी रखें।
उस पर सफेद वस्त्र बिछाएँ और भगवान विष्णु व लक्ष्मी माता की तस्वीर/प्रतिमा स्थापित करें।
चौकी के पास चंद्र दर्शन हेतु आसन बना लें (यहीं पर बैठकर दर्शन करेंगे)।

पूजा के लिए सामग्री रखें:
कलश, गंगाजल, अक्षत, फूल, दीपक, धूप, सफेद मिठाई या खीर, शुद्ध जल से भरा पात्र।
अर्घ्य के लिए चांदी, या कांसे का लोटा। 

खीर तैयार करना: 
गाय के दूध से खीर (दूध और चावल की खीर) बनाएं। इसे छोटे मिट्टी या किसी अन्य साफ बर्तन में भरकर, उसे छलनी से ढककर रात में सीधे चंद्रमा की रोशनी में खुले आसमान के नीचे रखें। यह खीर अमृत तुल्य मानी जाती है

अर्घ्य की तैयारी: 
एक कलश या लोटे में शुद्ध जल लें। उसमें कच्चा दूध, चावल, मिश्री (या चीनी), और सफेद फूल (जैसे चमेली) मिला लें। 

अर्घ्य देने का तरीका: 
चंद्रमा के सामने खड़े हों (या चंद्रमा को देखते हुए)। दोनों हाथों से कलश को पकड़कर, धीरे-धीरे धार बनाते हुए चंद्र देव को अर्घ्य दें। 

संध्याकालीन पूजा
दीपक जलाएं, धूप-आरती प्रज्वलित करें और विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करें। 
नवीन वस्त्र और सुगंध अर्पित करें। पुष्प आदि से श्रृंगार करें। दूध से बने हुए मिष्ठान अर्पित करें।
“ॐ विष्णवे नमः” और “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्रों का जाप करें।
कुछ परिवारों में इस समय व्रत-उपवास खोलने की प्रथा भी होती है। 

चंद्रमा पूजा (मुख्य अनुष्ठान)
चंद्र उदय के बाद (लगभग 10 बजे के बाद) खुले आसमान में खड़े होकर चंद्र दर्शन करें।
चंद्र देव को शुद्ध जल, दूध, खीर या मिश्रित अर्घ्य अर्पित करें, लोटे में जल लेकर चंद्रमा की ओर मुख करके धीरे-धीरे गिराएं और निरंतर मंत्र का उच्चारण करते रहें।
मंत्र: “ॐ सोमाय नमः” या “ॐ चंद्राय नमः”
इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर चंद्र देव को प्रणाम करें और अपने स्वास्थ्य, धन-समृद्धि और मानसिक शांति की कामना करें।
चांदनी में रखी हुई खीर को परिवार के साथ मध्यरात्रि (रात्रि 12:00 बजे) के बाद प्रसाद रूप में ग्रहण करें।
परंपरा के अनुसार खीर को चांदनी में खुला रखते हैं ताकि उसमें चंद्र-किरणों की “अमृत” ऊर्जा संचित हो सके। 
प्रसाद: 
रात भर चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर को अगले दिन सूर्योदय से पहले पूरे परिवार में प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। 

ध्यान और मंत्र जाप 
ध्यान और मंत्र जाप इस रात बहुत फलदायी माने जाते हैं। विशेषकर “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप। 

शरद पूर्णिमा की रात्रि क्या न करें

  • इस रात झगड़ा, शोर-शराबा या अपवित्र कार्य न करें।
  • बालकनी/आंगन में रखे प्रसाद को ढकें नहीं। पारंपरिक रूप से उसे खुला रखा जाता है ताकि चांदनी पड़े।
  • सूर्यास्त के बाद पूजा करने से पहले स्नान अवश्य करें। 
लेखक: आचार्य कमलांश (ज्योतिष विशेषज्ञ)।
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!