नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कर्मचारियों के मामले में एक महत्वपूर्ण न्याय स्थापित किया है। पूरे देश में इस प्रकार के लाखों विवाद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि, जिस आरोप का उल्लेख कारण बताओ नोटिस में नहीं है, उसके आधार पर कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। इसी के साथ प्रमोशन के मामले में भी एक न्याय स्थापित किया गया।
नियुक्ति देने के बाद प्राप्तांक के आधार पर सेवा समाप्त कर दी
याचिकाकर्ताओं को झारखंड शासन द्वारा इंटरमीडिएट प्रशिक्षित शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। 2015 में उनकी नियुक्ति की गई और कुछ महीने बाद 2016 में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई। इससे पहले उनको जो कारण बताओं नोटिस दिया गया था उसमें लिखा था कि आपके पास इस पद के लिए अनिवार्य न्यूनतम 45% अंक नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने नोटिस के जवाब में बताया कि, वह अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार हैं और उन्हें 5% की छूट प्राप्त है। इस प्रकार 40% अथवा इससे अधिक अंक की स्थिति में उनको नियुक्ति मिलनी चाहिए एवं उनके प्राप्तांक 40% से अधिक है। इसके बाद बताया गया कि उनकी मार्कशीट में 40% की गणना की विधि गलत है। वोकेशनल मार्क्स की गणना नहीं की जानी चाहिए थी। व्यावसायिक अंकों को माइनस करने के बाद प्राप्तांक 40% से कम हो जाते हैं। इसलिए आपकी सेवाएं समाप्त की जाती है।
डिपार्टमेंटल इंक्वायरी में कर्मचारियों को हर आरोप के जवाब का अवसर मिलना चाहिए
इस आदेश के विरुद्ध शिक्षकों ने हाई कोर्ट में रिट याचिका फाइल की। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने उनकी सेवा समाप्ति को नियम विरुद्ध घोषित करते हुए, सेवाएं बहाल कर दी लेकिन हाई कोर्ट की डबल बेंच ने सेवा समाप्ति के आदेश को सही ठहराया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की गई। सर्वोच्च न्यायालय में दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद विद्वान न्यायाधीश जस्टिस दीपंकर दत्ता एवं जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि, नोटिस प्राप्त करने वाले कर्मचारियों ने अपने खिलाफ लगाए गए आप का सफलतापूर्वक बचाव किया था लेकिन फिर भी उसको एक अलग आप के लिए दोषी घोषित करते हुए बर्खास्त कर दिया गया, इसके संबंध में उसको कोई नोटिस नहीं दिया गया और ना ही उसको अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
ऐसे मामले में मूल आरोप से भिन्न दोषसिद्धि बिना उचित अवसर दिए उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करती है और किसी भी आदेश या कार्रवाई को अस्थिर कर देती है। प्रतिवादियों ने अपीलकर्ताओं की सेवाओं को बिना किसी न्यायोचित कारण के और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अत्यधिक मनमाने और अवैध तरीके से समाप्त कर दिया था, इसलिए अपीलकर्ताओं की सेवाओं को समाप्त करने वाले आदेश भी रद्द किए जाते हैं।
काम नहीं किया तो प्रमोशन भी नहीं मिलेगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिका कर्ताओं को उनकी नियुक्ति की तारीख से निरंतर सेवा में उपस्थित माना जाए और उनके वेतन सहित सभी प्रकार के लाभ एवं वरिष्ठता प्रदान की जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने न्याय स्थापित किया कि, इस विवाद के दौरान व्यतीत हुई अवधि का उपयोग प्रमोशन के लिए नहीं होगा क्योंकि प्रमोशन के लिए अनुभव आवश्यक है और अनुभव कार्य करने से ही प्राप्त होता है। रिपोर्ट: राजेश्वरी बंदेवार।