IPC 179 - कोर्ट में सत्य बात ना बताना, चुपचाप खड़े रहना, अपराध है या नहीं, पढ़िए

भारत के सभी नागरिक जानते हैं कि न्यायालय में झूठ बोलना अपराध है लेकिन सच का पता होते हुए भी चुपचाप खड़े रहना, यानी सच ना बोलना, क्या इसे भी अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। क्या न्यायालय में पूछे जाने पर जानकारी ना देना दंडनीय अपराध है। किस कानून के तहत कार्रवाई की जाती है, पढ़िए। 

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 179 की परिभाषा 

जो कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक की कानूनी प्रक्रिया के समय किसी सत्य कथन पर, (जिसका जवाब देने के लिए वो कानूनी रूप से बाध्य है) अगर वह जवाब नहीं देता है, चुपचाप न्यायालय में खड़ा रहता है तब वह आईपीसी की धारा 179 के तहत आरोपित किया जाएगा। उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा और न्यायालय द्वारा दंड निर्धारित किया जाएगा।

Indian Penal Code, 1860 section 179 punishment

यह अपराध असंज्ञेय एवं ज़मानतीय होते है। यानी पुलिस थाने में दर्ज किया जाएगा और पुलिस थाने में ही जमानत मिल जाएगी। इनकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। इस अपराध के लिए अधिकतम छ: माह की कारावास या जुर्माना या दिनों से दण्डित किया जा सकता है। 

नोट:- न्यायालय के समक्ष सत्य कथन पर उत्तर ना देने के लिए उसी न्यायालय द्वारा अपराध का विचारण किया जायेगा जहां मामले की सुनवाई हो रही है एवं पुलिस अधिकारी को साक्षी का बयान न देना अपराध नहीं होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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