CM Sir, स्कूल शिक्षा विभाग का तालाब गन्दा होने से कैसे बचेगा, मैं बताता हूं - Khula Khat

मध्य प्रदेश की सीमा से सटे राजस्थान के झालावाड़-मनोहरथाना के ग्राम पिपलोदी कि सरकारी शाला के 07 विद्यार्थियों की बलि लेने का मामला ठंडा पड़ता उसके पूर्व ही करोली के एक स्कूल की छत धराशाही होते ही सरकारी कारकुनों, विश्वकर्माओं की नीति, नीयत, भ्र्ष्ट कार्यप्रणाली पर अंगुलियों उठने लगी। पिपलोदी की निंदनीय, शर्मनाक घटना के बाद राजस्थान ही नही बल्कि मप्र शासन/ प्रशासन भी हरकत में आ स्कूल भवनों अन्य सरकारी भवनों का एक्सरे करने जुट गया। ताकि बचाओ किया जा सके।

पहले एक्सरे में ही लाखो- करोडों की लागत से बनवाई गई हजारों शालाओं की सेहत दुरुस्त न पाए जाने से शाला प्रबंधकों को सचेत, सजग रहने और सुरक्षित शाला संचालन की हिदायत दे दी है। हिदायत नामे की गति चौकाने वाली थी। अक्सर सरकारी हिदायत नामे कछवा चाल से चलते है। जमीन से जुड़े ओर सरकारी कारकुनों -इंजीनियरों,बाबुओं, विभिन्न विभागीय अधिकारियों की कारिस्तानियो, लीलाओं से परिचित मप्र के CM डॉक्टर मोहन यादव के सख्ती दिखाने से मशीनरी के फिलहाल होश उड़े हुए है। 

जानकारों का दावा हे कि कारकुन, इस सख्ती का तोड़ खोज CM के हिदायत नामे को बोथरा किए बिना नही मानेंगे। नतीजन खंडहर में बदलते शाला भवनों को दुधारू गाय में बदल सरकारी जन-धन में बत्ती के मौके जुटा लेंगे। राजस्थान सीमा से सटे शिवपुरी, गुना, राजगढ़, आगर, शाजापुर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच आदि जिलों की शालाओं की मरम्मत के लिए औसतन 32 करोड़ की मांग रखी है। यानी 52 जिलों के जर्जर बूढ़े करार दिए गए हजारों शाला भवनों को सेहतमंद बनाने या उनका मेकअप करने के लिए 1600 करोड़ से अधिक की राशि चाहिए। 

असल मे जिम्मेदारियां तय न होने का फायदा इंजीनियर, विभागीय अधिकारी, सरपंच, अन्य जिम्मेदार जन प्रतिनिधि उठा, मौज के साधन जुटाने से बाज नही आते। 

क्या ये आश्चर्य जनक नही है कि आज की लागत में 1300 वर्ग फिट में एक दम टनाटन, चौकस, बेहतरीन भवन का निर्माण हो रहा है। जिसमे मस्त लाइट फिटिंग, सेनेटरी, मॉड्यूलर किचन, टाप फ्लोरिंग, वाल पुट्ठी आदि शामिल है। 30-35 साल तक मरम्मत नही मांगते। ठीक इसके विपरीत सरकारी भवन 02 हजार वर्गफुट से अधिक राशि मे भी मजबूत की बजाय जर्जर, संदिग्ध सेहत के बनते है। जिनकी वेलिडिटी 05- 10 साल या इससे कम होती है। 

शासन स्तर पर ये सवाल उठा लिया जाए कि जब हम हमारे दीर्ध जीवी, मजबूत, बुलंद भवन 1300 वर्गफुट में बनवा लेते है तो सरकारी भवन 2000 वर्गफुट में भी सरदर्द देते है। केंसर साबित होते है। उनकी गुणवत्ता के खिलाफ शिकायतों का तांता लग जाता है। शिकायतों की जांच करने वाले भी चौथ वसूल आंधी के आम लूटने वालों की जमात के प्लग साबित होते है। वे निर्माण को क्लीन चिट थमा कागजो का पेट भर देते है।
इसी वजह से शाला या अन्य सरकारी भवन ही नही बल्कि पुल, पुलिया,रपट, सड़के, तालाब आदि अकाल मौत का शिकार हो शासन/ प्रशासन को कटघरे में खड़ा करती है। 

शासन/ प्रशासन भी जानता है। हादसा घटने के बाद पनपे आक्रोश, असंतोष की उम्र लंबी नही बल्कि चंद दिनों की होती है। फिर सब कुछ ठंडा। 

उज्जैन, इंदौर, राजधानी भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर,रीवा, सागर, छिंदवाड़ा, छतरपुर, पन्ना, राजगढ़, आदि सहित समूचे सूबे के हजारों स्कूलों की छतें टपक रही है। दीवारों में आ चुकी दरारों में काइ जड़े जमा संक्रामक बीमारियों को पीले चावल दे रही है। छत टपकने से बचाने के लिए कुछ स्कूल प्रबंधन ने तिरपाल/पन्नी डाल रखी है। खिड़की दरवाजे सड़ चुके है। या नशेलची उखाड़ ले गए। 

इस भ्र्ष्टा तंत्र के चक्रव्यू से निजात पाने का रामबाण इलाज ग्रामीण, कस्बाई इलाको में सरकार निजी क्षेत्र से तयशुदा नक्शे के आधार पर भवन बनवा कर किराए पर ले ले। हजारों आंगनवाड़ी, अन्य सरकारी कार्यलय किराए के भवनों में चल, लग रहे है। राजधानी भोपाल में भी कुछ कार्यालय आज भी किराए के भवनो में लग रहे है। 98% राष्ट्रीयकृत- गैर राष्ट्रीयकृत बैंक किराए भवनो में संचालित हो रहे है। नतीजन वे रखरखाओ, मरम्मत आदि के खर्चे से बेफिक्र रहते है। किराए की शर्त में ये सब शामिल होता है। 

सरकार को इससे असंख्य फायदे होंगे। एक तो भूमि संबधी विवादों, अतिक्रमण विवादों, देख रेख, मरम्मत, रख रखाव के चलते असुरी खेल से मुक्ति मिल जाएगी। कुल लागत राशि की 30% राशि के ब्याज में किराया अदा किया जा सकेगा। कुछ लोगो के स्थाई रोजगार का बंदोबस्त हो जाएगा। आरोप- प्रत्यारोप की लगती झड़ी से बचा जा सकेगा। शासन के खजाने पर कोई अतिरिक्त वित्तीय भार नही आएगा। जब मछलियां सड़ेंगी ही नही तो तालाब गन्दा होने से बचेगा। विद्यार्थी/ लोग अकाल काल के शिकार नही होंगे। मौत के बदले मुआवजा बांटने में होने वाली लीला से मुक्ति मिलेगी। यानी एक पूरी चेन पटरी पर आ पारदर्शिता, निरोगी, निर्दोष तंत्र को बल देगी। ✒ श्याम चौरसिया

अस्वीकरण: खुला खत एक ओपन प्लेटफॉर्म है। यहाँ मध्य प्रदेश के सभी जागरूक नागरिक सरकारी नीतियों की समीक्षा करते हैं, सुझाव देते हैं, और समस्याओं की जानकारी देते हैं। पत्र लेखक के विचार उसके निजी हैं। यदि आपके पास भी कुछ ऐसा है, जो मध्य प्रदेश के हित में हो, तो कृपया लिख भेजें। हमारा ई-मेल पता है: editorbhopalsamachar@gmail.com 
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