आयुष्मान हेल्थ स्कीम की तरह मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना के मामले में भी एक घोटाला सामने आया है। आयुष्मान योजना के तहत प्राइवेट अस्पतालों ने मलेरिया के मरीज को आईसीयू में भर्ती करके एक लाख का बिल बनाया था। मध्य प्रदेश मेघावी विद्यार्थी योजना के तहत सरकारी खजाने से ज्यादा पैसा प्राप्त करने के लिए प्राइवेट यूनिवर्सिटीज ने अपनी फीस डबल कर दी। दादागिरी देखिए, जिस अधिकारी ने इस मामले में जवाब, तलब किया। उसको तत्काल पद से हटा दिया गया। सनद रहे कि यह लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय का मामला है। जो डिप्टी सीएम श्री राजेंद्र शुक्ल के पास है।
सरकार की योजना और कानून की कमी का फायदा उठाया
उल्लेखनीय है कि, 2017 से चल रही मेधावी विद्यार्थी योजना के तहत सरकार 6 लाख तक सालाना आय वाले गरीब परिवार के बच्चों को मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ सहित अन्य यूजी कोर्सेस में मुफ्त पढ़ाई करवाती थी। मप्र बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में 75% अंक लाने वाले और सीबीएसई में 85% अंक लाने वाले मेधावियों की पूरी फीस सरकार वहन करती है। योजना की इसी विशेषता ने घोटाले को जन्म दे दिया। फीस के निर्धारण के लिए कोई नियम नहीं है। इसलिए प्राइवेट यूनिवर्सिटी वालों ने मिलकर अपनी फीस में बेतहाशा वृद्धि कर दी। विद्यार्थियों को भी कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि उनको ₹1 भी नहीं देना था।
नोडल ऑफिसर बी. लक्ष्मीनारायण ने गड़बड़ी पकड़ी
सत्र 2024-25 में जब एमबीबीएस छात्रों को स्कॉलरशिप देने की फाइल चली तो मेधावी विद्यार्थी योजना संभाल रहे अफसर बी. लक्ष्मीनारायण ने तकनीकी शिक्षा विभाग के आयुक्त अवधेश शर्मा को ईमेल भेजा। इसमें उन्होंने बताया कि निजी कॉलेजों और निजी विश्वविद्यालयों की फीस में बड़ा अंतर है। उनके अनुसार, निजी कॉलेजों की फीस न्यूनतम 9 लाख से अधिकतम 12.60 लाख रुपए प्रतिवर्ष है। वहीं, विश्वविद्यालयों की फीस 15.20 लाख से 17.37 लाख रु. तक पहुंच गई है। यानी कि लगभग दोगुना हो गई है।
दो परतों के बीच में मेधावी विद्यार्थी पिसेंगे
आयुक्त शर्मा ने यह ईमेल तकनीकि शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और अपीलीय अधिकारी रघुराज राजेंद्रन को भेज दिया। राजेंद्रन ने इस असमानता पर मध्य प्रदेश निजी विश्वविद्यालय आयोग (एमपीपीयूआरसी) से जवाब मांग लिया। उनको मालूम नहीं था की लॉबी कितनी पावरफुल है। सवाल करते ही उन्हें पद से हटा दिया। प्राइवेट यूनिवर्सिटी वाले अपनी फीस कम करने को तैयार नहीं है। इधर सरकार अपनी योजना के तहत बजट बढ़ाने को तैयार नहीं है।
इसलिए फैसला किया गया है कि, छात्रों को सिर्फ सरकारी कॉलेजों की फीस के बराबर ही छात्रवृत्ति मिलेगी। शेष खर्च छात्रों को खुद वहन करना पड़ेगा। इस निर्णय से जरूरतमंद छात्रों के सामने पढ़ाई पूरी करना मुश्किल होगा।
यानी कि भ्रष्टाचार का विरोध नहीं करना, जनता पर ही भारी पड़ गया। सीनियर स्टूडेंट्स ने कुछ नहीं कहा इसलिए जूनियर स्टूडेंट्स को एक नए संघर्ष का सामना करना पड़ेगा।