Climate Crisis यानी जलवायु संकट के बारे में भले ही लोग नहीं जानते, कि वो लोगों को प्रभावित कर रहा है। पिछले 5 दिनों से जैसा मौसम बना हुआ है, वो जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है। अब आपके सामने 2 विकल्प हैं, आपको नई नौकरियां चाहिए या तूफान, बाढ़ और सूखा। यदि नौकरियां चाहिए तो सरकार से कहिए Climate Crisis के खिलाफ बड़े प्रोजेक्ट शुरू करे और यदि तूफान, बाढ़ और सूखा में आनंद है तो इस न्यूज को पढ़ना बंद कर दीजिए।
पहली बार, दुनिया का उत्सर्जन वक्र नीचे झुकना शुरू हुआ है
दस साल पहले जब Paris Agreement हुआ था, दुनिया ने तय किया था कि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखना है। अब, 2025 में आई UNFCCC की नई Synthesis Report बताती है कि यह सफर मुश्किल ज़रूर है, लेकिन ठहर नहीं गया है। पहली बार, दुनिया का उत्सर्जन वक्र नीचे झुकना शुरू हुआ है, यानी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अब बढ़ नहीं रहा, बल्कि धीरे-धीरे घटने लगा है।
2035 तक का समय सबसे महत्वपूर्ण
रिपोर्ट में शामिल देशों की नई और अपडेटेड राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं (NDCs) वैश्विक उत्सर्जन का करीब एक-तिहाई हिस्सा कवर करती हैं। इनमें से 88% देशों ने अपनी योजना COP28 के Global Stocktake के नतीजों से प्रभावित होकर बनाई है, जबकि 89% देशों ने पूरे अर्थव्यवस्था स्तर पर लक्ष्य तय किए हैं। लगभग 73% NDCs में जलवायु अनुकूलन (Adaptation) के तत्व हैं, और एक-तिहाई देशों ने Loss and Damage यानी जलवायु आपदाओं से हुए नुकसान को अपनी योजनाओं में शामिल किया है।
रिपोर्ट कहती है कि अगर मौजूदा लक्ष्यों को पूरी तरह लागू किया जाए, तो 2035 तक वैश्विक उत्सर्जन करीब 10% घट सकता है।
UNFCCC के Executive Secretary Simon Stiell ने कहा, “मानवता अब उत्सर्जन को नीचे की ओर मोड़ रही है, लेकिन रफ्तार बहुत कम है। हमें अब और तेज़ चलना होगा, और उन देशों की मदद करनी होगी जो इस संकट के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं।”
भारत की जलवायु यात्रा: अब हर सेक्टर जुड़ा एक साझा मिशन से
भारत इस रिपोर्ट में एक ऐसे देश के रूप में उभरता है जिसने जलवायु कार्रवाई को आर्थिक विकास की रणनीति के साथ जोड़ा है। Climate Trends की Aarti Khosla कहती हैं, “भारत उन 89% देशों में है जिनके NDCs में ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, कृषि, जंगल और भवन क्षेत्र सब शामिल हैं। भारत का सेमी-फेडरल मॉडल, जहां केंद्र नीति बनाता है और राज्य उसे लागू करते हैं, अब जलवायु शासन का नया चेहरा बन रहा है।”
तमिलनाडु की Green Climate Company से लेकर गुजरात के सौर मिशन तक, भारत के राज्य अब सिर्फ नीतियों के क्रियान्वयनकर्ता नहीं, बल्कि national decarbonization के सह-निर्माता बन गए हैं।
क्लाइमेट और इकॉनमी: अब एक ही कहानी के दो किरदार
रिपोर्ट का बड़ा संदेश यह है कि climate action अब सिर्फ पर्यावरण की बात नहीं रही, यह अब आर्थिक स्थिरता और विकास का भी स्तंभ है। We Mean Business Coalition की CEO Maria Mendiluce कहती हैं, “हर NDC सिर्फ एक क्लाइमेट वादा नहीं, बल्कि एक इन्वेस्टमेंट प्रॉस्पेक्टस है, यह दुनिया के बाज़ारों को बताता है कि किस दिशा में नीति और अवसर बढ़ेंगे।”
दरअसल, renewables अब कोयले को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा ऊर्जा स्रोत बन गए हैं। Global Renewables Alliance के Bruce Douglas के अनुसार, “Paris Agreement काम कर रहा है, लेकिन हम अभी रास्ते से भटके हुए हैं। टारगेट्स हैं, मगर उन्हें धरातल पर लाने के लिए तेज़ कदम और मज़बूत नीतियों की ज़रूरत है।”
गति बढ़ाने का वक्त
रिपोर्ट यह भी साफ करती है कि जो रास्ता हमने चुना है, वह सही है, पर रफ्तार अभी कम है। E3G की Madhura Joshi कहती हैं, “2030 तक उत्सर्जन का स्थिर होना तो संभव दिख रहा है, लेकिन अभी यह Paris Agreement के 1.5°C लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। ज़्यादा महत्वाकांक्षी कदमों के लिए फाइनेंस, टेक्नोलॉजी और कैपेसिटी बिल्डिंग की बराबर पहुंच जरूरी है।”
इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए UN Climate Change ने कहा कि अब COP30 दुनिया के लिए “Implementation COP” बनना चाहिए। ऐसा COP जो केवल लक्ष्यों पर नहीं, बल्कि क्रियान्वयन की स्पीड पर फोकस करे।
कहानी का सार
दुनिया अब दो मोर्चों पर एक साथ लड़ रही है, एक तरफ, हर साल और भी तीव्र होते तूफान, बाढ़, और सूखे;
दूसरी तरफ, बढ़ती उम्मीदें कि climate action अब नौकरियां, निवेश, और नवाचार के नए रास्ते खोल सकती है।
रिपोर्ट बताती है कि पेरिस समझौते के दस साल बाद, दुनिया ने दिशा सही पकड़ ली है। अब बस ज़रूरत है तेज़ कदमों की। क्योंकि जलवायु की इस दौड़ में हम अभी भी रेस में हैं, बस अब रफ्तार तय करेगी कि यह कहानी जीत में बदलती है या चेतावनी में। रिपोर्ट: निशांत सक्सेना।
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