भोपाल। मध्यप्रदेश में मलेरिया पैरासाइट ने रूप बदल लिया है। लैब में मलेरिया की जांच का मेथड 1960-70 के दशक वाला है। जबकि मलेरिया पैरासाइट तब से लेकर अब तक एक लाख रूप बदल चुका है। नतीजा यह है कि लाखों लोग मलेरिया का शिकार हो रहे हैं और बिना सही इलाज के अपनी इम्युनिटी के आधार पर ठीक हो रहे हैं। 4 शहरों में 13 लाख लोगों के शिकार होने की खबर है।
एक्यूट फेब्राइल इलनेस विथ अनइटियोलॉजी किसे कहते हैं
वैज्ञानिकों के अनुसार इसे एक्यूट फेब्राइल इलनेस विथ अनइटियोलॉजी कहते हैं। यानी बुखार का कारण समझ नहीं आना। मध्य प्रदेश के भाेपाल, इंदाैर, ग्वालियर और उज्जैन जैसे शहराें में एक साल में 13 लाख लोगों ने फीवर आने पर मलेरिया टेस्ट करवाया, लेकिन 56 में ही मलेरिया पाॅजिटिव आया।
10 साल तक लिवर में रह सकता है, 1 लाख रूप बदल सकता है
आईसीएमआर, जबलपुर के निदेशक डॉ. अपरूप दास कहते हैं कई बार ऐसा होता है कि मलेरिया का पैरासाइट शरीर में है, लेकिन असर नहीं करता है। यह लीवर में 10 साल तक रह सकता है। इस बीच वो एक लाख बार रूप बदल सकता है। 1960 में मलेरिया पैरासाइट ने इसी तरह खुद को बदला था और 1965-70 में मलेरिया की भयावह तस्वीर सामने आई थी।
मध्य प्रदेश के सिर्फ 4 जिलों में पुराना वाला मलेरिया
मलेरिया पॉजिटिव में 52 में से सिर्फ 4 जिले ऐसे हैं जिनमें एक साल में 100 से ज्यादा पॉजिटिव मरीज मिले हैं। इनमें बालाघाट में सबसे ज्यादा 1825 मामले सामने आए। इसके बाद नीमच में 350, सीधी में 168, दतिया में 141 और मुरैना में 102 मामले हैं।