मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में जबरदस्त हंगामा के बाद, उसका रिजल्ट सामने आ गया है। अलीराजपुर जिले की जोबट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक सेना महेश पटेल के पुत्र पुष्पराज पटेल के खिलाफ 14 जुलाई, 2025 को दर्ज FIR को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया है। क्योंकि दोनों पक्षों के बीच में समझौता हो गया था। FIR में दर्ज किया गया था कि विधायक के बेटे ने एक पुलिस आरक्षक को जान से मारने की कोशिश की।
FIR के अनुसार घटना का विवरण
अलीराजपुर के पत्रकार श्री राजेश जयंत की रिपोर्ट के अनुसार: 13 जुलाई, 2025 की रात बिना नंबर प्लेट वाली SUV, जिसे विधायक सेना महेश पटेल के पुत्र पुष्पराज सिंह पटेल चला रहे थे, अचानक अनियंत्रित होकर बैरिकेट्स से टकरा गई। अगले दिन नाइट ड्यूटी पर तैनात दो पुलिसकर्मियों ने आरोप लगाया कि उन्हें जान से मारने की कोशिश की गई। एक कांस्टेबल घायल हुआ। इस घटना के आधार पर पुलिस ने पुष्पराज के खिलाफ हत्या की कोशिश (धारा 307), 109, बीएनएस, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया।
मानसून सत्र में हंगामा हुआ था
इस मामले को लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में हंगामा हुआ था। यह हंगामा न्याय के लिए नहीं बल्कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए किया गया था। कांग्रेस पार्टी के विधायक अप्रत्यक्ष रूप से सरकार से यह कहना चाहते थे कि यदि विधायक के लड़के से एक गलती हो गई है तो इतना गंभीर मामला क्यों दर्ज किया है। केवल चालान काटना चाहिए था। विधानसभा में तो इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ था लेकिन सबको पता था कि इसका फैसला होने वाला है।
FIR निरस्ती का मुख्य आधार: police कर्मचारी का समझौता
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने FIR निरस्ती का फैसला सिर्फ मामूली चोट, मेडिकल साक्ष्यों न होना, या तकनीकी खामियों के कारण नहीं लिया। सबसे अहम कारण था शिकायतकर्ता पुलिसकर्मी द्वारा बिना दबाव या धमकी के किया गया स्वैच्छिक समझौता। अदालत ने इसे FIR निरस्ती के लिए निर्णायक मान्यता दी।
समझौता के बाद MLA सेना महेश पटेल का बयान
विधायक सेना महेश पटेल ने पूरे मामले को राजनीतिक साजिश बताया। उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारियों ने झूठे आरोप लगाकर उनके परिवार की छवि खराब करने का प्रयास किया। तत्कालीन SP, ADI SP, TI के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि परिवार बार-बार झूठे मामलों से घिरा रहा लेकिन सत्य और न्याय की लड़ाई जारी रखेगा।
महेश पटेल ने मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार पर विपक्ष और उनके परिवार को दबाने के लिए पुलिस दुरुपयोग का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चाहे BJP के मंत्री- सांसद कितना भी दबाव डालें, वे जनता की सेवा और न्याय के रास्ते से नहीं हटेंगे।
पर्दे के पीछे समझौता के बाद जनता के सामने न्याय की लड़ाई
FIR निरस्त होने के बाद पटेल दंपत्ति खुले तौर पर शासन-प्रशासन को चुनौती दे रहे हैं। अब वह SP, adi SP, TI पर मानहानि का दावा ठोकने की बात कर रहे हैं, वहीं दूसरी दूसरी और पुलिस विभाग की बेबसी देखिए कि वह FIR निरस्त के सबसे बड़े आधार अपने ही विभाग के शिकायतकर्ता पुलिसकर्मी के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं कर सकते हैं। क्योंकि मामला उच्च न्यायालय का है। जहां न्यायालय पहले ही अपने निर्णय में लिख चुका है कि- "दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते से उनके बीच सामंजस्य स्थापित होता प्रतित होता है, जिससे उनके भविष्य के संबंध बेहतर हो सकते हैं। प्रतिवादी पुलिस विभाग में कांस्टेबल है और उसने समझौते को स्वीकार करने में अपनी उदारता दिखाई है, जो मेरी राय में दर्ज किए जाने योग्य है।"
अब ऐसे में विभाग द्वारा आरक्षक को सस्पेंड, विभागीय जांच शुरू करने जैसे कदम उठाना न्यायालय की अवमानना हो सकती है। कुल मिलाकर यह मामला पुलिस विभाग के लिए कानून और अनुशासन के पालन की कसौटी बन गया है।
अलीराजपुर पुलिस अधीक्षक बीएस विरदे
"पुलिस ने धारा 109 बीएनएस में प्रकरण दर्ज किया था। वह प्रकरण अभी विवेचना में है। माननीय उच्च न्यायालय में फरियादी राकेश व आरोपी ने एक समझौता पेश किया जिसकी न्यायालय ने पुष्टि की और उसी आधार पर न्यायालय ने प्रकरण रद्द किया है। चूंकि आरक्षक ने बिना किसी की सहमति से समझौता किया है जिस पर हम नियमानुसार कार्रवाई करेंगे।
FIR भी न्याय के लिए नहीं पॉलिटिक्स के लिए दर्ज की गई थी
शिकायतकर्ता पुलिसकर्मी था बावजूद मामले को दर्ज करने में देरी हुई। चालान प्रस्तुत करते समय अनेक तकनीकी त्रुटियां की गई। कोर्ट ने कहा कि आरोप सिद्धि के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं थे, कोई गंभीर चोट या हथियारों का प्रयोग नहीं हुआ, मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध नहीं थी। ये कमियां पुष्पराज को गंभीर धाराओं में दोषी ठहराना कठिन बनाती थीं। शिकायतकर्ता ऑन ड्यूटी पुलिसकर्मी था बावजूद FIR में विलंब, धाराओं की गंभीरता किंतु विवेचना और चालान प्रस्तुतीकरण में दस्तावेजों की कमी जैसी बातें विभाग की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती है। Edit by: मनीष भारद्वाज।