ग्वालियर। पुलवामा अटैक पर याद होगा आपको। इस हमले का बदला लेने के लिए जो लड़ाकू विमान दुश्मन की सीमा में घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को तबाह करके लौटा था, वह मिराज 2000 शहीद हो गया। मुरैना के आसमान में जिन लड़ाकू विमानों की भिड़ंत हुई थी उसमें से एक वही मिराज-2000 था। जिसकी आवाज से आतंकवादियों के पसीने छूट जाते हैं।
पुलवामा अटैक और एयर स्ट्राइक- फ्लैशबैक
पुलवामा में सीमा पार से आए कुछ आतंकवादियों ने अपने कैंप में सो रहे निहत्थे 40 सीआरपीएफ हत्या कर दी थी। उन्हें संभलने का मौका तक नहीं दिया था। इसका बदला लेने के लिए भारत सरकार ने वायुसेना का चुनाव किया। वायु सेना के विशेषज्ञों ने एक ऐसे लड़ाकू विमान का चुनाव किया जो दुश्मन को बिल्कुल वैसा ही जवाब देगा जैसा उन्होंने भारतीय सैनिकों के साथ किया, दुश्मन को संभालने का मौका नहीं देगा।
जैसे को तैसा नहीं, ईट का जवाब पत्थर से दिया था
मिराज 2000 ग्वालियर एयरबेस का नंबर वन लड़ाकू विमान था। आदेश मिलते ही उसने उड़ान भरी और पठानकोट एयरबेस पहुंचा ताकि किसी को उसके इरादों की भनक न लग पाए। फिर रात के अंधेरे मेंLOC (लाइन ऑफ कन्ट्रोल) पार कर पाकिस्तान के पूर्वोत्तर इलाके खैबर पख्तूनख्वाह के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ट्रेनिंग कैम्पों पर ठीक उसी प्रकार हमला किया जैसा उन्होंने किया था। संभलने का मौका नहीं दिया। जब तक कोई समझ पाता की आसमान में बिजली नहीं बिजली की गड़गड़ाहट नहीं बल्कि कुछ और है तब तक तो दुश्मन के शरीर के चिथड़े उड़ चुके थे।
पब्लिक की डिमांड- मलबे से ग्वालियर में स्मारक बनाया जाए
अब ग्वालियर में जनता की डिमांड है कि दुर्घटनाग्रस्त हुए मिराज-2000 के मलवे से एक स्मारक बनाया जाए ताकि दुनिया को हमेशा याद रहे और सत्ता में आने वाली पीढ़ियां इसे ध्यान में रखते हुए अपनी भविष्य की रणनीतियां बना सकें।
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