RMA EKADASHI VRAT VIDHI KATHA- रमा एकादशी चमत्कारी व्रत की विधि और कथा

रमा एकादशी, रम्भा एकादशी या कार्तिक कृष्ण एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को सभी पापों की दोष से मुक्ति मिल जाती है। सन 2022 में रमा एकादशी दिनांक 21 अक्टूबर 2022 दिन शुक्रवार सूर्योदय के साथ प्रारंभ होगी और व्रत का पारण दिनांक 22 अक्टूबर 2022 प्रातः 6:20 बजे से 10:09 के बीच किया जाएगा। 

Rma Ekadashi vrat Puja Vidhi 

  • रमा एकादशी मूल रूप से उपवास का महत्व होता है, जिस की विधि दसवीं तिथि से प्रारंभ हो जाती है। दशम तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व सात्विक भोजन किया जाता है और फिर फलहार। 
  • एकादशी के दिन कुछ भी नहीं खाया जाता। लिक्विड डाइट पर रहते हैं। यानी फलों का रस पी सकते हैं। 
  • द्वादशी तिथि के दिन व्रत का पारण किया जाता है। 
  • यदि आप एकादशी तिथि का व्रत नहीं करते तब भी इस दिन चावल और उस से बने हुए सभी पदार्थ वर्जित होते हैं।
  • एकादशी का व्रत करने वाले प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करते हैं और पूरे श्रद्धा भाव से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करते हैं। 
  • भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा में पीले फल, पीले फूल, धूप, गाय के घी का दीपक आदि का उपयोग किया जाता है। 
  • भगवान श्री हरि विष्णु के लिए घर की रसोई में भोग बनाया जाता है। 
  • भोग लगाने के बाद के बाद भगवान श्री हरि विष्णु को तुलसी के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। 
  • मान्यता है कि तुलसी के पत्ते अर्पित करने से सभी प्रकार के पापों के दोष से मुक्ति प्राप्त होती है। 
  • भगवान विष्णु की आरती करने के बाद उनका प्रसाद सभी को वितरित किया जाता है। 
  • रमा, माता लक्ष्मी का दूसरा नाम है। इसलिए पूजा में भगवान श्री हरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी को स्थापित किया जाता है। 
  • ऐसा करने से परिवार में सुख, समृद्धि और खुशियों का स्थाई निवास होता है। 
  • यदि उस दिन घर में श्रीमद् भागवत गीता के श्लोकों का वाचन हो सकता है तो उत्तम माना जाता है। 
  • यदि आप इतना सब नहीं कर सकते तो किसी भी श्री कृष्ण मंदिर में आयोजित होने वाले विधि-विधान में शामिल हो सकते हैं। 

रमा एकादशी व्रत कथा- Rma Ekadashi vrat Katha 

इस व्रत का उद्घाटन भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के निवेदन पर किया था। प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक प्रतापी राजा राज्य किया करता था। उनकी कन्या का नाम चंद्रभागा था, वह सुंदर एवं गुणवान कन्या थी। उनका विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ किया गया। युवराज शोभन शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल थे एवं यदि समय पर भोजन प्राप्त ना हो तो विचलित हो जाते हैं। 

एक बार दोनों मुचुकुंद के महल में थे। राजा मुचुकुंद के राज्य में एकादशी का बड़ा महत्व था। इस दिन मनुष्य तो क्या पशुओं को भी भोजन नहीं दिया जाता था। कन्या चंद्रभागा ने निर्णय लिया कि वह एकादशी के दिन किसी दूसरे राज्य में चले जाएंगे ताकि उनके पति शोभन दोनों समय भोजन कर सकें परंतु युवराज शोभन ने निर्णय लिया कि वह भी एकादशी का व्रत करेंगे और यदि इससे कोई शारीरिक कष्ट हुआ तो उसे ईश्वर की कृपा से सहन करेंगे। 

जीवन में पहली बार व्रत करने के कारण युवराज भूख से तड़पने लगे। चंद्रभागा से यह देखा नहीं गया। वह अपने पति के लिए भोजन का प्रबंध करने लगी। अपने संकल्प की रक्षा के लिए युवराज ने अपनी पत्नी को सूचित किए बिना ही महल त्याग दिया। खोजने के बाद भी नहीं मिले तो चंद्रभागा ने उन्हें मृत मानकर स्वयं को माता लक्ष्मी एवं भगवान श्री हरि विष्णु की सेवा में समर्पित कर दिया। 

इधर जब युवराज व्रत का पारण करके वापस लौटे तो देखा कि लोग उनकी मृत्यु मानकर शोक में डूबे हुए हैं। युवराज अज्ञातवास पर चले गए। कुछ समय बाद एक ब्राह्मण देवपुर नगर के पास से गुजरा। नगर का ऐश्वर्य देखकर राजा के दर्शन करने को पहुंचा। देखते ही पहचान गया। देवपुर के राजा शोभन थे। उनकी मृत्यु नहीं हुई थी। उन्होंने ब्राह्मण को बताया कि रमा एकादशी के प्रभाव से किस प्रकार उनके जीवन में चमत्कार हुआ। ना केवल पूर्णता स्वस्थ हो गए हैं बल्कि देवपुर नाम का एक नया नगर भी बसा लिया है। 

फिर दुखी होते हुए बताया कि यह सब कुछ अस्थाई है, मेरे भाग्य का नहीं है। ब्राह्मण ने अपने देश जाकर कन्या चंद्रप्रभा को सारी बात बताई। चंद्रप्रभा बिना देर किए ब्राह्मण के साथ देवपुर नगर पहुंची। यहां राजा शोभन के दर्शन करते ही कहती हैं कि, पिछले 8 वर्षों में मैंने नियमित रूप से एकादशी व्रत किए हैं। उनका सारा पुण्य फल मैं आपको अर्पित करती हूं। 

ऐसा करते ही देवपुर नगर का ऐश्वर्य स्थाई हो जाता है और राजा शोभन अपनी पूरी आयु पूर्ण स्वास्थ्य के साथ भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा से अपनी प्रजा की सेवा करते हुए बिताते हैं। वृद्धावस्था में दोनों को स्वर्ग के सुख की प्राप्ति होती है और मृत्यु के पश्चात दोनों को मोक्ष प्राप्त होता है। 

इस प्रकार जो भी मनुष्य रमा एकादशी का व्रत करता है। उसके शरीर की सभी दुर्बलता दूर होती हैं। जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यदि दंपति (पति-पत्नी) विधि विधान से व्रत करते हैं तो सुख और समृद्धि स्थाई हो जाती है।

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