भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 में नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त है। संविधान द्वारा अनुच्छेद 21 का अधिकार प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार जिसे भारतीय संविधान में जीवन जीने का अधिकार भी कहा जाता है।
जीवन जीने का अधिकार संविधान में बहुत विस्तृत अधिकार है भारत के प्रत्येक नागरिकों को स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार है सरकार द्वारा नागरिकों को वह सब सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए जिससे वह अपने जीवन को खुशहाल तरीके से जी सके जैसे स्वास्थ्य संबंधित सुविधा, आर्थिक कल्याण योजना, सुरक्षा संबंधित संरक्षण आदि।
अगर कोई राज्य सरकार नागरिकों को मिलने वाले जीवन जीने के अधिकार का हनन करती हैं या कोई विधि इन अधिकारों पर अतिक्रमण करती है तब नागरिकों को प्रतिकर लेने का अधिकार होगा जानिए सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट।
रुदल शाह बनाम बिहार राज्य:-
उक्त मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय को अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) के समुचित उल्लंघन के मामलों में नागरिकों को मुआवजा प्रदान करने की शक्ति प्राप्त है।
साधारण शब्दों में कहे तो राशन प्राप्त करना हर गरीब एवं निर्धन व्यक्ति का अनुच्छेद 21 के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है ऐसे में गरीब, निर्धन होने के बाद भी उन्हें राशन प्राप्त नहीं हो रहा है तब यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा एवं उस व्यक्ति को न्यायालय द्वारा प्रतिकर (मुआवजा) प्राप्त करने का अधिकार होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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