भारत के महानगर जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से हरे-भरे, सुलभ और मानसिक राहत देने वाले प्राकृतिक स्थान पीछे छूट रहे हैं। इस खतरनाक प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकर्षित किया है देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार सोनी ने। Nature Cities जैसी विश्वप्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित उनके लेख ने urban mental health पर green spaces के प्रभाव को वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण से उजागर किया है।
biodiversity से भरपूर प्राकृतिक क्षेत्र का लाभ
डॉ. सोनी, जो पहले NIMHANS, बेंगलुरु जैसे शीर्ष संस्थान में कार्यरत रहे हैं, मानते हैं कि भारत में urban greenery को अब केवल 'सजावटी' तत्व मानने की सोच से आगे बढ़ना होगा। उनका कहना है कि biodiversity से भरपूर प्राकृतिक क्षेत्र न केवल मन को शांत करते हैं, बल्कि depression, anxiety और stress जैसे mental disorders से निपटने में प्रभावी हो सकते हैं।
हरियाली की असमानता mental health को प्रभावित करती है
लेख में डॉ. सोनी ने "ecological privilege" को रेखांकित किया है। उनका तर्क है कि शहरों में अमीर इलाकों में green spaces की बहुतायत है, लेकिन गरीब बस्तियों में रहने वालों के लिए ऐसे restorative experiences लगभग असंभव हैं। यह असमानता न केवल environmental है, बल्कि mental health की भी एक गहरी खाई बना रही है।
'Restorative Access Zones' का सुझाव
समाधान के रूप में वे "Restorative Access Zones" यानी पुनर्स्थापनात्मक पहुँच क्षेत्र का प्रस्ताव रखते हैं, जहाँ native plants, water bodies, birds और insects की उपस्थिति के साथ biodiversity को सहेजते हुए mental health benefits प्रदान किए जा सकें। उनका सुझाव है कि ऐसे zones को urban master plans, zoning laws और smart city initiatives में शामिल किया जाए।
डॉ. सोनी का मानना है कि CSR funding, climate adaptation budgets और smart city mission जैसे स्रोतों से इन zones के लिए वित्त जुटाया जा सकता है। इसका लाभ कम outdoor mental health visits, बेहतर community well-being और कम urban stress के रूप में होगा।
डॉ. सोनी सुझाव देते हैं कि जैसे डॉक्टर आज exercise और diet improvement की सलाह देते हैं, वैसे ही "nature exposure" को भी mental health treatment का हिस्सा बनाना चाहिए। वे कहते हैं कि 'green prescriptions' भारत में भी लागू किए जा सकते हैं, विशेष रूप से primary health centers के माध्यम से।
डॉ. सोनी का लेख ऐसे समय आया है जब भारत के शहर infrastructure और policies में महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। Delhi Development Authority अपना master plan पुनः तैयार कर रहा है और NITI Aayog 'green spaces and public health bill' पर विचार कर रहा है। यह लेख इन नीतियों के लिए एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है।
लेख का अंतिम संदेश गूंजता है - "हमें biodiversity को केवल conservation का मुद्दा नहीं, बल्कि public health intervention के रूप में देखना होगा।" यह एक क्रांतिकारी विचार है जो बताता है कि mental health treatment की शुरुआत hospitals में नहीं, बल्कि accessible forests में होनी चाहिए।
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