उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त एक कर्मचारी को उसकी नियुक्ति के 14 साल बाद बर्खास्त कर दिए जाने वाले के मामले को गलत बताते हुए, कर्मचारियों को फिर से सेवा में लेने के आदेश दिए हैं। विवाद के दौरान कर्मचारी के वकील ने दलील प्रस्तुत की की डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के बाद, डॉक्यूमेंट की सत्यता के लिए वेरिफिकेशन करने वाला अधिकारी जिम्मेदार होता है। नियुक्त हुए कर्मचारियों को बर्खास्त नहीं कर सकते। डॉक्यूमेंट वेरीफाइड करने वाले अधिकारी को बर्दाश्त कर सकते हैं।
शिवकुमार बनाम उत्तर प्रदेश शासन
हाथरस निवासी शिव कुमार के पिता हाथरस में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। याची को 2001 में अनुकंपा के आधार पर जूनियर क्लर्क पद पर नियुक्ति दी गई। बाद में वह पदोन्नत होकर सीनियर क्लर्क बने। इस बीच 31 मई 2023 में उनकी सेवा यह कहकर समाप्त कर दी गई कि नियुक्ति के समय उन्होंने यह तथ्य नहीं बताया था कि उनकी मां सरकारी नौकरी में थीं। याची ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
जांच के बाद डॉक्यूमेंट की प्रमाणिकता के लिए अधिकारी जिम्मेदार
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि नियुक्ति आवेदन के समय कोई निर्धारित फॉर्म नहीं था जिसमें परिवार के सदस्यों की नौकरी की जानकारी देना आवश्यक हो। इसके बावजूद उनकी मां ने हलफनामा देकर बताया था कि वे सरकारी विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। अधिकारियों की ओर से समस्त दस्तावेजों की जांच की गई थी। ऐसे में अधिकारियों के किसी भी चूक के लिए याची जिम्मेदार नहीं है। बर्खास्तगी आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की।
कर्मचारी की बर्खास्तगी का एक तरफा फैसला प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ
कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि नियुक्ति से पहले सभी दस्तावेजों की जांच की गई है और नियुक्ति में कोई धोखाधड़ी नहीं की गई। 14 साल बाद की गई कार्रवाई न्यायसंगत नहीं है। किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति को बिना किसी ठोस धोखाधड़ी का मामला सामने आए इतने साल बाद रद्द करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने सेवा समाप्ति का आदेश रद्द करते हुए शिव कुमार को तत्काल सेवा में बहाल करने और सभी देय लाभ देने के निर्देश दिए हैं।