भारत और चीन, दो पड़ोसी देश हैं परंतु सन 1962 में हुई लड़ाई के बाद से आज तक भारत और चीन, दुनिया के सामने कभी एक साथ खड़े नहीं होते, लेकिन एक मामले में चीन और भारत एक साथ दिखाई दे रहे हैं और दुनिया का नेतृत्व भी कर रहे हैं। 
वसुधैव कुटुंबकम: चीन और भारत पूरी दुनिया की मदद कर रहे हैं
Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन और भारत बहुत तेजी से क्लीन एनर्जी का उत्पादन कर रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि अगर ये दोनों देश अपनी वर्तमान गति से क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ते रहे, तो 2030 तक पावर सेक्टर से निकलने वाला कार्बन उत्सर्जन घटना शुरू हो जाएगा। यह खबर न सिर्फ इन देशों के लिए, बल्कि ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन के लिए एक उम्मीद की किरण है।
रिपोर्ट कहती है कि चीन, भारत और इंडोनेशिया; ये तीन देश मिलकर दुनिया के कोयला उपयोग का 73 प्रतिशत हिस्सा संभालते हैं। ऐसे में, यहां की कोई भी सकारात्मक सराहनीय कदम वैश्विक एमिशन ट्रेंड को प्रभावित करने में सक्षम है। रिपोर्ट बताती है कि कोयले का पीक आने का मतलब है कि भविष्य में रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा मिलेगा, जो नेट जीरो लक्ष्यों को साकार करने में मददगार साबित होगा।
चीन ने दिखाया रास्ता, भारत तेजी से पकड़ रहा रफ्तार
चीन इस बदलाव का नेतृत्व कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इतनी नई क्लीन एनर्जी क्षमता जोड़ी है कि उसकी उभरती बिजली मांग को पूरी तरह कोयले के बिना पूरा किया जा सकता है। CREA के को-फाउंडर और लीड एनालिस्ट लॉरी माइलिविर्टा कहते हैं, “चीन का कोयला उपयोग 2024 से ही गिरावट की ओर बढ़ चला है। अगर यही ट्रेंड बना रहा, तो कोयले की खपत का पीक बहुत निकट भविष्य में आ सकता है।” यह उपलब्धि निश्चित रूप से प्रेरणादायक है, खासकर जब हम एशिया के इस विशालकाय को देखते हैं।
भारत की कहानी थोड़ी अलग रंग लिए हुए है। यहां बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है, आबादी और अर्थव्यवस्था दोनों ही उछाल पर हैं। फिर भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल पावर कैपेसिटी लक्ष्य का आधा हिस्सा पहले ही हासिल हो चुका है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह गति बनी रही, तो भारत में कोयला बिजली 2030 से पूर्व ही अपने पीक पर पहुंच जाएगी। CREA के एनालिस्ट मनोज कुमार जोड़ते हैं, “भारत अगर अपने मौजूदा टारगेट्स को पूरा करता रहा, तो कोयले का उपयोग 2030 से पहले ही कम होने लगेगा। लेकिन इसके लिए ग्रिड की लचीलापन, स्टोरेज सॉल्यूशंस और ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना अनिवार्य होगा।” यह दृष्टिकोण भारत की ऊर्जा यात्रा को और अधिक मजबूत बनाने की दिशा में एक संतुलित सलाह देता है।
इंडोनेशिया का सोलर विजन: चुनौतियां और अवसर
इंडोनेशिया भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। राष्ट्रपति प्राबोवो सुभियांतो का 100 गीगावॉट सोलर प्रोग्राम अगर समय पर अमल में आया, तो वहां कोयला बिजली भी 2030 तक चरम पर पहुंचकर घटने लगेगी। हालांकि, वर्तमान ऊर्जा प्लान में अभी कुछ वर्षों के लिए फॉसिल ईंधनों की वृद्धि का प्रावधान है। CREA की एनालिस्ट कैथरीन हासन कहती हैं, “अब असली मौका इस विजन को जमीनी हकीकत में बदलने का है। नई ऊर्जा क्षमता में क्लीन एनर्जी को प्राथमिकता देकर हम इस लक्ष्य को साकार कर सकते हैं।” यह बयान न केवल आशावादी है, बल्कि व्यावहारिक कदमों की याद दिलाता है।
वेस्टेड इंटरेस्ट्स: सबसे बड़ा खतरा
रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण चेतावनी भी देती है। नई कोयला परियोजनाओं को मंजूरी मिलती रही, तो वेस्टेड इंटरेस्ट्स बन सकते हैं जो एनर्जी ट्रांजिशन को धीमा कर देंगे। CREA का अनुमान है कि अगर इन देशों में कोयले का उपयोग 2030 के बाद तेजी से घटाया गया, तो कार्बन एमिशन में कमी भारत के 2019 के कुल उत्सर्जन के बराबर होगी। लॉरी माइलिविर्टा आगे कहते हैं, “2030 के बाद भी अगर रिन्यूएबल एनर्जी की ग्रोथ रेट बरकरार रही, तो यह कमी पावर सेक्टर के लिए ऐतिहासिक होगी। लेकिन अगर गति मंद पड़ी, तो यह उपलब्धि हाथ से फिसल सकती है।” यह चिंता जायज है, क्योंकि सतत प्रयास ही सच्ची प्रगति सुनिश्चित करते हैं।
भारत के लिए संदेश: अब 'कैसे' का दौर
भारत के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रिन्यूएबल पोटेंशियल है। सोलर और विंड दोनों क्षेत्रों में तेजी साफ दिख रही है। 500 गीगावॉट का टारगेट अब कागज से निकलकर जमीनी स्तर पर उतर चुका है। फिर भी, CREA की रिपोर्ट याद दिलाती है कि ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टोरेज और डिस्कॉम सुधारों के बिना यह ट्रांजिशन अधूरा रहेगा। भारत के लिए यह अब 'कब' का सवाल नहीं, बल्कि 'कैसे' का है। एक ऐसा कैसे जो समावेशी, कुशल और सस्टेनेबल हो।
एक साझा, हरा-भरा भविष्य
भारत, चीन और इंडोनेशिया की यह संयुक्त कहानी बयान करती है कि एशिया अब सिर्फ कोयले का केंद्र नहीं, बल्कि क्लाइमेट एक्शन का उभरता केंद्र बन सकता है। अगर अगले पांच वर्षों में इनकी नीतियां क्लीन एनर्जी को प्राथमिकता देती रहीं, तो वैश्विक हवा को साफ करने की शुरुआत यहीं से हो सकती है। यह बदलाव निश्चित रूप से एक विनम्र लेकिन शक्तिशाली कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ विरासत छोड़ेगा। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना।
