हम तो शुरू से कह रहे हैं मछली का विश्वास बड़ा दमदार है। उसे मालूम है कि कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। अब भोपाल के कलेक्टर को कोर्ट के सामने हाजिर होकर बताना पड़ेगा कि उन्होंने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया मछली का घर क्यों तोड़ा।
सरकारी जमीन पर सबने अतिक्रमण किया है, फिर हमारा ही घर क्यों तोड़ा
जब कलेक्टर की टीम मछली की कोठी तोड़ने के लिए गई थी तो बताया जा रहा था कि यह माफिया मछली का ठिकाना है। इसी के संरक्षण में बहुत सारी गंदी मछलियों ने पूरे भोपाल शहर को खराब कर रखा है, लेकिन कोर्ट में शायद मछली की मौसी ने याचिका लगाई है। सरकारी वकील ने मछली की मौसी से यह नहीं पूछा कि पहले प्रॉपर्टी की ओनरशिप तो साबित करो, फिर सवाल करना लेकिन मछली की मौसी ने सवाल किया है। मछली की मौसी ने कोर्ट में कहा है कि, जब सरकारी जमीन पर हजारों लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है, तो केवल उनके घर क्यों तोड़ा। इसी बात पर कोर्ट ने कलेक्टर को नोटिस जारी कर दिया। वैसे ठीक भी है, कलेक्टर जनसुनवाई और टाइम लिमिट की मीटिंग तक में तो आते नहीं है। कहीं पर तो जाएंगे।
हथियार का लाइसेंस और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण संवैधानिक अधिकार?
दैनिक भास्कर भोपाल के पेज क्रमांक (पेज पर नंबर ही नहीं लिखा, ePaper पर लिखा है Page-J4) पर प्रकाशित समाचार में लिखा है कि, कोर्ट में यह भी दलील दी गई है कि बिना अभियोग के घरों को ध्वस्त करना और हथियार के लाइसेंस निलंबित करना संवैधानिक अधिकारों का हनन है। आम जनता के लिए यह जिज्ञासा का विषय है, क्योंकि मध्य प्रदेश में तो कलेक्टर कभी भी किसी के भी हथियार का लाइसेंस निलंबित कर देते हैं। चंबल में चाचा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज होता है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले कलेक्टर पूरे कुटुंब के हथियार लाइसेंस निलंबित कर देते हैं।
यह बात सही है कि किसी के घर को तोड़ना उसके संवैधानिक अधिकार का हनन है लेकिन नोटिस जारी करने से पहले, वह घर उसका था या नहीं, यह प्रमाणित करना और इसकी जांच करना किसका संविधानिक दायित्व है?