Police FIR दर्ज करने के बाद मामले की Investigation करती है और Accused के खिलाफ यदि पुख्ता गवाह (strong witness) और Proof मिलते हैं तो Court के सामने सजा के निर्धारण के लिए case diary प्रस्तुत की जाती है। Court में judge, आरोपी से पूछता है कि उसने Crime किया है या नहीं। यदि Accused, इंकार करता है तो Trial की प्रक्रिया (Process) शुरू होती है लेकिन यदि आरोपी, Crime करना स्वीकार कर ले तो उसके Against सजा का निर्धारण अनिवार्य (Mandatory) हो जाता है। आइए जानते हैं:-
BHARATIYA NAGARIK SURAKSHA, की धारा 252 की परिभाषा
दोषी होने के अभिवचन (Conviction on plea guilty) -
यदि कोई व्यक्ति, अभियोजन (Prosecution) द्वारा लगाए गए आरोपों (Accusations) को Court में स्वीकार कर लेता है तब Magistrate अभिवचन (pleading) को लेखबद्ध (Recorded) करेगा। एवं उसके पश्चात Magistrate का विवेकाधिकार (Discretion) हैं की वह दंड का निर्धारण करें अथवा विचारण की प्रक्रिया (Process) शुरू करे।
मजिस्ट्रेट स्वीकार दोषी के अपराध का विचारण कब करवाएगा (When will the Magistrate conduct the trial of the admitted guilty) :-
वह Crime को स्वीकार करने वाले व्यक्ति के अपराध का Trial भी करवा सकता है अगर उसे लगता है कि स्वीकृति (Acceptance) के अलावा अन्य साक्ष्य आरोपी (Evidence of the accused) के खिलाफ (Against )नहीं है तब।
नोट:- आरोपी व्यक्ति को स्वयं के द्वारा आरोप स्वीकार करना चाहिए एवं एक बार आरोप स्वीकार अर्थात अभिवचन देने के बाद अपराधी उच्च न्यायालय में स्वीकार आरोपों की सत्यता नहीं करवा सकता है। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article.
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।