दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 260 में स्पष्ट बता दिया है कि किस प्रकृति के अपराध का विचारण संक्षिप्त रूप में प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। सवाल यह है कि किसी द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संक्षिप्त विचारण करने का अधिकार रखता है, जानते हैं:
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 261 की परिभाषा:-
उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) किसी ऐसे मजिस्ट्रेट जो द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियों प्राप्त है, उसे ऐसे अपराधों का संक्षिप्त विचारण के लिए नियुक्त कर सकते हैं जो जुर्माने से या जुर्माना साथ छः माह या सिर्फ छः माह तक से दंडनीय हैं एवं ऐसे सभी अपराध जो दुष्प्रेरण संबंधित या अपराध का प्रयत्न करने वाले है उनका भी संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति प्रदान कर सकता है।
उधानुसार:- अगर किसी अपराध का जो दुष्प्रेरण से सम्बंधित था उसका परिवाद प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास विचारण में है, लेकिन उसका संक्षिप्त विचारण नहीं हो पा रहा है अर्थात सुनवाई बहुत देरी से हो रही है, तब हाईकोर्ट के आदेश पर अपराध का संक्षिप्त (कम समय) में विचारण (सुनवाई) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट कर सकता है एवं उसे यह शक्ति प्राप्त होगी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665