मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के आंगन में, सीएम मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीधा संघर्ष शुरू हो गया है। इस फाइट का फैसला दिल्ली में होगा और जल्दी ही पता चल जाएगा की पार्टी में कौन पावरफुल है लेकिन इस लड़ाई का असर मध्य प्रदेश की राजनीति पर गहरा रहेगा और लंबे समय तक दिखाई देगा।
भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी में पलटवार दिखाई दिया
कुछ दिनों पहले केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्वालियर में प्रभारी मंत्री द्वारा आयोजित बैठक को हाईजैक कर लिया था। खुद को साउथ इंडिया के किसी हीरो की तरह प्रदर्शित किया। इस प्रकार की बयान बाजी भी हुई थी कि, सिंधिया के अलावा ग्वालियर का कल्याण कोई नहीं कर सकता। ग्वालियर की कमान सिंधिया के हाथ में देना जरूरी है। इसका जवाब भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी में देखने को मिला। सिंधिया के केवल दो लोगों को कार्यकारिणी में शामिल किया गया और उनको भी वह पद नहीं दिए गए जो सिंधिया चाहते थे। खास तौर पर पूर्व मंत्री श्री प्रभु राम चौधरी, जिनको सिंधिया महामंत्री बनवाना चाहते थे। उपाध्यक्ष के पद पर एडजस्ट किया गया है। क्षितिज भट्ट को प्रदेश मंत्री बनाया गया है। संगठन में पावरफुल पोजीशन में सिंधिया का एक भी समर्थक नहीं है। जब किसी सिंधिया समर्थक उनका मध्य प्रदेश का सबसे लोकप्रिय भाजपा नेता बताते हैं।
इस लड़ाई का क्या असर होगा
इसकी शुरुआत सिंधिया ने की थी, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के समर्थन में जवाब पार्टी की ओर से दिया गया है। अब यदि सिंधिया ने कोई अगला कदम उठाया तो, इस लड़ाई का असर मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पर गहरा और देर तक दिखाई देगा। बात यहां पर खत्म नहीं होगी बल्कि यहां से शुरू होती है। अभी तो निगम मंडलों में नियुक्तियां होना बाकी है और फिर सिंधिया के सबसे शक्तिशाली मंत्री, घोषित रूप से मुख्यमंत्री की टीम के सदस्य हैं और उनकी अधिकारिकता में आते हैं। कोई बड़ी बात नहीं की अगली विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के अंदर सिंधिया गुट बिल्कुल वैसा ही दिखाई दे जैसे कांग्रेस पार्टी में दिखाई देता था।
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