संपत्ति का मौलिक अधिकार क्या था और इसे संविधान से क्यों हटा दिया- Fundamental Rights

यह एक कटु सत्य है कि सर्वाधिक विवादों की जड़ संपत्ति होती है। पड़ोस, परिवार, समाज, समुदाय, देश या विदेश सभी की अधिकांश समस्या संपत्ति से ही उत्पन्न होती है। संविधान निर्माण के पश्चात इसे भी अधिकांश संपत्ति झगड़े, विवाद संपत्ति के मूल अधिकार के पीछे सहने पड़े हैं।

समाजवादी समाज की रचना के लिए कभी संसद ने विधि बनाकर संविधान में संशोधन कर इसे सही रूप देने का प्रयास किया तो कभी न्यायालयों द्वारा व्यक्ति के निजी अधिकार की सुरक्षा करते हुए उनके हित में निर्णय दिये। दोनों के बीच यह सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा।

संघर्ष की इस लम्बी यात्रा के बाद यह उचित समझा गया कि संपत्ति के मूल अधिकार को अध्याय से ही निकाल दिया जाना चाहिए अतः में भारतीय संविधान के 44 वे संविधान संशोधन अधिनियम,1978 द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त (हटा दिया) कर दिया गया। 

विशेष नोट:- अब संपत्ति का अधिकार संविधान के भाग 12 के अध्याय 04 के अनुच्छेद 300 (क) के अंतर्गत एक संवैधानिक अधिकार है, अब मौलिक अधिकार नहीं।

इस प्रकार हम बात करें तो भारतीय संविधान में प्रारम्भ में सात प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त थे लेकिन 44 वे भारतीय संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा संपत्ति के मूल अधिकार को हटा दिया गया अब वर्तमान में भारतीय संविधान में छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त है जिसका वर्णन हम अपने लेखों में कर रहे हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665

इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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