मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जेल में बंद व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए जेल अधीक्षक को आदेश देता है। तब जेल अधीक्षक का कर्तव्य होता है कि वह आदेश का पालन करे एवं बन्दी व्यक्ति को पूर्ण सुरक्षा के साथ न्यायालय के समक्ष पेश करे एवं पुनः कारागार में लेकर आए लेकिन दण्ड प्रक्रिया संहिता में जेल अधीक्षक को कुछ ऐसी शक्ति भी प्राप्त है जो बंदी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद भी जेल में बंद रख सकता है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 269 की परिभाषा
अगर किसी बंदी व्यक्ति को न्यायालय में पेश करने के आदेश दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 267 के अनुसार जेल अधीक्षक को दिए गए हैं तब जेल अधीक्षक निम्न परिस्थितियों में बंदी व्यक्ति न्यायालय नहीं भेज सकता है:-
1. कोई बंदी व्यक्ति गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो या कोई अंगशैथिल्य (हाथ, पैर आदि का न चलना) हो गया।
2. समय अवधि के अनुसार न्यायिक हिरासत में हो तब उससे पहले नहीं ले जा सकता या आरोपी प्राम्भिक अन्वेषण की प्रक्रिया में हो तब न्यायालय नहीं भेज सकता है लेकिन अगर न्यायालय 25 किलोमीटर की दूरी से कम पर हो तब उपर्युक्त स्थिति में भेज सकता है।
3. राज्य सरकार द्वारा किसी बंदी व्यक्ति को जेल से न्यायालय ले जाने की रोक लगा दी गई हो तब।
जेल अधीक्षक का कर्त्तव्य है कि उपर्युक्त शक्ति का प्रयोग करने के बाद न्यायालय को कारण दर्शाएगा की किन परिस्थिति में बंदी व्यक्ति को न्यायालय में पेश नहीं कर रहे हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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