VIKRAM UNIVERSITY का नाम बदला, मुख्यमंत्री ने विक्रम संवत के पहले दिन ऐलान किया

Bhopal Samachar
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने विक्रम संवत 2082 के पहले दिन ऐलान किया है कि उज्जैन में स्थित विक्रम यूनिवर्सिटी का नाम बदल दिया जाएगा। अब इस यूनिवर्सिटी को सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाएगा। 

विक्रम संवत के पहले दिन को कितने नाम से पुकारा जाता है

चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा तिथि, विक्रम संवत 2082 रविवार को भारत के पौराणिक नगर उज्जैनी में सीएम डॉ मोहन यादव ने उदीयमान सूर्य देव को अर्ध्य दिया और हिंदू नव वर्ष पर विक्रम ध्वज, गुड़ी का दत्त अखाड़ा घाट पर पूजन-अर्चन किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेशवासियों और देशवासियों को भारतीय नववर्ष की मंगलकामनाएं दी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि भारतीय संस्कृति के अंतर्गत पर्व और त्योहारों का निर्धारण मंगल तिथियां के आधार पर होता है। खगोलीय गतिविधियों की दृष्टि से गुड़ी पड़वा अर्थात प्रतिपदा, वर्ष की पहली मंगल तिथि है। इस मंगल तिथि का अभिवादन कहीं चेटीचंड, कहीं वर्ष प्रतिपदा और कहीं गुड़ी पड़वा सहित अन्य अनेक नाम से किया जाता है।

यह हिंदुओं का नहीं बल्कि प्रकृति का नव वर्ष है: श्री संत सुंदरपुरी महाराज

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बताया की यह प्राचीन सनातन संस्कृति की अनुपम परंपरा है। इसी तिथि पर चंहुओर खुशियों, समृद्धि और हर्षोल्लास का वातावरण होता है। गुड़ी पड़वा पर घर-घर स्थापित होने वाला कलश हमारी पवित्र आत्मा को अभिव्यक्त करता है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि समृद्धि और विकास का नव संवत्सर सभी के जीवन में सुख- समृद्धि और आनंद का भाव लाए, ईश्वर से यही कामना है।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने पूजन-अर्चन उपरांत माँ क्षिप्रा की गोद में नौका विहार कर व्यवस्थाओं का अवलोकन किया। इसके बाद देव दर्शन कर साधु-संतों और श्रद्धालुओं से मुलाकात की। उन्होंने दत्त अखाड़ा के पीठाधीश्वर संत सुंदरपुरी महाराज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर सत्संग किया।

दत्त अखाड़ा के पीठाधीश श्री संत सुंदरपुरी महाराज ने मुख्यमंत्री का शॉल पहनाकर स्वागत कर आशीर्वाद दिया। संत श्री ने मुख्यमंत्री डॉ. यादव से कहा कि यह हिंदू नव वर्ष ही वास्तव मे प्रकृति का नव वर्ष है, जिसमें प्रकृति नव शृंगार करती है। पेड़ पौधों मे नवीन पत्ते आते है, प्रकृति में उत्साह और नव संचार का प्रवाह होता है। उज्जैन की इस प्राचीन, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक धरोहर को संभालने और संवारने के प्रयासों की संतश्री सुंदर पूरी महाराज ने प्रशंसा कर आशीर्वाद दिया।

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