मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सोयाबीन फसल के लिए भावंतर भुगतान योजना लागू करने की घोषणा ने राज्य के किसानों के बीच वर्ष 2017 के कड़वे अनुभवों को फिर से ताज़ा कर दिया है। किसान नेता और मध्य प्रदेश शासन की कृषि सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य केदार सिरोही ने इस योजना की घोषणा पर गंभीर नीतिगत प्रश्न खड़े किए हैं और मांग की है कि किसानों की उपज की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सुनिश्चित की जाए।
सिरोही ने कहा है कियह योजना किसानों को मंडी मूल्य और MSP के बीच के अंतर का भुगतान करने का वादा करती है,जबकि बीच के अंतर की जगह मासिक स्तर पर निकले गए माडल प्राइस के आधार पर होता है जिसके आंकड़े ,गणना और आधार किसानो के बीच सार्वजनिक नही किये जाते है जिस कारण यह योजना वादा पूरा नहीं करती है हालांकि,सिरोही का स्पष्ट मत है कि यह मॉडल किसानों के लिए कम और सोयाबीन प्रोसेसिंग प्लांट्स तथा व्यापारियों के लिए अधिक लाभदायक है।
सिरोही ने मुख्यमंत्री को वर्ष 2017 में लागू की गई पिछली भावंतर योजना के नकारात्मक प्रभावों की याद दिलाते कि भावांतर भुगतान योजना में किसानों ने स्वयं को ठगा हुआ महसूस किया था, योजना की सिमित समय सीमा (60 दिन) के कारण अचानक आवक बढ़ने सेमांग के मुकाबले आपूर्ति अत्यधिक हो गई जिससे मंडी भावों में 800-1200 रु प्रति क्विंटल (30-35%) तक की भारी गिरावट देखी गई, जिसके कारण न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि राजस्थान और महाराष्ट्र तक के बाज़ार भाव प्रभावित हुए।जबकि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भाव स्थिर थे.
एक माहौल बनाया गया था कि अंतर की भरपाई सरकार करेगी और उसकी आढ़ में आर्टिफीसियल तरीके से बाजार भाव गिराकर किसानो से सोयाबीन न्यूनतम भाव पर खरीदी थी जिसका फायदा प्लांटो ने उठाया था .सरकार ने MSP और बाज़ार मूल्य का सीधा अंतर देने के बजाय, 'मॉडल प्राइस' के आधार पर भुगतान किया।जिसमे पहले महीने का मॉडल प्राइस ₹410 और फिर ₹230 आया,जबकि बाजार एक जैसे थे जिसने किसानों की उम्मीदों को पूरी तरह तोड़ दिया।
किसानों को अंतर की राशि का भुगतान 1 से 1.5 माह की देरी से मिला, जबकि कृषि कार्यों की समयबद्धता के लिए तत्काल भुगतान आवश्यक होता है।इस योजना का सबसे बड़ा लाभ सोयाबीन प्लांट्स और व्यापारियों को मिला, जिन्होंने सस्ते दामों पर साल भर का स्टॉक कर लिया। सरकार की योजना से बाज़ार पूरी तरह से प्राइवेट प्लेयर्स के नियंत्रण में रहा था .
मेरा मुख्यमंत्री जी से कुछ नीतिगत प्रश्न और किसानों की प्रमुख मांगें के लिए अनुरोध किया है कि इस बार किसानों के पूर्व अनुभव को ध्यान में रखते हुए भावंतर भुगतान योजना की घोषणा पर पुनर्विचार करने और निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण देने की मांग की है-
1.योजना लागू करने से पहले किसानों से ऑनलाइन फीडबैक लिया जाए कि वे अपनी उपज भावंतर योजना पर बेचना चाहते हैं या सीधे MSP पर।यदि किसान की सहमति न हो, तो भावंतर योजना की जगह MSP पर खरीदी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। क्योकि "मोदी जी ने कहा था कि MSP है, MSP था और MSP रहेगा" इस वचन का पालन करते हुए, किसान भावंतर की पर्ची के बजाय MSP की गारंटी चाहता है।
2.इस बार भावंतर योजना की शर्तें क्या होंगी? खरीद की समय सीमा कितनी रहेगी? प्राइस डिस्कवरी (मूल्य निर्धारण) का आधार क्या होगा? क्या यह मासिक के बजाय प्रतिदिन के औसत भाव के आधार पर होगा? भुगतान (सेटलमेंट) की शर्तें और भुगतान की अवधि का कैलेंडर क्या रहेगा? क्या भुगतान तुरंत किया जाएगा? आदि बिषय पर स्पस्ट करना चाहिए
3.मंडी और प्लांटों के भावों की नियमित मॉनिटरिंग की प्रक्रिया कैसे रहेगी? 2017 में प्लांट और मंडी भाव में दोगुना अंतर हो गया था ,इस बार प्राइस कंट्रोल कैसे किया जाएगा? किसानों के लिए बिक्री में पारदर्शिता कैसे बढ़ाई जाएगी ताकि व्यापारी इस योजना का लाभ न ले पाएं? इसका स्पष्ट प्लान किसानों के सामने रखा जाए।
श्री सिरोही ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि भावंतर भुगतान योजना की घोषणा पर तुरंत पुनर्विचार करें। जब केंद्र सरकार दूसरे राज्यों को MSP पर खरीदी की अनुमति दे रही है, तो मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण कृषि राज्य को एक 'फ्लॉप मॉडल' को क्यों लागू करना चाहिए?
मुख्यमंत्री को यह स्पष्ट करना होगा कि यह योजना किसानों के हित के लिए है या सोयाबीन इंडस्ट्री के हित के लिए। यदि यह किसानों के हित में है, तो उन्हें MSP पर खरीदी शुरू करनी चाहिए और किसानों से फीडबैक लेना चाहिए।
सोयाबीन मध्य प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण फसल है और इस वर्ष प्राकृतिक कारणों से प्रदेश का उत्पादन भी कम होने की संभावना है। ऐसे में किसानों को उनकी मेहनत का न्यायसंगत MSP के साथ बोनस दिलाने की मांग करता हूँ। केदार सिरोही , किसान नेता, पूर्व सदस्य कृषि सलाहकार परिषद , मध्य प्रदेश
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