मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने सरकारी कर्मचारियों के यात्रा भत्ता को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। यह केवल यात्रा भत्ता का मामला नहीं है बल्कि शासन और कर्मचारियों के बीच सभी प्रकार के भत्तों और वित्तीय लेनदेन से संबंधित है। इसलिए सभी कर्मचारियों को इस समाचार का प्रिंट आउट निकाल कर अपने पास सुरक्षित रखना चाहिए।
पी.के. जैन बनाम मध्य प्रदेश राज्य
Writ Petition No. 4093 of 2012 की फाइनल सुनवाई हाई कोर्ट ऑफ़ मध्य प्रदेश की ग्वालियर बेंच में विद्वान न्यायमूर्ति श्री आनंद सिंह बहरावत द्वारा दिनांक 21 अगस्त 2025 को की गई थी। यह याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता श्री पीके जैन (शासकीय कर्मचारी) की नियुक्ति सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर सन 1976 में हुई थी। दिनांक 20 मार्च 1991 को उन्हें मध्य प्रदेश जीवन बीमा निगम में सहायक निदेशक के पद पर पदोन्नति किया गया। उस समय मध्य प्रदेश जीवन बीमा निगम, शासन के वित्त विभाग का हिस्सा हुआ करता था। बाद में इसको वित्त विभाग में विलय कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने बताया कि वह 1991 से वरिष्ठ पद पर काम कर रहे हैं और वरिष्ठ वेतनमान एवं चयन वेतनमान का लाभ उनको मिलना चाहिए परंतु नहीं दिया गया। जबकि उनके जूनियर को 1 जनवरी 2005 को वरिष्ठ वेतनमान का लाभ दिया गया। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्हें कोषालय अधिकारी के पद पर कार्यभार ग्रहण करने की अनुमति भी नहीं दी गई। दिनांक 27 सितंबर 2008 को कलेक्टर छतरपुर से अनुमति प्राप्त करने के बाद 28 सितंबर 2008 को राजधानी भोपाल गए और छतरपुर में खुशहाली अधिकारी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया। इस यात्रा के लिए उन्होंने केवल 880 रुपए यात्रा भत्ता मांगा परंतु उनका TA Bill स्वीकार नहीं किया गया।
याचिकाकर्ता ने बताया कि दिनांक 10 नवंबर 2009 को उनको एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। जिसमें उनकी दो वार्षिक वेतन वृद्धियों को रोकने की सजा दिए जाने की चेतावनी थी। उन्होंने 23 जनवरी 2010 को नोटिस का जवाब दिया। इसके डेढ़ साल बाद 28 जुलाई 2011 को यह मामला लोक सेवा आयोग को भेजा गया। जिस दिन उन्हें रिटायर होना था उसके एक दिन पहले शाम के समय लोक सेवा आयोग ने उनकी दो वार्षिक वेतनवृद्धियों के बराबर राशि वसूल करने की मंजूरी दे दी।
याचिकाकर्ता के वकील की दलील
याचिकाकर्ता के विरुद्ध जारी किए गए आदेश दिनांक 23 में 2012 में उनकी दो वार्षिक वेतनवृद्धियों की वसूली के संबंध में कोई उचित कारण बताओं नोटिस जारी नहीं किया गया। कलेक्टर ने वेतनवृद्धि को रोकने का प्रस्ताव भेजा था, लोक सेवा आयोग ने वेतन वृद्धि की राशि की वसूली का आदेश जारी कर दिया। इस मामले में लोकसभा आयोग ने याचिकाकर्ता को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि, मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के नियम 10 के उप-नियम (3) के अनुसार, सरकार को लापरवाही या आदेश के उल्लंघन के कारण हुए किसी भी pecuniary loss (वित्तीय नुकसान) की वसूली के लिए यह प्रावधान लागू होता है लेकिन इस मामले में सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ था, क्योंकि उन्होंने जो यात्रा भत्ता के लिए बिल प्रस्तुत किया था उसका भुगतान ही नहीं मिला था। न ही उन्होंने किसी आदेश का उल्लंघन किया था या कोई लापरवाही बरती थी। उन्होंने अपने टी.ए. बिल को बोनफाइड तरीके से प्रस्तुत किया था।
सरकारी वकील की दलील
याचिकाकर्ता शासकीय कर्मचारी 31 मई, 2012 को सेवानिवृत्त हो गए थे, इसलिए सजा को सही ढंग से 34,268/- रुपये की वसूली में परिवर्तित कर दिया गया था। याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर दिया गया था। वसूली का जो आदेश जारी हुआ है वह कानून के अनुसार जारी हुआ है।
ग्वालियर हाईकोर्ट का डिसीजन
एम.पी. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966, नियम 10 (दंड): इसमें विभिन्न प्रकार के दंड शामिल हैं जैसे निंदा, पदोन्नति रोकना, pecuniary loss की वसूली और वेतनवृद्धियों को रोकना।
ओरिक्स फिशरीज प्राइवेट लिमिटेड (उपरोक्त) मामला: इस मामले के पैरा 36 और 37 के अनुसार, यदि किसी कारण बताओ नोटिस के जवाब पर विचार किए बिना केवल "संतोषजनक नहीं" कहकर आदेश पारित किया जाता है, और वह आदेश अकारण हो, तो वह कानून की नजर में शून्य माना जाता है, खासकर जब वह अपीलीय आदेश हो।
न्यायालय का निर्णय और अवलोकन: न्यायालय ने दोनों पक्षों के वकीलों को सुना और रिकॉर्ड का अवलोकन किया। न्यायालय ने पाया कि:
• 23 मई, 2012 का impugned आदेश एक गैर-स्पष्ट और अकारण आदेश था।
• impugned आदेश जारी करने से पहले, याचिकाकर्ता को यह बताने के लिए कोई उचित कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था कि उनसे दो वार्षिक वेतनवृद्धियों को रोकने के बराबर राशि की वसूली क्यों नहीं की जानी चाहिए।
• याचिकाकर्ता द्वारा 23 जनवरी, 2010 को दिए गए विस्तृत जवाब में उल्लिखित तथ्यों और आधारों पर विचार नहीं किया गया था। आदेश में केवल यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया जवाब संतोषजनक नहीं था।
• impugned आदेश में वेतनवृद्धियों को रोकने की सजा को वसूली में बदलने के लिए मध्य प्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के नियम 10 के उप-नियम (3) के किसी भी प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया था।
• याचिकाकर्ता 31 मई, 2012 को पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे, और सरकार को कोई वित्तीय नुकसान नहीं हुआ था, क्योंकि उन्हें 880/- रुपये का टी.ए. बिल भी नहीं दिया गया था।
उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने:
• याचिका को अनुमति दी और 23 मई, 2012 के impugned आदेश को रद्द कर दिया।
• यह भी आदेश दिया कि यदि प्रतिवादी/संबंधित प्राधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता से कोई राशि वसूल की गई है, तो उसे इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को वापस किया जाए।