एक रुपया लगाओ, दस वापस पाओ, जलवायु संकट में भी है कमाई का मौका!

अब तक हमने जलवायु परिवर्तन (climate change) की बात डर से जोड़ते हुए की है - कि बाढ़ आएगी, आग लगेगी, बीमारियाँ बढ़ेंगी, और हमारी ज़िंदगी बदल जाएगी। लेकिन अब समय है नज़रिया बदलने का। क्योंकि सिर्फ़ डर बेचने से न तो सियासत चलती है, न समाज बदलता है। सोचिए, अगर आपको पता चले कि आज आप हर 1 रुपये का निवेश (investment) करते हैं, और अगले कुछ सालों में वह 10 रुपये से भी ज़्यादा बनकर लौटे - तो क्या आप उस अवसर (opportunity) को नज़रअंदाज़ करेंगे? 

World Resources Institute (WRI) की ताज़ा report ने कुछ ऐसा ही बताया है, लेकिन मुद्दा सिर्फ़ पैसे का नहीं, climate adaptation से लड़ाई का है। यह study स्पष्ट कहती है कि अगर हम आज climate adaptation पर सही तरीके से निवेश करें, तो न केवल ज़िंदगियाँ बचेंगी, बल्कि economic growth और social development भी तेज़ी से होगा। 

हर 1 dollar पर 10 dollar से ज़्यादा का return!

इस study में 12 देशों के 320 projects का विश्लेषण किया गया। कुल मिलाकर करीब 133 billion dollar (यानी 11 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा) का निवेश किया गया था। नतीजे बताते हैं कि इन योजनाओं से अगले दस सालों में 1.4 trillion dollar (115 लाख करोड़ रुपये) से अधिक का लाभ हो सकता है।

इसका मतलब?

हर 1 रुपये के बदले 10 रुपये से ज़्यादा का return - और वह भी केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि ज़िंदगी के हर पहलू में।
कहाँ से आता है इतना लाभ?
WRI ने इसे "Triple Dividend of Resilience" कहा है - यानी तीन स्तरों पर मिलने वाला लाभ:
सीधे नुकसान से बचाव – बाढ़, सूखा, heatwaves जैसी आपदाओं में जान-माल की रक्षा।  
आर्थिक लाभ – खेती में ज़्यादा productivity, नए jobs, छोटी-बड़ी economy का मज़बूत होना।  
सामाजिक व पर्यावरणीय सुधार – बेहतर healthcare, biodiversity की रक्षा, गरीबों की ज़िंदगी में सुधार।

उदाहरण के लिए, healthcare क्षेत्र में adaptation projects (जैसे heat stress से बचाने वाले infrastructure, मलेरिया और डेंगू की रोकथाम) 78% से ज़्यादा return दिखा रहे हैं। वहीं, early warning systems जैसी व्यवस्थाएँ लोगों की जान और infrastructure को बचाने में कारगर साबित हो रही हैं।

एडाप्टेशन 'सुरक्षा कवच' नहीं, बल्कि 'प्रगति का पायदान'

सैम मुगूमे कूजो, युगांडा के वरिष्ठ वित्त अधिकारी और Coalition of Finance Ministers for Climate Action के सह-अध्यक्ष, कहते हैं:
“अब समय आ गया है कि नेता समझें कि climate adaptation कोई महज़ सुरक्षा व्यवस्था नहीं है - यह development की नई रफ़्तार है। इससे लोगों को स्थायी jobs, बेहतर health, और सुरक्षित भविष्य मिल सकता है।”

लेकिन अभी भी अनदेखा हो रहा है असली लाभ

Report में यह भी सामने आया कि अधिकतर योजनाओं के मूल्यांकन में केवल 8% मामलों में ही adaptation से मिलने वाले तीनों प्रकार के लाभ (triple dividend) को पूरी तरह से आर्थिक रूप से आंका गया। इसका मतलब है कि असली लाभ इससे कहीं ज़्यादा हो सकता है, जितना अभी कागज़ों में दर्ज है।

क्या है Climate Adaptation?

यह ऐसी योजनाएँ हैं जो मौसमी आपदाओं से निपटने के लिए पहले से तैयारी करती हैं। जैसे:
Climate-smart agriculture – जो बदलते मौसम में भी उपज दे सके।  

शहरों में बाढ़ से बचाव की योजनाएँ (flood management).  
ग्रामीण इलाकों में healthcare सेवाओं का विस्तार।  
Heatwaves से बचाने वाली छाँव और पानी की व्यवस्था।

इन योजनाओं का असर केवल आपदा के समय ही नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी को भी बेहतर बनाता है।

भारत जैसे देशों के लिए क्यों अहम है यह report?
भारत में हर साल बाढ़, सूखा, चक्रवात, और heatwaves से हज़ारों जानें जाती हैं और अरबों का नुकसान होता है। ऐसे में यह report सरकारों, municipalities, और corporates के लिए एक स्पष्ट संदेश देती है:
Climate adaptation में पैसा खर्च नहीं हो रहा, बल्कि बुद्धिमानी से investment किया जा रहा है।
अगर पंचायत स्तर पर भी ऐसी adaptation projects लागू हों, तो गाँवों में jobs, healthcare, और self-reliance बढ़ सकती है।

अब क्या ज़रूरत है?

सरकारी योजनाओं में climate adaptation को मुख्यधारा में लाना।  
Funding को नुकसान टालने के बजाय लाभ कमाने की सोच से जोड़ना।  
स्थानीय समुदायों को योजना बनाने में शामिल करना।  
Data, research, और tracking को मज़बूत करना ताकि लाभ को मापा जा सके।

जलवायु संकट हमारे दरवाज़े पर खड़ा है, लेकिन यह report बताती है कि इससे लड़ना डरावना नहीं, बल्कि समझदारी भरा investment हो सकता है- बशर्ते हम इसे खर्च नहीं, development के बीज की तरह देखें।

पॉलिसी मेकर्स के लिए सीधा संदेश:

“Climate adaptation को अब खर्च न समझें - यह एक economic opportunity और development engine है।”
COP30 के सामने यह report एक economic toolkit की तरह आई है जो दिखाती है कि climate action का मतलब सिर्फ़ carbon reduction नहीं, बल्कि jobs, healthcare, और local economy भी है।
तो सवाल अब यह नहीं कि “हम afford कर सकते हैं या नहीं?”
सवाल यह है कि क्या हम कुछ न करने का risk उठा सकते हैं?
किसी काबिल किसान ने कहा था:
“तूफ़ान को रोका नहीं जा सकता, पर खेत की मेड़ मज़बूत हो, तो नुकसान कम होता है।”
अब समय है मेड़ बाँधने का।
और यह मेड़ सिर्फ़ मिट्टी की नहीं, policies की भी होनी चाहिए।

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