मध्य प्रदेश सरकार ने प्रमोशन से भरे जाने वाले सभी 100% पद आरक्षित कर दिए हैं। सरकार सामान्य वर्ग को प्रमोशन के मूड में नहीं है। यह खुलासा आज हाईकोर्ट में हुआ जब सरकार की तरफ से जवाब प्रस्तुत किया गया। सरकार के जवाब को देखकर विद्वान न्यायाधीशों ने भी आश्चर्य जताया। 
अधिकारियों ने सभी पद आरक्षित वर्ग से भर दिए
सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण मामले में सरकार की तरफ से आज हाईकोर्ट में मध्य प्रदेश सरकार की ओर से, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष, जवाब प्रस्तुत किया गया। कोर्ट ने किसी एक विभाग के आंकड़े देखने के बाद आश्चर्य जताते हुए कहा कि इसमें तो सभी पद आरक्षित वर्ग से भरे हैं, ऐसे में समानता का क्या होगा। कोर्ट ने प्रथमदृष्टया सरकार के आंकड़ों और जवाब पर असंतोष जताया। कोर्ट ने सरकार को पदोन्नति नीति और एडीकेसी वह रिप्रेजेंटेशन पर दोबारा कार्य कर स्पष्ट जवाब पेश करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई 12 नवंबर को निर्धारित की है। 
सरकार ने सीलबंद लिफाफे में क्वांटिफायबल डाटा पेश किया
विगत सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में कहा था कि नई प्रमोशन पालिसी 2016 के बाद के प्रमोशन पर लागू होगी, जबकि 2016 से पहले के प्रमोशन में वर्ष 2002 के नियमों प्रभावी रहेंगे। इसके बाद के प्रमोशन में वर्ष 2025 के नियम प्रभावी होंगे। कोर्ट ने सरकार को नए नियम के अनुसार क्वांटिफायबल डेटा एकत्र करते हुए सील बंद लिफाफे में पेश करने कहा था।
भोपाल की डॉ. स्वाति तिवारी, अनारक्षित वर्ग के लिए लड़ रही हैं
भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 को चुनौती दी गई है। दलील दी गई कि वर्ष 2002 के नियमों को हाई कोर्ट के द्वारा आरबी राय के केस में समाप्त किया जा चुका है। इसके विरुद्ध एमपी शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है, इसके बावजूद एमपी शासन ने महज नाम मात्र का शाब्दिक परिवर्तन कर जस के तस नियम बना दिए। वहीं मामले में अजाक्स संघ सहित आरक्षित वर्ग की ओर से अनेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की हैं।
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