भोपाल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भोपाल विभाग द्वारा विद्यासागर कॉलेज, अवधपुरी में आयोजित कुटुंब प्रबोधन कार्यक्रम में जैन मुनिश्री 108 श्री प्रमाण सागर जी महाराज ने स्वयंसेवकों एवं उनके परिवारों को संबोधित करते हुए कहा कि शुद्ध जीवन ही शक्तिशाली समाज और अखंड राष्ट्र की नींव है। मुनिश्री ने संघ की कार्यपद्धति की प्रशंसा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हमेशा चरित्र, अनुशासन और समाज जीवन में नैतिकता पर बल दिया है। शताब्दी वर्ष में संघ द्वारा चलाए जा रहे कुटुंब प्रबोधन अभियान का उद्देश्य हर घर में विश्वास, पारदर्शिता और मूल्य आधारित जीवन का पुनर्निर्माण करना है।
शुद्ध जीवन ही पंच परिवर्तन का आधार है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में सामाजिक जीवन के पुनर्निर्माण पर बल देते हुए मुनि श्री ने कहा कि “शुद्ध जीवन ही पंच परिवर्तन का आधार है।” साथ ही स्पष्ट किया कि संघ द्वारा चलाया जा रहा पंच परिवर्तन अभियान व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र जीवन में नैतिकता, अनुशासन और करुणा जैसे मूल्यों को स्थापित करने का मार्ग है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चरित्र ही उसके विश्वास का आधार है।
परिवार और समाज में शुद्धता के महत्व पर मुनिश्री ने कहा कि “समाज की नींव व्यक्ति है और व्यक्ति की नींव जीवन है। यदि जीवन शुद्ध है तो व्यक्ति सशक्त होगा। यदि व्यक्ति सशक्त होगा तो समाज सशक्त होगा। अतः शुद्ध जीवन ही शक्तिशाली समाज का आधार है।”
उन्होंने चेताया कि आज परिवार टूट रहे हैं क्योंकि रिश्तों में विश्वास और पारदर्शिता घट रही है। आज परिवार टूट रहे हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे को विश्वास की दृष्टि से नहीं देखते। आपसी संदेह बढ़ने से पति-पत्नी के संबंध भी महज़ औपचारिक होते जा रहे हैं, क्योंकि रिश्तों में पारदर्शिता और शुद्धता का अभाव है।
मुनि श्री ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सच्चाई और नैतिकता जीवन की रीढ़ हैं, करुणा और सहयोग हमारे जीवन का रक्त हैं। अनुशासन और संयम हमारी साँसें हैं। धर्म तथा मूल्य हमारी आत्मा हैं। आत्मबोध को आवश्यक बताते हुए कहा कि जीवन को शुद्ध बनाने के लिए आत्मबोध अत्यंत आवश्यक है। आत्मबोध के अभाव में जो कुछ भी होगा, वह मात्र सतही ही होगा।
मन, चरित्र और शक्ति के संबंध पर बताते हुए बोले कि अगर हमने मन को साध लिया तो यह मोक्ष का द्वार है, अगर हम मन के बस में हो गए तो यह नरक का द्वार है। उन्होंने मन की पवित्रता का उदाहरण देते हुए कहा कि मन गंगा जल की तरह पवित्र है, किंतु इसमें तरह-तरह की गंदगियाँ घुलती जा रही हैं, जिससे यह समाज दूषित हो गया है। समाज में दूषित मन और दूषित जल की कोई उपयोगिता नहीं होती।
चरित्र निर्माण पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि जीवन शुद्ध होगा तो व्यक्ति का चरित्र मजबूत होगा। चरित्र मजबूत होगा तो विश्वास जन्मेगा। विश्वास से एकता जागेगी और जब एकता होगी तो शक्ति प्रकट होगी।
मुनिश्री ने कहा कि भारत ने हमेशा “वसुधैव कुटुम्बकम” का संदेश दिया है। लेकिन आज परिवार विखंडित हो रहे हैं और पश्चिमी जीवनशैली बढ़ रही है। इस स्थिति से समाज और राष्ट्र दोनों कमजोर होते हैं। उन्होंने आह्वान किया कि हर भारतीय को अपनी संस्कृति, भाषा और भोजन पद्धति के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए।
अंत में मुनि श्री ने कहा कि परिवर्तन की शुरुआत व्यक्ति से ही होती है। यदि हम अपने जीवन में आत्मबोध, सच्चाई, नैतिकता, करुणा और अनुशासन को अपनाएंगे तो परिवार मजबूत होंगे, समाज सशक्त होगा और राष्ट्र अखंड बनेगा। कार्यक्रम का समापन प्रार्थना के साथ हुआ।