New Technology NQR से चुपचाप पनप रही बीमारी का भी पता चल जाएगा, MRI रिप्लेस होगी

Bhopal Samachar
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मानव शरीर के अंदर बीमारी कितनी फैल गई है, MRI (Magnetic resonance imaging) के माध्यम से इसका पता लगाया जाता है। हम मनुष्यों के पास 1950 से लेकर अब तक यही सबसे अत्याधुनिक तकनीक हुआ करती थी परंतु अब वैज्ञानिकों ने न्यू टेक्नोलॉजी से शरीर के भीतर के ऐसे रहस्य का पता लगाने में सफलता प्राप्त करनी है जो अब तक असंभव था। 

हम 75 साल पुरानी तकनीक से दुनिया की रक्षा की जा रही थी

सन 1950 के दशक में वैज्ञानिकों द्वारा रेडियो तरंगों का उपयोग करके अज्ञात पदार्थ का पता लगाने की तकनीक विकसित की गई थी। इसी टेक्नोलॉजी के माध्यम से एयरपोर्ट्स पर विस्फोटक सामग्री का पता लगाया जाता है और मानव शरीर में बीमारी का पता लगाने के लिए MRI प्रक्रिया में भी यही तकनीक उपयोग की जाती है, लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह पूरी तरह से सक्षम नहीं है। कई बार ऐसा हुआ है कि इसे प्राप्त जानकारी गलत पाई गई और उसके कारण जीवन का नुकसान हुआ। तकनीकी अपडेट नहीं होने के कारण अब तक दुनिया भर में हजारों लोगों की मृत्यु हो गई, परंतु अब शायद ऐसा नहीं होगा। 

A new method of Nuclear Quadrupole Resonance (NQR) Spectroscopy

Pennsylvania University के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर क्वाड्रुपोल रेजोनेंस (NQR) स्पेक्ट्रोस्कोपी की नई विधि विकसित कर ली है। इस विज्ञान की दुनिया में एक बहुत बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। इसकी मदद से मानव शरीर के भीतर Individual Atoms का पता लगाया जा सकता है। अर्थात यह भी पता लगाया जा सकता है कि मनुष्य के शरीर के भीतर कौन सी बीमारी पैदा होने वाली है। इस जानकारी के प्राप्त होने के बाद, बीमारियों से लड़ना और ज्यादा आसान हो जाएगा। 

दुनिया का सिक्योरिटी सिस्टम अपडेट होगा

सुरक्षा की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है क्योंकि, जो अपराधी रेडियो तरंगों को चकमा देने में सफल हो जाते हैं अब वह भी पकड़े जाएंगे। यदि कोई व्यक्ति अपने साथ कोई भी ऐसी सामग्री ले जा रहा है जिससे विस्फोटक सामग्री को बनाया जा सकता है, तो एयरपोर्ट पर उसके बारे में भी पता चल जाएगा। यह नई तकनीक इतनी ज्यादा एडवांस है कि, फिलहाल इसकी नज़रों से कुछ भी नहीं बचाया जा सकता है। इसलिए यह तकनीक दुनिया भर के सिक्योरिटी सिस्टम को एक नया अपडेट देगी। 

खोजकर्ता का नाम Alex Breitweiser

इस खोज की शुरुआत तब हुई जब एलेक्स ब्रेटवाइज़र (Alex Breitweiser), जो अब आईबीएम (IBM) में शोधकर्ता हैं, ने प्रयोग के दौरान डेटा में असामान्य पैटर्न देखे। गहन जांच और पुराने शोधों की मदद से उन्होंने पाया कि यह डेटा कोई त्रुटि नहीं बल्कि एक नई भौतिक प्रक्रिया (physical process) का संकेत था। शोधकर्ताओं ने इस नई विधि के विकास में Delft University of Technology के वैज्ञानिकों का सहयोग लिया। इस प्रक्रिया में सटीकता इतनी बढ़ गई कि वैज्ञानिक व्यक्तिगत नाभिक (nuclei) के संकेतों को पहचानने और उनके अनूठे गुणों को समझने में सक्षम हो गए। यह शोध नैनो लेटर्स (Nano Letters) नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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