किसी संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज करवाने के लिए आम नागरिकों को थाने से लेकर SP, कमिश्नर आदि के चक्कर लगाने पड़ते हैं,लेकिन उनकी FIR दर्ज नहीं हो पाती है। लेकिन न्याय सभी को मिलता है क्योंकि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र न्यायपालिका हैं आज हम आपको कानून की उन तीन धाराओं के बारे में जानकारी देंगे जिसकी जानकारी आम लोगो को होना अति आवश्यक है जानिए।
1. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 156(3) के अनुसार अगर अपराध संज्ञेय हैं और पुलिस अधिकारी FIR दर्ज नहीं करते है तब पीड़ित व्यक्ति डायरेक्ट न्यायालय में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद दायर कर सकता है। प्राथमिक परीक्षण के बाद कोर्ट, पुलिस को FIR दर्ज करने के लिए आदेश करेगा और तब पुलिस आनाकानी नहीं कर पाएगी।
2. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 190 के अनुसार मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेगा एवं संज्ञेय अपराध की स्थिति में स्वयं जाँच, अन्वेषण कर सकता है या किसी विशेष अधिकारी को नियुक्त कर सकता है या पुलिस अधिकारी से मामले की रिपोर्ट लेगा।
3. दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 204 के अनुसार मजिस्ट्रेट को आदेश जारी करने की शक्ति प्राप्त होती है अर्थात शिकायत सही पाई गई है तब मजिस्ट्रेट अपराध की FIR दर्ज करवा सकता है, अरोपी को समन, वारण्ट जारी कर सकता है एवं अरोपी की गिरफ्तारी करवा सकता है।
सामान्य शब्दों में कहे तो दण्ड प्रक्रिया संहिता की ये तीन धाराएं आम लोगों को वर्तमान समय में जानना आवश्यक है क्योंकि कुछ भ्रष्ट पुलिस अधिकारी द्वारा बहुत से संज्ञेय मामलों में पीड़ित व्यक्ति की FIR तक दर्ज नहीं की जाती हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com