नाबालिग द्वारा गंभीर अपराध मामले में नए दिशानिर्देश जारी किए, हाईकोर्ट ने धारा 15 को अस्पष्ट बताया

इलाहाबाद, 11 अक्टूबर 2025
: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 की धारा 15(1) को "absolutely vague" करार देते हुए कहा कि यह प्रावधान किशोरों की प्रारंभिक मूल्यांकन प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं करता। कोर्ट ने गंभीर अपराधों में शामिल 16 वर्ष या उससे अधिक आयु के बच्चों के ट्रायल के लिए जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) और चिल्ड्रन कोर्ट के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

जस्टिस सिद्धार्थ ने अपने फैसले में कहा, "धारा 15(1) में किशोरों के प्रारंभिक मूल्यांकन के लिए मनोवैज्ञानिकों, साइको-सोशल वर्कर्स या अन्य विशेषज्ञों की मदद लेने की बात कही गई है, लेकिन मूल्यांकन की प्रक्रिया कहीं स्पष्ट नहीं है।" कोर्ट ने इस कमी को गंभीर माना और इसे दूर करने के लिए विस्तृत गाइडलाइंस जारी कीं।

मामले की पृष्ठभूमि
यह टिप्पणी एक हत्या के मामले में आई, जिसमें 17 वर्ष से अधिक उम्र के एक किशोर को वयस्क के रूप में ट्रायल करने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने पाया कि मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए मंगवाई गई थी, जिसमें यह नहीं बताया गया कि किशोर का मूल्यांकन किस तरह के टेस्ट के आधार पर किया गया। कोर्ट ने कहा, "ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां JJB और चिल्ड्रन कोर्ट को अपने क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक नहीं मिले, इसलिए उन्होंने केवल बच्चे से सवाल-जवाब के आधार पर मूल्यांकन किया।"

कोर्ट के दिशानिर्देश
हाईकोर्ट ने किशोरों के प्रारंभिक मूल्यांकन को और पारदर्शी बनाने के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किए:
1. मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट अनिवार्य: JJB को किशोर की बुद्धिमत्ता और उसके कृत्य के परिणामों को समझने की क्षमता का टेस्ट कराने के लिए मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट जरूरी होगी। इसमें बच्चे का EQ (Emotional Quotient) और IQ (Intelligence Quotient) स्पष्ट रूप से उल्लेखित होना चाहिए।
2. शारीरिक और मानसिक क्षमता का आकलन: बोर्ड को बच्चे की शारीरिक और मानसिक क्षमता, गंभीर अपराध करने की योग्यता और इसके परिणामों को समझने की क्षमता का स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज करना होगा।
3. बौद्धिक अक्षमता या मानसिक बीमारी: यदि बच्चे में कोई बौद्धिक अक्षमता या मानसिक बीमारी है, तो उसका विवरण दर्ज करना होगा।
4. सामाजिक जांच: बोर्ड को प्रोबेशन ऑफिसर, चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर या सामाजिक कार्यकर्ता से 15 दिनों के भीतर सामाजिक जांच रिपोर्ट मंगवानी होगी।
5. पिछले रिकॉर्ड: बच्चे के पिछले अपराधों, शिकायतकर्ताओं के नाम और अपराधों की प्रकृति का विवरण दर्ज करना होगा।
6. स्कूल रिकॉर्ड: बच्चे का स्कूल रिकॉर्ड और शिक्षा का विवरण भी मूल्यांकन का हिस्सा होगा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के बारुन चंद्र ठाकुर बनाम मास्टर भोलु मामले का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय व राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को प्रारंभिक मूल्यांकन के लिए दिशानिर्देश जारी करने की बात कही थी, लेकिन अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।

किशोर को राहत
मौजूदा हत्या के मामले में कोर्ट ने किशोर को राहत दी और उसका दोबारा मूल्यांकन करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, "मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं लगती। केवल यह कि किशोर के खिलाफ दो अन्य मामलों में संलिप्तता है, इसे वयस्क के रूप में ट्रायल का आधार नहीं बनाया जा सकता।"

कानूनी प्रतिनिधित्व
किशोर का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अभिषित जायसवाल और औशिम लूथरा ने किया।

यह फैसला जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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