मध्यप्रदेश के ग्वालियर चंबल में फैल चुकी जातिवाद की राजनीति को अब पूरे मध्यप्रदेश में फैलाने के लिए धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को माध्यम बनाया जा रहा है। धीरेन्द्र कृष्ण दिल्ली में यात्रा निकाल रहे हैं और उसका विरोध भोपाल में किया जा रहा है। भीम आर्मी के कनेक्ट दलित पिछड़ा समाज संगठन के अध्यक्ष दामोदर यादव ने आज भोपाल में प्रेस कांफ्रेंस कर मध्यप्रदेश के सभी जिलों में प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।
राष्ट्रपति ने नहीं सुनी तो कोर्ट जाएंगे
संविधान में व्यवस्था है कि जब कोर्ट से भी न्याय ना मिले तो भारत का नागरिक राष्ट्रपति के पास जा सकता है परंतु संविधान के नाम पर पॉलिटिक्स करने वाले दलित पिछड़ा समाज संगठन के अध्यक्ष दामोदर यादव का कहना है कि हमने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। यदि उन्होंने धीरेन्द्र कृष्ण की यात्रा को रोकने का आदेश नहीं दिया तो हम कोर्ट जाएंगे। यहां इस बात का पता लगाना जरूरी है कि क्या राष्ट्रपति महोदय, इस प्रकार सीधे उनके पास आए आवेदन पर कार्रवाई कर सकते हैं। भारत के संविधान में इसकी क्या व्यवस्था है।
क्या राष्ट्रपति इस प्रकार के चिट्ठी पर कार्रवाई कर सकते हैं
भारत के संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रमुख (Ceremonial Head) हैं, जिनकी शक्तियाँ मुख्य रूप से औपचारिक और सलाहकारी प्रकृति की हैं। वे स्वतंत्र रूप से कार्यकारी निर्णय नहीं ले सकते। इस प्रकार, दलित पिछड़ा समाज संगठन के अध्यक्ष दामोदर यादव द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र या याचिका पर राष्ट्रपति महोदय व्यक्तिगत रूप से सीधी कार्रवाई (जैसे धीरेंद्र कृष्ण की यात्रा को रोकने का आदेश) नहीं कर सकते। बेहतर होता कि दामोदर यादव, दिल्ली सरकार को ज्ञापन देते और वहीं पर प्रदर्शन भी करते।
राष्ट्रपति को लिखे पत्रों का क्या होता है
राष्ट्रपति भवन को प्राप्त होने वाली सामान्य याचिकाओं या पत्रों को संबंधित सरकारी विभागों, मंत्रालयों या राज्य सरकारों को अग्रेषित (फॉरवर्ड) किया जाता है, जहाँ उचित कार्रवाई की जाती है। नागरिकों को राष्ट्रपति को पत्र लिखने की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन यह एक औपचारिक प्रक्रिया है जो हेल्पलाइन (https://helpline.rb.nic.in/) के माध्यम से संचालित होती है।
भारत के संविधान अनुच्छेद 72 के तहत केवल दया याचिकाओं (मृत्युदंड या क्षमा संबंधी) पर राष्ट्रपति सीधे निर्णय ले सकते हैं, लेकिन यह सामान्य याचिकाओं पर लागू नहीं होता।
दामोदर यादव को क्या करना चाहिए था
संविधान द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अनुसार धीरेंद्र शास्त्री की धार्मिक यात्रा को रोकना राज्य सरकार का दायित्व है (संविधान की सातवीं अनुसूची, राज्य सूची)। राष्ट्रपति अनुच्छेद 355 के तहत राज्यों की रक्षा और शांति बनाए रखने में रुचि रख सकते हैं, लेकिन यह भी मंत्रिपरिषद की सलाह पर होता है, न कि सीधे पत्र पर। दामोदर यादव को दिल्ली सरकार से निवेदन करना चाहिए। यदि दिल्ली सरकार कार्रवाई ना करे तो प्रदर्शन करना चाहिए।
तो फिर दामोदर यादव ने राष्ट्रपति को चिट्ठी क्यों लिखी
क्योंकि उनको पता है कि लोगों ने संविधान नहीं पढ़ा है। दामोदर यादव, मध्यप्रदेश में अपनी पॉलिटिकल हाईट बढ़ाने के लिए इस प्रकार के मुद्दे उठा रहे हैं। जिस यात्रा का मध्यप्रदेश के कोई संबंध ही नहीं है, उसके विरोध में मध्यप्रदेश में प्रदर्शन करवाकर अपनी शक्ति का परीक्षण कर रहे हैं। यह सबकुछ 2028 के चुनाव की तैयारी है।
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