जब बच्चा स्कूल आया ही नहीं तो वो पास कैसे हुआ - Khula Khat

पूरे राज्य में 10वी और 12वी के परीक्षा परिणामों की समीक्षा चल रही है, विषय शिक्षक और प्राचार्यों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, उनकी दो वेतन वृद्धि रोकने के नोटिस दिए जा रहे , कारण बताओ सूचना पत्र जारी हो रहे हैं और हिदायत दी जा रही है कि अगले वर्ष का परीक्षा परिणाम बेहतर होना चाहिए। परंतु वास्तविकता की ओर न तो लोकशिक्षण संचालनालय देख रहा है और न ही राज्य शिक्षा केन्द्र देखना चाहता है।

शिक्षा की बर्बादी राइट टू एजुकेशन से शुरू हुई

बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट के बिगड़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण कक्षा 1 से कक्षा 8 तक का परीक्षा तंत्र है, जब से राइट टू एजुकेशन लागू हुआ और बच्चों को किसी भी कक्षा में नहीं रोका जाएगा, अर्थात फेल नहीं किया जाएगा का नियम लागू किया गया तभी से अनपढ़ बच्चों की पूरी फ़ौज तैयार होना शुरू हो गई। जो बच्चे पढ़ने और सीखने के इच्छुक थे उन्होंने भी इस सिस्टम की बजह से पढ़ने की जरूरत महसूस करना बंद कर दिया। पालकों को ये ज्ञान प्राप्त हो गया कि बच्चा फेल नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने बच्चे को स्कूल भेजने की अनिवार्यता पर ध्यान देना बंद कर दिया।इस सिस्टम का असर शिक्षक पर भी पड़ा जब उसने देखा कि बच्चा फेल तो होगा नहीं तो फिर पढ़ाने की जरूरत क्या है इसका परिणाम ये हुआ है कि सरकारी स्कूलों में 1 से 8 तक न तो छात्र स्कूल आ रहे हैं न पढ़ाई हो रही है ,पर पास सब हो रहे हैं।

अब सबसे महत्वपूर्ण बात जब बच्चा स्कूल आया ही नहीं तो वो पास कैसे हुआ? तो उसका हल निकाला गया कि जो बच्चे पेपर देने आ गए हैं वे ही अन्य सभी बच्चों की कॉपी लिख कर पेपर दे रहे हैं।शिक्षक बोर्ड पर पेपर हल कर रहे हैं।जिस बच्चे को नाम लिखना नहीं आता वो B और A  ग्रेड का प्रगति पत्रक प्राप्त कर रहा।

उत्कृष्ट रिजल्ट की हकीकत 

अब शासन कहेगा कि हमने 5वी और 8वी को बोर्ड कर दिया है फिर ये कैसे हो सकता है, ये सारे आरोप गलत हैं, अभी 5वी-8वी के रिजल्ट आने के बाद राज्य शिक्षा केन्द्र ने उत्कृष्ट रिजल्ट के लिए अपनी पीठ थपथपाई है। उस रिजल्ट की हकीकत ये है कि जो बच्चा कक्षा 1 से 4 तक स्कूल आया ही नहीं वो क्या बोर्ड परीक्षा देगा? उसे न तो नाम लिखना आता है और न ही वो संख्याओं को पहचान पाता है। यही हाल कक्षा 7 पास कर 8वी बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चे का है।

तो वो पास कैसे हो गए? इसका कारण है कि बोर्ड की परीक्षा बाकायदा बोर्ड पर हो रही है, अनुपस्थित बच्चों की कॉपियां लिखी जा रहीं हैं ताकि न तो कोई फेल हो और न ही अनुपस्थित रहे अन्यथा 1 माह बाद फिर पेपर कराने पड़ेंगे।

अब ऐसा बच्चा कक्षा 9 में पहुंचता है तो वो क्या पढ़ेगा और कैसे बोर्ड परीक्षा पास करेगा। शासन इस बात को स्वीकार नहीं करेगा इसलिये इसके दो ठोस सबूतों पर भी गौर करना चाहिए।

पहला तो लोकशिक्षण संचालनालय कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाले बच्चों का बेसलाइन टेस्ट कराता है जिसमे अंकों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाता है कि बच्चा किस स्तर का है। इस टेस्ट में तीन स्तर निर्धारित किये गए हैं 0 से 19 अंक आने पर बच्चे को कक्षा 3 से 5 के स्तर का माना जाता है, 20 से 39 अंक पर कक्षा 6 से 8 का और 40 से 50 अंक आने पर कक्षा 9 के स्तर का।

अब अगर पिछले 5 वर्ष के बेसलाइन टेस्ट के आंकड़े देखें तो पाएंगे कि 90℅ बच्चे कक्षा 3 से 5 के स्तर के हैं। ये बात शासन को पता है इसलिए कक्षा 9 में सितंबर माह तक ब्रिजकोर्स ही पढ़ाया जाता है। अब प्रश्न ये है कि जिन बच्चों को बिना पढ़े और बिना स्कूल आये पास होने की लत पड़ी हो क्या वो बच्चा एकाएक जागरूक होकर रोज स्कूल आता होगा, दूसरा क्या जो बच्चा आठ साल में नाम लिखना और अक्षर पहचानना नहीं सीख पाया वो तीन माह में ब्रिज कोर्स पढ़कर कक्षा 9 पास कर लेगा और अगले साल बोर्ड परीक्षा में पास हो जाएगा। इसी कारण कक्षा 9 का परिणाम 25-30 प्रतिशत रहता है।

इस संदर्भ में एक और बात, जब भी बोर्ड परीक्षा परिणाम घोषित होते हैं तो उत्कृष्ट विद्यालय और मॉडल स्कूलों की प्रशंसा सुनने को मिलती है कि उनका परीक्षा परिणाम हमेशा 90-95 प्रतिशत रहता है जबकि अन्य सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती,तो इस संदर्भ में ये बात महत्वपूर्ण है कि उत्कृष्ट विद्यालयों और मॉडल स्कूलों में बच्चों को प्रवेश सम्मलित प्रवेश परीक्षा द्वारा दिया जाता है, जिसमें किसी कमजोर बच्चे के प्रवेश होने की कोई स्थिति नहीं बनती । ऐसे में तो उन विद्यालयों का रिजल्ट 100 प्रतिशत होना ही चाहिए, वहां तो 100 प्रतिशत से कम रिजल्ट रहना शिक्षकों द्वारा ध्यान न देना दर्शाता है। जबकि अन्य सरकारी स्कूलों में किसी भी बच्चे को कक्षा 9 में प्रवेश देने से नहीं रोक सकते चाहे उसे अक्षर ज्ञान हो या न हो। जबकि बेसलाइन प्री टेस्ट में अनुतीर्ण हुए बच्चों को  क्या वापस पिछली कक्षा में नहीं भेजा जाना चाहिए?

इसके अतिरिक्त आखिरी बात लोक शिक्षण संचालनालय ने कक्षा 9 से 12 तक के लिए सी सी एल ई गतिविधियों के लिए शनिवार का दिन आरक्षित कर रखा है अर्थात उस दिन विषय शिक्षण कार्य प्रभावित होता है। अब अगर लोकशिक्षण से प्राप्त होने वाले आदेशों पर गौर करें तो प्रतिदिन एक या दो आदेश प्रसारित किए जाते हैं कि फलां  दिनांक को फलां गतिविधि की जाए और फलां दिनांक को फलां गतिविधि जिस को यदि विद्यालय पूरी तरह से लागू कर दें तो सप्ताह में शायद एक  या दो दिन ही पढ़ाई हो पाए। इन बिंदुओं पर शासन को विचार करना चाहिए और इनका हल निकालना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात कोई भी आदेश निकालने से पहले धरातल की समझ विकसित की जानी चाहिए। एक योग्य शिक्षक द्वारा संपादक के नाम लिखा गया पत्र, जैसा प्राप्त हुआ वैसा ही प्रकाशित किया। 

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