सरकारी नौकरी में 50-50 आरक्षण मामला- हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब प्रस्तुत किया- MP NEWS

Reservation in the recruitment process for government jobs, proceedings in the Supreme Court

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा जिला न्यायालयों के लिए की जाने वाली भर्तियों में 50% आरक्षण फार्मूले को लेकर उपस्थित विवाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब प्रस्तुत कर दिया है। हाई कोर्ट का कहना है कि, भर्ती प्रक्रिया के अंत में जाकर योग्यता के आधार पर चयन सूची का निर्धारण किया जाना चाहिए। इससे पहले आवेदन से लेकर पूरी भर्ती प्रक्रिया तक 50-50 प्रतिशत आरक्षण का पालन किया जाना चाहिए। 

हाई कोर्ट ने डिवीजन बेंच क्रमांक 2 के आदेश को सही बताया

अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर द्वारा जिला न्यायालयों के लिए 1255 पदों की भर्तियों का मामला सुप्रीम कोर्ट में (3 याचिकाएं) विचाराधीन है। जिनमें हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच क्रमांक 2 के आदेशों को चुनौती दी गई है। उक्त याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में शामिल करने के आदेश के साथ हाई कोर्ट को कारण बताओ नोटिस जारी करके संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया को उपरोक्त याचिकाओं के निर्णय के अध्याधीन कर दिया है। उक्त समस्त प्रकरणों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 4 जुलाई 2023 को नियत है। हाईकोर्ट की ओर से याचिकाओं के जवाब में डिवीजन बेंच क्रमांक 3 के फैसले को अवैधानिक तथा डिवीजन बेंच क्रमांक 2 के आदेश को सही बताया गया है। 

प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को चयन सूची के समय समायोजित करेंगे

हाईकोर्ट ने अपने जवाब में स्पष्ट लिखा है कि अनारक्षित 50% पदों को अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को रिजर्व कर दिया गया तथा ओबीसी, एससी एसटी को उनके निर्धारित आरक्षण के अनुरूप सिलेक्ट किया गया है एवं चयन के अंतिम चरण में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में समायोजित किया जाएगा। 

डिवीजन बेंच क्रमांक 3 ने प्रत्येक चरण में समायोजन हेतु कहा था

जबकि सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट जबलपुर की डिवीजन बेंच क्रमांक 3 ने दीपक कुमार पटेल के प्रकरण में स्पष्ट रूप से कहा है कि परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सिर्फ प्रतिभा वाहन अभ्यर्थियों से ही भरा जाएगा, चाहे वह किसी भी वर्ग के हो। हाईकोर्ट ने अपने जवाब में आरक्षण अधिनियम की धारा 4(4) को भी त्रुटिपूर्ण बताया है। 

सुप्रीम कोर्ट में याचिका क्रमांक SLP (C) 1868/2023, 4843/2023, 5817/2023 में अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं श्री विनायक शाह याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे हैं। 

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