Chief Minister राज्य का वास्तविक प्रधान होता है लेकिन Article 164 of the Indian Constitution Act, 1950 के अंतर्गत Chief Minister की नियुक्ति राज्य के Governor द्वारा की जाती है। सवाल यह है कि क्या राज्य का राज्यपाल स्वयं विवेकानुसार किसी भी व्यक्ति को Chief Minister बना सकता है, जानिए।
भारत में मुख्यमंत्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है
राज्यपाल को मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति का अधिकार तो होता है, परंतु नियुक्ति के नियम और योग्यता निर्धारित करने का अधिकार नहीं होता। वह अपनी निर्धारित मर्यादा में रहकर ही दावा प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों में से किसी एक का चुनाव कर सकता है। राज्यपाल को यह भी देखना होता है कि, उसके फैसले को किसी प्रकार की चुनौती न दी जा सके, क्योंकि यदि उसका फैसला गलत साबित हुआ तो, राज्यपाल के पद पर बैठे हुए व्यक्ति की योग्यता और उपयोगिता पर ही प्रश्न उपस्थित हो जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, लेकिन यह नियुक्ति विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन के नेता के पक्ष में होती है। राज्यपाल को यह सुनिश्चित करना होता है कि मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त व्यक्ति, विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करने में सक्षम हो।
राज्यपाल द्वारा नियुक्ति संबंधी विवेकाधिकार शक्ति का गलत प्रयोग कब-कब किया गया
Know when the Governor misused his discretionary power regarding appointment
1. वर्ष 1997 में Uttar Pradesh के Governor रोमेश भंडारी ने बहुमत प्राप्त Chief Minister कल्याण सिंह को हटाकर अल्पमत प्राप्त जगदंबिका पाल को Chief Minister पद की शपथ दिलाई थी।
2. वर्ष 1996 में Gujarat के Governor कृष्णपाल सिंह ने बहुमत प्राप्त केशुभाई पटेल की सरकार को बर्खास्त कर दलीप सिंह को Chief Minister की शपथ दिलाई।
3. वर्ष 2005 में Goa के Governor एस.सी. जमीर ने 2 फरवरी 2005 को BJP Chief Minister मनोहर पर्रिकर की सरकार को बर्खास्त कर कांग्रेस के प्रताप सिंह राणे को Chief Minister की शपथ दिलाई।
कुल मिलाकर, वर्तमान समय में अनेक Chief Ministers के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप हैं, तब Governor की यह स्वयं विवेकाधिकार शक्ति व्यावहारिक राजनीति में बहुत अधिक महत्व प्राप्त करती है। लेकिन High Court एवं Supreme Court में इस शक्ति को चुनौती दी जा सकती है क्योंकि कई बार राज्यों के राज्यपाल ने इस शक्ति का दुरुपयोग किया है।
Supreme court judgement - सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के विवेकाधिकार और केंद्र द्वारा अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के उपयोग पर स्पष्ट दिशानिर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है, और इसे मनमाना या पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए।
नबम रेबिया बनाम उपसभापति (2016): मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में राज्यपाल के असंवैधानिक हस्तक्षेप को रद्द किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि राज्यपाल को संवैधानिक सीमाओं का पालन करना होगा। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article. डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
यह जानकारी कब काम आएगी
भारत में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों और मुख्यमंत्री की नियुक्ति से संबंधित जानकारी विभिन्न प्रतियोगी और शैक्षणिक परीक्षाओं जैसे UPSC सिविल सेवा, State PSC (UPPCS, BPSC, MPPSC, RPSC), SSC CGL, SSC CHSL, SSC MTS, IBPS PO, SBI PO, RBI Grade B, UGC NET (राजनीति विज्ञान), CLAT, AILET, CTET, और TET के अभ्यर्थियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विषय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 और 164, सरकारिया आयोग, पुंछी आयोग, और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों (जैसे एस. आर. बोम्मई केस) से संबंधित प्रश्नों की तैयारी में सहायक है। चाहे आप सामान्य अध्ययन, संवैधानिक कानून, या राजनीति विज्ञान की पढ़ाई कर रहे हों, यह जानकारी वस्तुनिष्ठ, निबंधात्मक, और केस स्टडी आधारित प्रश्नों के लिए उपयोगी है। समसामयिक घटनाओं, जैसे पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में राज्यपाल-राज्य सरकार टकराव, पर भी नजर रखें, जो UPSC, State PSC, और CLAT जैसी परीक्षाओं में समसामयिक प्रश्नों के लिए प्रासंगिक हो सकती हैं।
Objective Questions - इस लेख में कितने प्रश्नों के उत्तर छुपे हुए हैं
प्रश्न: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है?
उत्तर: अनुच्छेद 164 (Indian Constitution Act, 1950 के अनुच्छेद 164 के अंतर्गत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।)
प्रश्न: निम्नलिखित में से किस वर्ष उत्तर प्रदेश में राज्यपाल ने बहुमत प्राप्त मुख्यमंत्री को हटाकर अल्पमत वाले व्यक्ति को शपथ दिलाई थी?
a) 1996
b) 1997
c) 2005
d) 2016
उत्तर: b) 1997 (उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को हटाकर जगदंबिका पाल को शपथ दिलाई थी।)
प्रश्न: गुजरात में 1996 में राज्यपाल द्वारा किसे मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई थी?
a) कल्याण सिंह
b) दिलीप सिंह
c) मनोहर पर्रिकर
d) प्रताप सिंह राणे
उत्तर: b) दिलीप सिंह (1996 में गुजरात के राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने केशुभाई पटेल की सरकार को बर्खास्त कर दिलीप सिंह को शपथ दिलाई।)
प्रश्न: गोवा में 2005 में राज्यपाल द्वारा किसे मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था?
a) कल्याण सिंह
b) केशुभाई पटेल
c) मनोहर पर्रिकर
d) जगदंबिका पाल
उत्तर: c) मनोहर पर्रिकर (2005 में गोवा के राज्यपाल एस. सी. जमीर ने मनोहर पर्रिकर की सरकार को बर्खास्त कर प्रताप सिंह राणे को शपथ दिलाई।)
Short Answer Questions - लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न: भारतीय संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका क्या है?
उत्तर: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत, राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन के चुने हुए नेता को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
प्रश्न: 1997 में उत्तर प्रदेश में राज्यपाल द्वारा विवेकाधीन शक्ति के दुरुपयोग का उदाहरण क्या था?
उत्तर: 1997 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बहुमत प्राप्त मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को हटाकर अल्पमत प्राप्त जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई, जो विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग था।
प्रश्न: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को कहाँ चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को उच्च न्यायालय (High Court) और सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में चुनौती दी जा सकती है।
Descriptive Questions- निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों और मुख्यमंत्री की नियुक्ति में उनकी भूमिका की व्याख्या करें। क्या ये शक्तियाँ दुरुपयोग का कारण बनती हैं? उदाहरण सहित चर्चा करें।
उत्तर: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत, राज्यपाल विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है। सामान्यतः यह एक औपचारिक प्रक्रिया है, लेकिन अनुच्छेद 163 के तहत असाधारण परिस्थितियों में राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग कर सकता है। हालाँकि, इन शक्तियों का दुरुपयोग कई बार देखा गया है। उदाहरण के लिए:
- 1997, उत्तर प्रदेश: राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बहुमत प्राप्त कल्याण सिंह को हटाकर जगदंबिका पाल को शपथ दिलाई।
- 1996, गुजरात: राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने केशुभाई पटेल की सरकार को बर्खास्त कर दिलीप सिंह को नियुक्त किया।
- 2005, गोवा: राज्यपाल एस. सी. जमीर ने मनोहर पर्रिकर की सरकार को हटाकर प्रताप सिंह राणे को शपथ दिलाई।
इन मामलों में राज्यपाल के निर्णयों को पक्षपातपूर्ण माना गया, और कुछ मामलों में न्यायालयों ने हस्तक्षेप किया। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में इन शक्तियों को चुनौती दी जा सकती है।
प्रश्न: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग के ऐतिहासिक उदाहरणों की चर्चा करें।
उत्तर: राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग भारत के कई राज्यों में देखा गया है।
1997, उत्तर प्रदेश: राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बहुमत प्राप्त कल्याण सिंह को हटाकर अल्पमत वाले जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री बनाया।
1996, गुजरात: राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने केशुभाई पटेल की बहुमत वाली सरकार को बर्खास्त कर दिलीप सिंह को शपथ दिलाई।
2005, गोवा: राज्यपाल एस. सी. जमीर ने 2 फरवरी, 2005 को मनोहर पर्रिकर की सरकार को बर्खास्त कर प्रताप सिंह राणे को नियुक्त किया।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि राज्यपाल ने कई बार संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए पक्षपातपूर्ण निर्णय लिए।
प्रश्न: वर्तमान समय में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का महत्व और चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर: वर्तमान समय में, जब कई मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ व्यावहारिक राजनीति में महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इन शक्तियों का उपयोग सरकार गठन, बर्खास्तगी, और अन्य प्रशासनिक निर्णयों में किया जा सकता है। हालांकि, इनका दुरुपयोग, जैसा कि उत्तर प्रदेश (1997), गुजरात (1996), और गोवा (2005) में देखा गया, एक गंभीर चुनौती है। उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में इन शक्तियों को चुनौती दी जा सकती है, जो संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। फिर भी, इन शक्तियों का राजनीतिक दबाव में उपयोग और निष्पक्षता की कमी एक चिंता का विषय है।