मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय के अंतर्गत लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा आरक्षित वर्ग के 2000 से अधिक उम्मीदवारों को उनकी मर्जी के खिलाफ ट्राइबल डिपार्टमेंट में पोस्टिंग दिए जाने के विरुद्ध हाई कोर्ट की डबल बेंच में याचिका प्रस्तुत की गई थी। आज विस्तृत सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने लोक शिक्षण संचालनालय एवं सभी संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है।
चॉइस में स्कूल शिक्षा भरा था, पोस्टिंग ट्रैवल डिपार्टमेंट में हो गई
अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, मध्य प्रदेश शासन द्वारा संचालित स्कूल शिक्षा एवं जनजातीय कार्य विभाग के स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नोडल एजेंसी लोक शिक्षण संचालनालय, मध्य प्रदेश, भोपाल द्वारा बनाए गए असंवैधानिक तथा मनमाने नियमों के आधार पर आरक्षित वर्ग के 2 हजार से अधिक अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ दिए बिना दंडात्मक या दंड स्वरूप उनकी पदस्थापना जनजाति कार्य विभाग में कर दी गई है। जबकि उक्त अभ्यर्थियों द्वारा प्रथम वरीयता क्रम में स्कूल शिक्षा विभाग में पदस्थापना हेतु चॉइस फिलिंग दर्ज की गई हैं, लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय ने उक्त आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में परिवर्तित करके जनजातीय कार्य विभाग में उनके निवास स्थान से 1200 कि.मी. दूर-दूर ट्रायबल विभाग द्वारा संचालित स्कूलों मे पदस्थापना दी गई है जो नियम विरुद्ध हैं।
मध्य प्रदेश शिक्षक भर्ती नियम क्रमांक 15.6 को लेकर विवाद
श्री ठाकुर ने बताया कि, ततसंबंध में पूर्व मे दायर याचिकाओं मे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा लोक शिक्षण संचालनालय को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार आरक्षित वर्ग के मेरीटोरियस अभ्यर्थियों को उनकी प्रथम वरीयता क्रम के अनुसार पदस्थापना परिवर्तित आदेश जारी किए जाएं लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय भोपाल द्वारा हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को दरकिनार करते हुए विभाग द्वारा बनाए गए नियम क्रमांक 15.6 का हवाला देते हुए समस्त याचिकाकर्ताओं की पदस्थापना परिवर्तन करने से इनकार कर दिया गया।
DPI का नियम 15.6, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन
तब उक्त समस्त अभ्यर्थियों द्वारा माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में पुन: याचिका दायर करके स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बनाए गए नियम क्रमांक 15.6 तथा स्कूल शिक्षा विभाग कमिश्नर लोक शिक्षण संचनालय भोपाल द्वारा पारित किए गए आदेशो की संवैधानिकता को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में चुनौती दी गई। उक्त याचिकाओ की सुनवाई आज दिनांक 17.10.2023 को जस्टिस शील नागु एवं जस्टिस हिरदेस की युगल पीठ द्वारा विस्तृत सुनवाई की गई। अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर द्वारा खंडपीठ को बताया गया कि स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा अभ्यर्थियों के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन किया है।
आरक्षित वर्ग के नवनियुक्त शिक्षकों के वकील की दलील
याचिकाकर्ता ईडब्ल्यूएस/ओबीसी / एससी कैटेगरी के मेरीटोरियस अभ्यर्थी हैं जो अनारक्षित वर्ग में ट्राईबल वेलफेयर डिपार्टमेंट में प्राथमिक शिक्षकों के रूप में पदस्थापना जारी की गई है, जबकि उक्त याचिकाकर्ता से कम अंक प्राप्त करने वाले ईडब्ल्यूएस ओबीसी एससी एवं एसटी के लगभग 2500 से अधिक अभ्यर्थियों को उनकी पहली पसंद के आधार पर स्कूल शिक्षा विभाग में पदस्थापना दी गई है, जबकि याचिकाकर्ताओ की प्रथम वरीयता में पदस्थापना स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूल चयनित किए गए हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनेक दृष्टांत है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि आरक्षित वर्ग के मेरीटोरियस अभ्यर्थियों को उनकी पहली पसंद के वरीयता के क्रम में मेरिट अनुरूप पदस्थापना दी जाना आवश्यक है अन्यथा आरक्षण नियमों के मूल उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
उक्त तर्कों से सहमत होते हुए माननीय खंडपीठ द्वारा मध्य प्रदेश शासन को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह का समय दिया है तथा याचिका की सुनवाई आगामी 4 दिसंबर 2023 नियत की गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पर भी अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह,रामभजन लोधी ने की। याचिका क्रमांक 15358/2023 तथा 23629/2023 है।
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