इंदौर नगर निगम भारत का नंबर वन नगर निगम है। नगर निगम के कारण ही इंदौर भारत का सबसे स्वच्छ शहर है लेकिन इसी इंदौर शहर में एक अवैध नगर निगम संचालित हो रहा था। यह सब कुछ इतने खुलेआम हो रहा था कि, इंदौर की सड़कों का नामकरण तक शुरू हो गया था। सड़कों पर बोर्ड लगा दिए गए थे और बोर्ड पर लिखा है नगर पालिक निगम इंदौर। इस मामले में महापौर का संरक्षण भी प्रतीत होता है।
इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव का बयान
नगर निगम इंदौर के महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि, इंदौर की सड़कों का अवैध तरीके से नामकरण किया गया है। अब तक इस प्रकार की पांच सड़कों का पता चला है। यहां पर कांग्रेस पार्टी की महिला पार्षद फातेमा रफीक़ ख़ान द्वारा MIC और नगर निगम परिषद की अनुमति के बिना, अवैधानिक रूप से सड़कों का नामकरण कर दिया गया था। यहां पर सड़कों के नए नाम का बोर्ड लगा दिया गया था। हमने ऐसे सभी बोर्ड हटा दिए हैं और चंदन नगर वार्ड क्रमांक 2 की पार्षद फातेमा रफीक़ ख़ान के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे पहले महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव ने यह भी बताएं कि इससे पहले भी उन्हें इस प्रकार के बोर्ड मिले थे और उन्होंने अपने स्तर पर हटवा दिए थे।
पार्षद और निगम अधिकारियों पर होगी कार्रवाई
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि पार्षद फातेमा रफीक़ ख़ान के इस कृत्य को निगम परिषद में निंदा प्रस्ताव के रूप में लाया जाएगा। साथ ही जिन निगम अधिकारियों और कर्मचारियों ने उनके निर्देश पर बोर्ड लगाए, उनके खिलाफ भी कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। महापौर का कहना है कि इस तरह की मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और नियमों के तहत ही क्षेत्र के नाम बदलने की प्रक्रिया होगी।
इंदौर में इन सड़कों का अवैध नामकरण हो गया था
- चंदननगर सेक्टर बी रोड से सकीना मंजिल रोड।
- चंदू वाला रोड से गौसिया रोड।
- मिश्रा वाला रोड से ख्वाजा रोड।
- लोहा गेट रोड से रजा गेट।
- अंबाला रोड से हुसैनी रोड।
यह केवल 5 बोर्ड है जो नगर निगम द्वारा पकड़े गए और हटाए गए। यह कहना मुश्किल है कि सिर्फ इतने ही बोर्ड थे। यह कहना भी मुश्किल है कि नगर निगम इंदौर के नाम पर सिर्फ इतना ही काम किया गया है। क्या पता इंदौर शहर के बाहर कोई बोर्ड लगा हो जिस पर लिखा हो "रफीक नगर"।
INDORE SAMACHAR: इंदौर महापौर का अवैध बोर्ड वाली कांग्रेस की महिला पार्षद को संरक्षण?
महापौर द्वारा अवैध रूप से लगे हुए बोर्ड को बिना कानूनी कार्रवाई और पंचनामा के अवैध रूप से हटाना एक प्रकार से पार्षद को संरक्षण देने जैसा है। पार्षद को महापौर का संरक्षण इसलिए भी प्रतीत होता है क्योंकि यह कार्रवाई पूर्व विधायक एवं युवा नेता श्री आकाश विजयवर्गीय द्वारा 24 घंटे का अल्टीमेटम दिए जाने के बाद की गई है। यहां यह स्वीकार करना असंभव है कि इससे पहले महापौर को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। और यदि सचमुच महापौर को इसके बारे में जानकारी नहीं थी, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। क्योंकि वह इंदौर के एक पूर्व विधायक से भी ज्यादा निष्क्रिय हैं। जो जानकारी श्री आकाश विजयवर्गीय को थी, कैसे मान लिया जाए कि महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव को नहीं थी।
यह एक क्रिमिनल केस है। संपत्ति नहीं बल्कि अधिकारिकता पर अतिक्रमण का मामला है। इस मामले में पूरी जांच होना जरूरी है। यह पता लगाया जाना जरूरी है कि क्या केवल पांच सड़कों पर बोर्ड लगाए गए थे या फिर इसके अलावा भी कुछ हुआ है। क्या इंदौर में नगर निगम की सील और लेटर हेड का भी अवैध उपयोग किया जा रहा है। क्या इन सभी बोर्ड को लगाने के लिए महापौर की सील और लेटराइट का उपयोग किया गया था। इंदौर एक बड़ा शहर है और बोर्ड के पीछे और नीचे बहुत कुछ मिल सकता है।