Legal general knowledge and law study notes
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 96 एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 34 में बताया गया है की अपनी रक्षा के लिए किया गया हमला अपराध नहीं होगा, चाहे इसमे विधि विरुद्ध आक्रमण करने वाले व्यक्ति की जान ही क्यूँ ना गई हो। इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जजमेंट जानिए:-
1. पांडुरंग बनाम सम्राट वाद-: एक पेड़ जिस पर वास्तव में आरोपी का हक था, उसके किरायेदार ने उस पेड़ पर अपना हक जताया, आरोपी उस पेड़ को काट लेता है और उसकी लकड़ी ले जाने लगता है। किरायेदार ने इस भ्रम में कि वह पेड़ उसका है, आरोपी को लकड़ी ले जाने से रोका, इसी बात पर दोनों में विवाद हो गया और आरोपी ने अपनी प्रतिरक्षा में किरायेदार पर वार किया।
इस मामले में न्यायलय द्वारा निर्णय दिया गया कि भ्रम में कार्य करने वाले किरायेदार का कार्य चोरी का अपराध था। अतः इस कृत्य के विरुद्ध आरोपी द्वारा अपनी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करना न्यायोचित था।
इस मामले का सारांश यह निकला कि अक्षमता या असमर्थता के आधार पर किसी व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला कृत्य अपराध नहीं है।
2. जगदीश चंद्र बनाम राजस्थान राज्य:- मामले मे न्यायालय द्वारा कहा गया कि यदि आपसी रंजिश और क्रोधी स्वभाव के कारण एक व्यक्ति बंदूक से दूसरे व्यक्ति पर वार करता है तो ऐसी दशा में दूसरे व्यक्ति द्वारा बंदूक से जवाबी वार किया जाना प्रतिरक्षा के अधिकार के अंतर्गत न्यायोचित माना जाएगा, एवं दूसरा व्यक्ति प्रथम व्यक्ति की हत्या का दोषी नहीं होगा।
3. अब्दुल हामिद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य :- मामले मे दो दलों के आपसी झगड़े में तीन व्यक्ति मारे गए। घटना के तथ्यों संबधी सबूतों के आधार पर यह जानना कठिन था कि किस दल ने आत्मरक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया। अतः सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया गया।