हाई कोर्ट आफ मध्य प्रदेश की इंदौर बेंच ने रिट याचिका क्रमांक 33006/2025 की सुनवाई के बाद के अवैध कॉलोनाइजर के खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि अवैध कॉलोनी के खिलाफ एसडीएम कार्रवाई नहीं कर सकता।
शाजापुर जिले की सुजालपुर तहसील में अवैध कॉलोनी का मामला
मामला शाजापुर जिले के सुजालपुर शहर का है। याचिका बृजकिशोर एवं अन्य की ओर से प्रस्तुत की गई थी। इसमें बताया गया था कि सुजालपुर के एसडीएम ने मुख्य नगर पालिका अधिकारी, नगर परिषद पंखेड़ी, जिला शाजापुर को निर्देश दिया था कि वे अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सात दिनों के भीतर एक प्राथमिकी (F.I.R.)/आपराधिक मामला दर्ज करवाएं। आदेश के अनुसार अवैध कॉलोनी निर्माण के लिए स्थानीय पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया।
याचिकाकर्ताओं के वकील की दलील
याचिकाकर्ताओं के वकील, श्री योगेश पुरोहित ने न्यायालय का ध्यान 20 दिसंबर, 2024 को ग्वालियर बेंच द्वारा W.P. No.29427 of 2022 (शिवचरण बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य) में पारित एक समान निर्णय की ओर दिलाया। उन्होंने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश नगर पालिका (कॉलोनी विकास) नियम, 2021 के तहत सक्षम प्राधिकारी केवल कलेक्टर हैं। इसलिए, अनुविभागीय अधिकारी को इस प्रकार का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था, भले ही वह कलेक्टर के निर्देश या अनुमोदन पर क्यों न हो। अधिवक्ता श्री पुरोहित ने यह भी बताया कि, नियमों में कलेक्टर को अपनी शक्तियों के प्रत्यायोजन (delegation) का कोई अधिकार नहीं है। अर्थात एसडीएम, कलेक्टर द्वारा प्रदत शक्तियों का प्रयोग करके भी इस प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सकता।
सरकारी वकील की दलील
मध्य प्रदेश राज्य शासन की ओर से वकील, श्री राघव श्रीवास्तव ने दलील दी कि अनुविभागी अधिकारी द्वारा पारित आदेश में कोई अवैधता नहीं है, क्योंकि यह कलेक्टर के अनुमोदन और निर्देशों के अनुसार था। हालांकि, उन्होंने इस बात का खंडन नहीं किया कि नियम, 2021 के तहत सक्षम प्राधिकारी कलेक्टर ही हैं और 'शिवचरण' मामले में न्यायालय द्वारा बताई गई प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।
हाई कोर्ट का डिसीजन
मध्य प्रदेश के इंदौर उच्च न्यायालय में माननीय न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा ने 'शिवचरण' मामले में पूर्व के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि नियम 22 के तहत शक्ति का प्रयोग करने के लिए केवल कलेक्टर ही सक्षम प्राधिकारी होंगे, जैसा कि नियमों की धारा 2(c) में परिभाषित है। नियमों के तहत कलेक्टर को स्वयं पूरी कार्यवाही करनी होती है, जिसमें नोटिस जारी करना, जवाब मांगना और संबंधित पक्षों की सुनवाई करना शामिल है। नियमों या अधिनियम, 1961 में कलेक्टर को किसी अधीनस्थ अधिकारी के पक्ष में शक्तियों के प्रत्यायोजन का कोई प्रावधान नहीं है।