नई दिल्ली। शासकीय कर्मचारी अथवा अधिकारी को रिश्वत के मामले में दंडित करने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण अनिवार्य नहीं है। परिस्थिति जन्य प्रमाणों के आधार पर भी दंडित किया जा सकता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ने कही।
नीरज दत्ता बनाम राज्य (GNCTD), आपराधिक अपील नंबर 1669/2009
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2, धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत रिश्वत के प्रत्यक्ष, प्राथमिक एवं पारंपरिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है तब अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर लोक सेवक के अपराध की निष्कर्ष निकालने की अनुमति है।
उल्लेखनीय है कि रिश्वत के मामलों में पारंपरिक रूप से दो प्रमाण अनिवार्य माने जाते हैं। पहला यह साबित करना होता है कि संबंधित सरकारी कर्मचारी अथवा अधिकारी द्वारा रिश्वत की मांग की गई और दूसरा यह प्रमाण होना अनिवार्य है कि उसे रिश्वत दी गई और उसने प्राप्त की। विद्वान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि यदि पारंपरिक और प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं है तो परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर भी रिश्वत के अपराध को साबित किया जा सकता है।
प्रस्तुत प्रकरण में शिकायतकर्ता की मृत्यु हो चुकी थी और अभियोजन के पास कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं था।