मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की तीनों खंडपीठ के बीच में जब जिलों का बंटवारा हो रहा था तब पता नहीं किसने खंडवा को उठाकर जबलपुर के खाते में डाल दिया। 57 साल से खंडवा के वकील और पब्लिक डिमांड कर रही है कि हमको खंडवा से हटकर इंदौर खंडपीठ से जोड़ दिया जाए लेकिन किसी सरकार ने कुछ नहीं किया। इस बार भी जब विधानसभा के मानसून सत्र में मामला उठा तो कैलाश विजयवर्गीय एवं कमलनाथ ने मुद्दे का समर्थन किया परंतु प्रहलाद पटेल ने बड़ी ही चतुराई के साथ टंगड़ी अड़ा दी।
खंडवा के समर्थन में खड़े हुए कैलाश विजयवर्गीय और कमलनाथ
विधि एवं विधायी कार्य विभाग से संबंधित यह प्रश्न महिला विधायक श्रीमती छाया गोविन्द मोरे द्वारा पूछा गया। उन्होंने विधानसभा को फिर से बताया कि, खंडवा से जबलपुर की दूरी 477 और इंदौर की दूरी मात्र 130 किलोमीटर है। खंडवा को जबलपुर के नहीं बल्कि इंदौर हाई कोर्ट के अधीन होना चाहिए। इसके जवाब में मंत्री श्री गौतम टटवाल ने जो कहा वह सदन में किसी को समझ में नहीं आया। फिर संसदीय कार्य मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने इस विषय का समर्थन करते हुए खंडवा को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के अधीन ही होना चाहिए। कांग्रेस के नेता कमलनाथ ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि यह अधिकारिता के निर्धारण का विषय है। जब तक मुख्यमंत्री स्वयं रुचि नहीं लेंगे तब तक हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट डिसीजन नहीं लेगा। सरकार के ऊपर दबाव बन ही रहा था तभी अचानक कैबिनेट मंत्री श्री प्रहलाद पटेल बोल पड़े।
खंडवा के हाईकोर्ट मामले में प्रहलाद पटेल का बयान पढ़िए
प्रहलाद पटेल ने कहा कि, मंत्री जी ने ठीक दिशा में अपनी बात कही है कि सी.जे. हाईकोर्ट और राज्यपाल दोनों की सहमति से उस बेंच के क्षेत्राधिकार को बदल सकते हैं। बाकी बेंच तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. अगर खण्डवा जिले को इसमें जोड़ना है तो यह क्षेत्राधिकार का परिवर्तन है। तो यह सच है कि माननीय मुख्यमंत्री जी के संज्ञान में अगर यह बात आती है तो माननीय राज्यपाल जी और चीफ ज्यूडिशयल, हाईकोर्ट जबलपुर के साथ बैठकर कभी संवाद हो, तो इस पर बातचीत हो सकती है। इससे ज्यादा मुझे लगता है कि इस सदन में चर्चा का यह विषय नहीं है।
मामला क्या है और कैसे सॉल्व होगा
मामला हाई कोर्ट का है जो मध्य प्रदेश सरकार के अधीन नहीं आता। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार कोई फैसला नहीं ले सकती। भोपाल शहर को मध्य प्रदेश की राजधानी बना दिए जाने के बाद इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर को भी राज्य स्तरीय पावर सेंटर बनाने के लिए विभागों के हैडक्वाटर्स का बंटवारा किया जा रहा था। इसी क्रम में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 नवंबर 1968 को इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ की घोषणा कर दी, और तीनों खंडपीठ के बीच में मध्य प्रदेश के सभी जिलों का बंटवारा कर दिया। बटवारा हाई कोर्ट ने किया है, गलती हाई कोर्ट से हुई है, संशोधन भी हाईकोर्ट कर सकता है।
परेशानी पब्लिक को होती है इसलिए वह सरकार से मांग करती है। सरकार जनता की अधिकृत प्रतिनिधि है। वह हाईकोर्ट के समक्ष जनता की मांग को रख सकती है। बस इतनी सी बात थी। विधायक श्रीमती छाया गोविन्द मोरे चाहती थी कि इसके लिए कोई टाइमलाइन सेट हो जाए। कैलाश विजयवर्गीय समर्थन कर रहे थे और कमलनाथ रास्ता भी बता रहे थे लेकिन फिर प्रहलाद पटेल आ गए।
- समाचार की पुष्टि के लिए कृपया प्रश्न क्रमांक 628, मध्य प्रदेश विधानसभा दिनांक 29 जुलाई 2025 पढ़ें।